कॉलेजियम व्यवस्था चाहे अच्छी हो या बुरी लोगों का विश्वास तो अभी भी न्यायालय पर ही है
कॉलेजियम व्यवस्था चाहे अच्छी हो या बुरी लोगों का विश्वास तो अभी भी न्यायालय पर ही है
जिस तरह से सरकारी कर्मचारियों की सभी स्तरों पर कमी है ऐसे ही कमी न्यायालय में न्यायाधीशों की भी है चाहे वह फिर तहसील न्यायालय हो जिला न्यायालय हो या उच्च या उच्चतम न्यायालय।
उच्चतम न्यायालय ने 20 सितंबर को केंद्र सरकार से यह जानकारी देने को कहा कि उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए शीर्ष अदालत के कोलोजियम ने जिन लोगों की दोबारा सिफारिश की है उनकी संख्या कितनी है।
न्यायालय एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान बोला कि कॉलेजियम कोई सर्च कमेटी नहीं है संविधान के अनुसार इसकी निश्चित स्थित है जिन लोगों नाम की सिफारिश की गई है उनकी नियुक्ति में देरी क्यों है ।
याचिका में पूछा गया था कि जिन नाम को कोलोजियम ने सिफारिश किया था उनमें से कितने न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है और बाकियों को जिनकी नियुक्ति नहीं हुई है उनकी संख्या कितनी है । सवाल यह है कि ऐसी सिफारिश का निर्णय सरकार को एक निश्चित समय सीमा पर लेना चाहिए। समय-समय में कॉलेजियम के विरोध में भी सोशल मीडिया तथा मीडिया में बयान आते रहते हैं। राजनीतिक व्यक्तियों के बयान भी आते हैं कि इस व्यवस्था से जज का बेटा ही जज बनता है और अपनी बात के प्रमाण मे उदाहरण भी गिनाए जाते हैं।
लेकिन यह भी सच है कि कोलोजियम की चाहे कितनी बुराई की जाए आज भी जनता का कहीं भी विश्वास बरकरार है तो न्यायालय ही हैं ।
भले ही निचले स्तर पर तहसील,एसडीएम, कलेक्टर न्यायालय मे कितना भी भ्रष्टाचार क्यों न हो उच्च स्तर के न्यायालयों पर अभी भी जनता का विश्वास बरकरार है।
इसके पीछे न्यायाधीशों की योग्यता है साथ ही इसका सरकारों से स्वतंत्र होना भी है ।कोई भी सरकार रही हो पूरी तरह से न्यायालय को अपने अनुरूप नहीं चल पाई है। सीधे न्यायाधीश बने या वकालत के पेशे में रहने के बाद न्यायाधीश बने हो योग्यता की कद्र अभी भी न्यायालय में है और उनकी अपनी अलग नियुक्ति व्यवस्था होने के कारण काफी हद तक सरकार के दबाव से मुक्त रहते हैं ।
सरकार का कर्तव्य बनता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति विषय पर तत्परता बढ़ाए। न्यायाधीशों की संख्या कम होने से न्याय प्रभावित होता है ।देर से मिलने वाला न्याय भी अन्याय से कम नहीं है। इसलिए सरकार को चाहिए कि जो नाम कोलोजियम द्वारा आए हैं उनमें से ज्यादा से ज्यादा नामों पर अपनी सहमति देते हुए कार्यवाही की जाए । न्यायपालिका जितनी स्वतंत्र रहेगी उतना ही देश के लिएअच्छा है। नए न्यायाधीशों की नियुक्ति से न्याय मे तत्परता आयेगी और जनता का विश्वास सरकार तथा न्याय पर बना रहेगा।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
22 सितंबर 2024
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