द ग्रेट शो मैन राज कपूर और रीवा
14 दिसंबर
द ग्रेट शो मैन राज कपूर जन्मदिन विशेष
राज कपूर और रीवा
द ग्रेट शो मैन रणवीर राजकपूर का जन्म 14 दिसम्बर 1924 को गांव समुन्दरी, पोस्ट-पेशावर (ब्रिटिश इण्डिया) में पृथ्वीराज कपूर के बड़े बेटे के रूप में हुआ था। 11 वर्ष की उम्र से ही आपको फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। लेकिन आपका वास्तविक जीवन शुरू होता है रीवा आने के बाद। लोगों को थोड़ा पक्षपात लग सकता है जब मैं यह कहूं कि राजकपूर का निर्माण रीवा में हुआ या यह कहॅू कि राजकपूर विराट कृतत्व का आधार रीवा है। या यह कहॅू कि राजकपूर का सबकुछ रीवा है, तो लोगों को स्वाभाविक लगेगा कि मैं रीवा को विशेष प्राथमिकता दे रहा हॅू, तो ऐसा मैं करूंगा और यह करना न्यायसंगत है।
आवारा राजकपूर की वास्तविक व्यवस्थित कहानी रीवा से ही प्रारंभ होती है और क्योंकि यह कहानी फिर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और रीवा विधायक प्रदेश के ऊर्जा, खनिज, एवं जनसम्पर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के कारण नये रूप में ‘‘स्व. राजकपूर स्मृति आडिटोरियम एवं कल्चरल सेंटर’’ के रूप में फिर से कही जा रही है तो स्वाभाविक तौर पर यह मेरे रीवा का अधिकार बनता है कि वह उस कहानी को कहें।
राजकपूर की अव्यवस्थित दिनचर्या से चिंतित पृथ्वीराज कपूर जी ने आपको रीवा अपने रिश्तेदार के यहां भेजा। पृथ्वीराज कपूर के रिश्तेदार करतार नाथ मल्होत्रा रीवा राज्य के आई.जी. पुलिस थे। विभाजन से पहले आपका परिवार जबलपुर आकर बस गया था और आप रीवा के आई.जी. पुलिस थे, यहीं के शैक्षणिक संस्थानों में आपके बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, यह दौर गुलामी का था लेकिन स्वतंत्रता का सूर्य भी उदीयमान हो रहा था। 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने से पहले 12 मई 1946 को राजकपूर तत्कालीन रीवा आई.जी. पुलिस करतार नाथ मल्होत्रा की बेटी कृष्णा मल्होत्रा के साथ विवाह बन्धन में बंध चुके थे, और यहीं बंधन रहा जिसने राजकपूर को नियंत्रित व्यस्थित ऊचाई में उड़ने की क्षमता प्रदान की। इसी बंधन का परिणाम था कि राजकपूर ने उड़ानें तो चारों तरफ भरी, ऊंची-ऊंची भरी लेकिन दिशाहीन होकर दुर्घटनाग्रस्त होने की बजाय नई-नई मंजिलें पायी।
रीवा के लिये राजकपूर के मन में उत्कंण्ठा पूर्ण लगाव था। मैंने अपने एक लेख ‘‘रीवा राजकपूर और राजेन्द्र’’ में इसका जिक्र किया है। फिल्म ‘‘आह’’ जो 1953 में प्रदर्शित हुई थी, उसका नायक राजकपूर रीवा जाने की बेचैनी दिखाता है, पूरी फिल्म में रीवा का ‘‘11’’ बार नाम लिया जाता है। बड़ा मार्मिक संवाद ‘‘मुझे हर हाल में रीवा पहुंचना है’’ ‘‘भैया मुझे रीवा पहुंचा दो’’ राजकपूर के रीवा लगाव को प्रदर्शित करता है। फिल्म का संवाद दर्शाता है कि राजकपूर अपने जन्मदिन के दिन यांनि कि 14 दिसम्बर को रीवा पहुंचना चाहते हैं। क्योंकि इस दिन नायिका ‘‘नीलू’’ की शादी है। राजकपूर का पर्दे का प्रेम जितना नर्गिस से चर्चित रहा उससे अत्यधिक मात्रा में या कहॅू तो अवर्णनीय स्तर पर कृष्णा कपूर के साथ यथार्थतः था। राजकपूर नाम के पंक्षी की जीवन नैया कृष्णा कपूर है। राजकपूर नाम के पंछी ने चाहे जहां और जितनी उड़ान भरी हो, उसका वास्तविक आश्रय कृष्णा कपूर नामक जहाज ही था और क्योंकि यह आश्रय राजकपूर को रीवा में मिला था तो भला वह अपने आश्रयदाता रीवा को कैसे भुला सकते हैं? कृष्णा कपूर आज भी रीवा का नाम सुनकर रोमांच से भर जातीं हैं। वो रीवा को ‘‘रेवा’’ कहतीं हैं। जिस एस.