आखिर अभी भी किसान की खाद क्यों घट जाती है
आखिर अभी भी किसान की खाद क्यों घट जाती है
मोदी सरकार आने के बाद किसान के खाद की कालाबाजारी रुकी है। नीम कोटेड खाद आने लगी थी ।किसान को आसानी से खाद की उपलब्धता हो गई थी लेकिन इस बार की सरकार जो अपने दम पर पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार नहीं है तो पता नहीं क्यों बेईमानी और बेईमानों, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी कुछ ज्यादा अपना स्वभाव दिखा रहे हैं ।
इसका असर किसान की खाद पर भी है। माना कि मध्य प्रदेश में नई सरकार है लेकिन उपलब्धता तथा आवश्यकता में अंतर कालाबाजारियों द्वारा जानबूझकर किया जा रहा है और इसमें मिली भगत सरकारी कर्मचारियों की है।
किसान मौका देखकर खाद डालता है जब पानी हो और फसल उतने दिन की हो जाए। कोई भी किसान इतना धनवान नहीं रहता है कि वह स्टाक करके खाद रखे इसी का फायदा अधिकारी और व्यापारी उठाते हैं ।जहां एक आध हफ्ते की किल्लत अधिकारियों द्वारा खड़ी की गई वहीं व्यापारी दाम बढ़ाकर करोड़ो की कमाई कर लेता है और बाद में अधिकारियों को उनका हिस्सा दे दिया जाता है। इसमें स्थानीय सत्ता दल के नेता का भी हिस्सा रहता है। पिछले वर्षों तक इसमें काफी कड़ाई की गई थी लेकिन इस बार अधिकारी व्यापारी कुछ ज्यादा ही मौके का फायदा उठा रहे हैं ।
किसानों को समय पर खाद न मिलने से सरकार की छवि धूमिल होती है । सरकार किसानों के हित में कदम उठाती है तो सरकारी कर्मचारी उसमें पानी फेरने का काम करते रहते हैं ।अभी सरकार ने किसानों को बिना गिरवी के लोन की सीमा बढ़ाकर 1.60 लाख से 2 लाख कर दिया जिससे किसानों को खेती-बाड़ी के समय पैसा मिल सके तो अधिकारी ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं कि किसान को समय पर खाद की उपलब्ध नहीं हो पाती ।
मध्यप्रदेश मे विपक्ष के नेता एक जिले के कलेक्टर से जब इस खाद उपलब्धता की बात कर रहे थे तो पता चल रहा था कि अधिकारी को किसानी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कितनी खाद कितने बीघे के लिए चाहिए, कितनी मिल रही है इसकी जानकारी कलेक्टर को नहीं थी। सही जानकारी न होने और गलत जानकारी के अनुसार उपलब्धता के साथ सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही किसान और सरकार को भारी पड़ती है।
इतने वर्षों के बाद भी अगर खाद की उपलब्धता कम रहे या पता ना रहे की कितनी खाद लगेगी यह परेशान करनेवाली बात है। सरकार को अभी तक खाद की उपलब्धता मे आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए था। होना तो यह चाहिए था की कितनी खाद की आवश्यकता है उससे ज्यादा खाद सरकार के पास रहना चाहिए। खाद के नए कारखाने बनाने की जरूरत भी है। इस दिशा में सफलता अर्जित करना चाहिए। ऐसा ही एक कारखाना राजेंद्र शुक्ल उपमुख्यमंत्री जब उद्योग मंत्री थे तो रीवा में लगाना चाहते थे उन कार्यों में प्रगति होनी चाहिए। किसान खाद के लिए परेशान न हो उम्मीद तो सरकार से बनती ही है।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
15 दिसंबर 2024
Facebook Comments