सरकार डाल-डाल तो भ्रष्टाचारी पात-पात
सरकार डाल-डाल तो भ्रष्टाचारी पात-पात
मोदी जी ने कहा कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा तो भ्रष्टाचारियों ने कहा ठीक है आपके पास नहीं तो दूसरी जगह खा लेंगे और भ्रष्टाचारी घर में खाने की वजाय पिकनिक मनाने लगे।
निःसंदेह भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार पिछली सरकारों तथा गैर भाजपाई सरकारों की तुलना में कम है। लेकिन मोदी जी से दूर जहां पर भाजपा की सरकार राज्यों में है या अन्य पार्टियों की सरकारें हैं वहां भ्रष्टाचारी अपनी कलाकारी दिखाने मे कोई कमी नही रख रहे हैं। ऐसा होना एक लिहाज से लाजिमी भी है। अब जब सारे अन्य पार्टियों के विशेष लोग कुछ अच्छे लोगों के साथ भाजपा मे आ गए ,वाशिंग मशीन मे भी इनकी ऊपर ऊपर धुलाई तो हो गई लेकिन अंदर से तो ये अभी भी गंदे के गंदे ही हैं तो यह अपनी रंगत दिखायेंगे ही।
आज सरकारें जितना सरल होने का प्रयत्न करती हैं भ्रष्टाचारी उस सरलता मे भी अपना शिकार ढूंढ ही लेते हैं।
अब मध्यप्रदेश मे परिवहन विभाग का आरक्षक अकूत सम्पत्ति का मालिक तो है ही सोना चाँदी हीरे जवाहरात और करोड़ों की नगदी ऐसे फेंक रखी है जैसे कूड़ा करकट ।
ईडी ने इसके यहां से आधा कुंटल सोना जप्त कर लिया करोड़ों रुपए जप्त कर लिए लेकिन खजाना है कि मिलना बंद नहीं हो रहा।
कहते हैं कि पहले आर्थिक अपराध वालों ने भी इनको पकड़ा था लेकिन तब इनकी उनसे सेटिंग हो गई थी। ईडी से सेटिंग बन नहीं पाई।
मोदी जी के डर से सरकारों ने जहां भ्रष्टाचारियों पर कडाई की तो इन्होंने भ्रष्टाचार को संगठित अपराध की तरह बना लिया है। ज्यादा हो हल्ला नहीं हो काम चलता रहे।
राजस्व और परिवहन ही नहीं लगभग सभी विभागों में भ्रष्टाचार की सेटिंग ऊपर से नीचे तक पढ़े-लिखे अधिकारियों ने अच्छी तरह से कर ली है। बिना विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री के सहयोग के यह संभव नहीं है तो इन अधिकारियों ने व्यवस्थित तरीके से संबंधित विधायक, सांसद, मंत्री को जो इनके कार्यों को करनेऔर छुपाने मे मदद करें उनको अपने चंगुल मे ले लेते हैं और फिर इनका खेल चलता रहता है।
मोदीजी तथा इनके मूल विचारधारा वाले नेताओं से यह दूरी बनाए रखते हैं।लेकिन वह नेता जो मूल पार्टी के भीतर भ्रष्ट हैं और बाहर वाले जो केवल सत्ता की मलाई खाने के लिए पार्टी मे आयें हैं उनके साथ इनकी बल्ले बल्ले हैं।
सौरभ शर्मा सभी विभागों की हकीकत है।मैंने हर जगह परिवहन विभाग की अवैधानिक जांच को सभी की तरह देखा है और तहसील कार्यालयों में अवैध फैसला होते हुए भी देखा है।तहसील मे एसडीएम केवल पैसे लेकर फैसले लिख रहे हैं जो ज्यादा पैसा देता है उनके पक्ष में फैसला और अगर समय रहते दूसरा पक्ष ज्यादा पैसा दे दे तो पुराना फैसला बदलकर नया फैसला लिख दिया जाता। चारों तरफ लूट मची है पूरी जनता जान रही है एसडीएम के नाम से जनता तहसील जाने से कतराती है ।भ्रष्टाचार इस कदर है कि लोग तहसील न्यायालय के बाहर ही ले देकर मामला निपटाना चाहते हैं ।यह मैं अपनी आंखों देखी लिख रहा हूं दूसरी ओर सरकार रोज किसी न किसी एक भ्रष्टाचारियों को पकड़ रही है लेकिन स्थित वही है कि तुम डाल-डाल तो हम पात-पात वाली ।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
27 दिसंबर 2024
Facebook Comments