आयुर्वेद और आयुर्वेदिक डॉक्टर से इतनी नफरत क्यों ?
इसी 11 दिसंबर को अंग्रेजी चिकित्सा विधा वाले डॉक्टरों ने निजी अस्पतालों की ओपीडी सेवा बंद रखी सरकारी ने काली पट्टी बांधकर काम किया । इस तरह से हड़ताल उन्होंने आयुर्वेद डाक्टरों को केंद्र द्वारा कुछ तरह के छोटे ऑपरेशन करने की सुविधा देने के आदेश के विरोध में किया ।
बीएएमएस करने वाले डॉक्टर को सर्जरी करने का अधिकार उसके डिग्री के साथ ही था लेकिन यह नहीं बताया गया था कि कौन-कौन सी सर्जरी आपको करनी है ।अब अधिसूचना द्वारा 58 तरह की सर्जरी बीएएमएस डॉक्टर प्रशिक्षण के बाद कर सकेगा।
एमबीबीएस वाले की तरह ही बीएएमएस वाला भी मेहनत कर पढ़ाई करता है। 12वीं तक दोनों का पाठ्यक्रम समान होता है ।आधार पाठ्यक्रम दोनों का एक ही है आगे चलकर एमबीबीएस वाला अंग्रेजी पद्धति की चिकित्सा में निपुणता हासिल करता है और बीएएमएस वाला आयुर्वेद में ।लेकिन आयुर्वेद वाला इतना भी कम जानकार नहीं रहता है कि इन 58 तरह की सर्जरी वह विशेष प्रशिक्षण के बाद न कर सके ।
गुलामी और इतने वर्ष स्वतंत्रता के बाद भी हम पराधीन मानसिकता और अंग्रेजी की श्रेष्ठता से बाहर नहीं निकल पाए हैं। अंग्रेजी बोलने वाले मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को हम ज्ञानी और हिंदी संस्कृत बोलने वाले विद्वान व्यक्ति को भी हम कमतर आंकते आ रहे हैं ।यही अंग्रेजी की श्रेष्ठता इन एलोपैथी चिकित्सकों के मन में यह विचार पैदा करती है कि सर्जरी करना केवल इनका अधिकार है जो सरासर गलत है ।
वर्तमान भाजपा सरकार वाकई भारतीय सरकार है जिसने योग को देश-विदेश में गौरव दिलाया और विश्व स्वास्थ्य संगठन से योग के लिए दिवस निश्चित करा दिया।
योग और आयुर्वेद के बढ़ते प्रभाव और लोगों को हो रहा फायदा उन अंग्रेजी कंपनियों को पसंद नहीं आ रहा जो ₹1 की चीज को ₹1000 में बेचते हैं। मुझे याद आता है जब बाबा रामदेव के योग में रफ्तार पकड़ी थी तो रीवा में एक मेडिकल व्यवसाई ने मेरे सामने ही बाबा रामदेव को बड़ी गंदी गालियां देते हुए कहा था इसके कारण से मेरा बहुत व्यवसाय कमजोर पड़ गया है ।स्वाभाविक रूप से जो बीमारी आहार-विहार और योग आयुर्वेद से ठीक हो सकती थी उसके लिए अंग्रेजी दवाइयों का सहारा लिया जा रहा था और जब लोगों द्वारा योग , स्वस्थ्य आहार -विहार अपना लिया गया तो इन दवाइयों जरूरत ही नहीं रही।
आयुर्वेद के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया गया है ।हड़ताल करने वाले डॉक्टरों को और इन डॉक्टरों के बीच से ही बने मेडिकल ऑफिसर को जनता को उन झोलाछाप डॉक्टरों से बचाने के लिए हड़ताल करनी चाहिए थी जो इन्होंने नहीं किया और एक प्रशिक्षित और डिग्री धारी डॉक्टर तबके का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि प्रशिक्षण के बाद वह भी कुछ तरह की सर्जरी करने का कानूनी हकदार हो जाएगा ।दोनों ही विधा के लोग मेहनत के बाद डिग्री पाते हैं ।कुछ आयुर्वेद दवाइयों का एलोपैथी वाले भी इस्तेमाल करते हैं जैसे लीवर आदि की दवा। अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति मे उपयोग आनेवाली बहुत सी दवाइयों का निर्माण पेड़ पौधों के सत्व तथा खनिज से होता है। इस तरह के विरोध से अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति वालों की साख ही गिरेगी। वैसे भी अगर आयुर्वेद वाले अच्छी सर्जरी नहीं कर पाएंगे तो मरीज आपके पास ही आयेगा। मरीज तो वहीं जाएंगे जहां अच्छी चिकित्सकीय सुविधा मिलेगी।
देश मे लोगों को डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं। आयुर्वेद डॉक्टर प्रशिक्षण के बाद अगर कुछ तरह की सर्जरी कर पाएंगे तो देश का भला ही होगा। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति वालों को दोयम दर्जे का देखने की जरूरत नहीं है ।अंग्रेजी तथा आयुर्वेद दोनों चिकित्सा पद्धति वालों को मानव सेवा के लिए चिकित्सा की अपनी विधियों का सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करना चाहिए ।
अंग्रेजी की गुलामी और श्रेष्ठता वाली मानसिकता से निकलकर हड़ताल इस विषय पर होनी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार हो इसके लिए धन का आवंटन हो अधोसंरचना का विकास हो और विकास हो आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का जो भारत की पहचान है ।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू ”
15 दिसंबर 2020
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