ग्राहक की संतुष्टि दुनिया का सबसे बड़ा विज्ञापन है
पिछले दिनों नागपुर में एक दुकान के बोर्ड में मैंने यह स्लोगन लिखा देखा। इसकी सार्थकता सार्वभौमिक है । केवल व्यापार ही नहीं जहां भी परस्पर लेन-देन की बात है चाहे वह किसी रूप में क्यों न हो यह लाइन सदैव प्रसांगिक है ।ग्राहक की जगह नाम कुछ भी हो सकता है संतुष्टि सदैव सबसे बड़ा विज्ञापन रहेगा ।अगर व्यापार में देखें तो बात सही है चमक धमक वाले विज्ञापन से एक बार तो अपना उत्पाद बेचा जा सकता है लेकिन अगर उत्पाद सही नहीं है उत्पाद से ग्राहक संतुष्ट नहीं है तो ग्राहक दूनी गति से उत्पाद की बुराई का विज्ञापन फैलाएगा और अगर उत्पाद सही है विज्ञापन गलत है तो ग्राहक अपनी संतुष्टि के आधार पर लोगों से कहेगा कि नहीं उत्पाद अच्छा है।
इसी बात को आज के राजनैतिक परिवेश में अगर ले तो सभी पार्टियां सारे माध्यमों से अपनी उपलब्धियों रूपी उत्पाद का विज्ञापन कर रही हैं। दुनिया के सारे प्रचार माध्यम इस कार्य के लिए लगे हैं। लेकिन समय समय पर यह देखा जाता है विज्ञापन चाहे जितना कर लिया जाए अगर मतदाता ग्राहक संतुष्ट नहीं है तो उत्पाद दोबारा नहीं बिक पाता है प्रत्याशी रूपी उत्पाद पेटी मे हीं बंद रह जाता है ।क्षेत्र में बिक के राजधानी मे चमक बिखेरने की अभिलाषा अधूरी रह जाती है। मतदाता की संतुष्टि यहां दुनिया के सबसे बड़े विज्ञापन का काम करती है अगर मतदाता संतुष्ट है तो प्रत्याशी रूप में उत्पाद की बल्ले-बल्ले हैं नहीं तो पड़े रहो कोने में।
इस वर्ष कई प्रदेशों के साथ अपने मध्यप्रदेश में भी चुनाव हैं और यहां भी ग्राहक की संतुष्टि ही काम आएगी ।विज्ञापन चाहे जितना कर लिया जाए अगर मतदाता ग्राहक संतुष्ट नहीं है तो शून्य बटा सन्नाटा है। मतदाता अपना मत देता है और बदले में शिक्षा, स्वास्थ्य ,सड़क, बिजली, पानी, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार मुक्त विकास चाहता है। समय पर अपने प्रत्याशी व्यापारी से चाहता है कि उसके मत की कीमत का प्रतिफल उसे मिलता रहे जिससे वह भी संतुष्ट रहे और प्रत्याशी ही मजा करें लेकिन अगर प्रत्याशी मत लेकर सत्ता के नशे में भूलवश सोच ले कि अब अपने कामों का ढिंढोरा पीट कर बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाकर अपना काम चला लूंगा तो वह भूल में रहता है क्योंकि विज्ञापन छपवाने का अधिकार देने वाला मतदाता ग्राहक है। और अगर वह असंतुष्ट है तो विज्ञापन चाहे जितने बड़े छपवा लें परिणाम शुन्य बटा सन्नाटा ही रहेगा ।जो भी पार्टी जो भी प्रत्याशी अपने मतदाता ग्राहक की संतुष्टि के विपरीत काम करते हैं वो चाहे जितना विज्ञापन कर लें बाजार में ना तो फिर उनका माल बिकता है और ना ही वह स्वयं दिखाते हैं ।
अभी 18 -19 जुलाई को सतना जिले में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा थी मैंने देखा कि पूरे यात्रा मार्ग में जगह-जगह लाभार्थी हितग्राही बैनर लेकर खड़े थे जो लाभ उनको मिला है उसको तख्ती में लिखकर अपनी संतुष्टि दर्ज करा रहे थे और जिनको लाभ नहीं मिला वह अपनी असंतुष्टि भी जाता रहे थे। यह बात अलग है कि संतुष्ट ग्राहक ज्यादा थे और असंतुष्ट कम ।यहां पर संतुष्ट ग्राहकों की ज्यादा संख्या सरकार के काम का अच्छा विज्ञापन कर रहे थी इनकी संख्या यह दर्शाती है कि सरकार को लाभ मिलेगा ।
क्योंकि ग्राहकों को अपने हिस्से का लाभ मिला है और इस संतुष्टि का लाभ सत्ताधारी दल को ।अब सत्ताधारी दल पर निर्भर करता है कि वह अपने ग्राहकों की संतुष्टि को चुनाव तक बरकरार रख सके अगर यह संतुष्ट ग्राहक ऐसे ही ज्यादा संख्या में रहे तो इन्हें इनके विज्ञापन का लाभ मिलेगा और उनके संतुष्ट ग्राहक इन्हें सत्ता दुकान की पुनः कुंजी सौंप देंगे ।जहां विज्ञापन केवल ग्राहक को उत्पाद की जानकारी प्रदान करता है वही संतुष्ट ग्राहक पूरे उत्पाद की जानकारी का विज्ञापन पूर्ण संतुष्टि के साथ करता है ।
वर्तमान में सत्ताधारी पार्टी और प्रमुख विपक्षी पार्टी दोनों रथयात्रा के रूप में अपना विज्ञापन कर रहे हैं सत्ताधारी दल ने अपने उत्पाद के पैकेट ग्राहकों तक भिजवा दिए हैं यह बात अलग है कि बहुत से पैकेट शासन ने ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया कुछ पैकेट छीनाझपटी में फट भी गए हैं लेकिन ज्यादातर पैकेट ग्राहक तक पहुंच गए हैं। विपक्षी पार्टी के खाली पैकेट और फटे हुए पैकटों की याद आज भी ग्राहक जनता के जेहन में है निष्कर्ष यह निकलता है कि सत्ताधारी दल ने अपने उत्पाद ग्राहक मतदाता तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचा दिया है और वह पूर्व की अपेक्षा ज्यादा संतुष्ट है ।अभी वह इनका का विज्ञापन करता रहेगा और इनको सत्ता का लाभ मिलेगा।
अजय नारायण त्रिपाठी”अलखू”