पी. बंगलें में कृष्णा-राजकपूर विवाह बंधन में बंधे थे आज उसी जगह ‘‘स्व. राजकपूर स्मृति आडिटोरियम एवं कल्चरल सेंटर’’ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के प्रयासों से बनने जा रहा है। करतारनाथ जी के बड़े बेटे प्रेमनाथ उस समय फिल्मों में काम कर रहे थे और क्योंकि पृथ्वीराज कपूर उनके सगे-सम्बन्धी थे इसलिए उनके थियेटर से उनका स्वाभाविक सम्बन्ध था। इस लिहाज से राजकपूर और प्रेमनाथ एक-दूसरे को काफी अच्छी तरह से जानते थे और दोनों में मित्रता थी, जब राजकपूर रीवा अपने मित्र और सम्बन्धी के घर पहुंचे तो कृष्णा मल्होत्रा सफेद साड़ी पहने सितार बजा रहीं थी, राजकपूर कृष्णा को देखकर और कृष्णा ने राजकपूर को देखकर यह समझ लिया कि हम दोनों ही एक-दूसरे के लिए बने हैं। 12 मई 1946 को राजकपूर और कृष्णा जी का विवाह वर्तमान रीवा एस.पी. बंगले में सम्पन्न हुआ। रीवा से राजकपूर को ऐसा जीवनसाथी मिला जिसने उस राजकपूर के सृजन में पंख लगाये जिसे आज दुनिया देखती है और डोर भी वह बनी जिसने सृजन के पतंग को ऊंची उड़ान तो भरने दी लेकिन कहीं दूर जाकर खोने की इजाजत कभी नहीं दी। राजकपूर जी का वास्तविक फिल्मी जीवन फिल्म ‘‘आग’’ केे मुहूर्त के साथ प्रारंभ होता है। गुलाम भारत में इस फिल्म का मुहूर्त हुआ और स्वतंत्र भारत में 1948 में इसका प्रदर्शन। ‘‘नायक’’ अपनी तरह की जिन्दगी जीना चाहता है, ऐसा लगता है जैसे आज के युवाओं की बात कहीं जा रही हो। इसी प्रदर्शन के साथ राजकपूर के निर्माण की कहानी प्रारंभ हो जाती है। लेकिन इस फिल्म में कृष्णा कपूर का योगदान बड़ा ही महत्वपूर्ण था। एक ऐसी भारतीय नारी जिसकी कल्पना भारतीय संस्कृति करती है, उसका निर्वाह कृष्णा कपूर जी ने किया है। अभी आपके विवाह को वर्ष भर ही हुए थे कि आपने अपने सारे जेवर राजकपूर जी को फिल्म निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए दे दिये। कृष्णा कपूर का राजकपूर जी पर गजब का विश्वास था।
अब फिर रीवा की बात की जाय ‘‘आह’’ फिल्म में जहां राजकपूर जी ने बार-बार रीवा चलने की बात कही है, तो फिल्म ‘‘आग’’ में जो 1948 में प्रदर्शित हुई, उसमें आपने अपनी वह कार इस्तेमाल की है जो रीवा लाईसेंस पास है, जिसका नम्बर था REWA 347 आग’’ फिल्म के एक दृश्य में फोर्ड कम्पनी की यह कार इस तरह से दिखाई जाती है कि जिससे REWA 347 दिखे। इसी फिल्म के पहले आर.के.फिल्मस स्टुडियो बना था और यह फिल्म उसके बैनर तले बनने वाली पहली फिल्म थी और इसी ‘‘आग’’ फिल्म में पहली बार निर्माता निर्देशक और अभिनेता के रूप में राजकपूर का व्यक्तित्व प्रदर्शित हुआ था। यहां भी रीवा महत्वपूर्ण है वह ऐसे कि जो पहली कार राजकपूर जी ने 09 हजार रुपये में खरीदी थी उसका माथा चमकता था REWA 347 के नाम से। राजकपूर और कृष्णा कपूर ने रीवा को बेहद प्यार किया। कहते हैं कि आपने अपनी छोटी बेटी का नाम रीमा भी इसी प्यार पर रखा है। वैसे जो रीवा के बाहर के लोग है उन्हें बताना चाहूंगा कि रीवा के ग्रामीण क्षेत्र के लोग और बघेली बोलने वाले लोग रीवा को आज भी ‘‘रीमा’’ ही कहते है। अब क्योंकि हमारे रीवा में ‘‘स्व. राजकपूर स्मृति आडिटोरियम एवं कल्चरल सेंटर’’ लगभग 20 करोड़ की लागत से बनने जा रहा है तो हम द ग्रेट शो मैन राजकपूर को जन्मदिन के दिन याद करते हुए चाहेंगे कि वो 14 दिसम्बर को जिस भी रूप में जहां भी हो अपने रीवा जरूर आये।
रीवा और राजकपूर से जुड़ी बाते मैं आगे भी कहता रहूंगा लेकिन यह सब जिसके प्रयास हो रहा है, उस जनप्रतिनिधि राजेन्द्र शुक्ल को भी आज विशेष धन्यवाद है।
अजय नारायण त्रिपाठी ‘‘अलखू’’