नशे के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत

कोरोना का संक्रमण चल रहा है देश चिंता में है राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर कोटवार तक जनता की सलामती के लिए अलग-अलग तरह की डुग्गी पीट रहे हैं ।थाली , ताली के साथ अंग्रेजी, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी सभी तरह की औषधियों  से कोरोना का इलाज और बचाव के हजार रास्ते अपनाए जा रहे हैं ।इसी बचाव अभियान के तहत बदमाश चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए और कोरोना के कारण देश आर्थिक तंगी की तरफ न जाए एक और सराहनीय कदम सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए उठाया गया है। लेकिन एक क्षेत्र में देश काफी पहले आत्मनिर्भर बन चुका है।  आत्मनिर्भरता का आलम यह है कि घर का प्रत्येक सदस्य रोजगार से लगा हुआ है और इस रोजगार के व्यापार से सरकार स्वयं चल रही हैंं।
 देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर सभी अधिकारी कर्मचारी अपना पदीय महत्व पा रहे हैंं और यह व्यापार है नशे का व्यापार। इस व्यापार में देश आज पूर्णतया आत्मनिर्भर हो चुका है ।यह बात अलग है कि चाहे केंद्र हो या राज्य सरकारें इस आत्मनिर्भरता का श्रेय नहीं लेना चाहतींं। लेकिन हकीकत यह भी है कि सभी पूर्व सरकारों का इस आत्मनिर्भरता में  सहयोग रहा है सभी के सहयोग से यह क्षेत्र आत्मनिर्भर बना है ।लेकिन त्याग का  अद्भुत  परिचय दिया जाता है। लेकिन कहते हैं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है कोरोना के शिकार लॉकडाउन में सर्वप्रथम सर्वाधिक पैरवी मदिरालय खोलने के लिए की गई यहां तक कि कलेक्टरों ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपने-अपने जिलों में सरकार से पूछे बिना समय-समय पर इस उद्योग के कारखानों तथा फुटकर विक्री केंद्र को प्रथम वरीयता देते हुए खुलवाया है ।इसी के साथ नासमझ जनता को पता चला कि देश औषधालय, विद्यालय,न्यायालय, सभी तरह के कार्यालय के बिना चल सकता है लेकिन मदिरालय के बिना नही।  डॉक्टर ,इंजीनियर पटवारी मंत्री संत्री तंत्री सभी का अस्तित्व और वेतन इसी से आता है यह भी पता चला  कि सरकार को कम से कम इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए परिश्रम नहीं करनी पड़ेगी और वह अपनी शक्ति का उपयोग दूसरे क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने में कर सकेंगी। नशे की व्यापारिक आत्मनिर्भरता मे ग्रामीण भारत शहरी भारत से काफी आगे है। नशे का कारोबार ग्रामीण भारत में कुटीर उद्योग की तरह स्थापित हो चुका है सरकार की प्रसन्नता के लिए बता दूं कि इस रोजगार है पांच दस साल के छोटे बच्चे भी लगे हैं उनकी भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। व्यापार का एक सम्मानजनक पक्ष यह भी है कि इस रोजगार में सभी जाति धर्म के लोग लैंगिक भेदभाव भुलाकर काम कर रहे हैं। मैंने इसके प्रत्यक्ष प्रमाण गांव-गांव देखा है। निर्भरता का सुखद पहलू पूरे कोरोना लॉकडाउन के में दिखाई दिया नशे की उपलब्धता मे कहीं कमी नहीं दिखाई दी यह जरूर रहा है कि कालाबाजारी हुई है और मूल्यवृद्धि का  दंश उपभोक्ताओं को सहना पड़ा लेकिन इसके उपभोक्ता इतने समझदार हैंं कि  उपलब्धता को  प्रथम महत्व देते हैं मूल्य वृद्धि को नहीं।
अजय नारायण त्रिपाठी
30/09/2020
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