सत्ता पक्ष ने बर्बाद की विपक्ष की खेती
व्यंग्य
सत्तापक्ष ने बर्बाद की विपक्ष की खेती
अभी दो-तीन दिन पहले विपक्ष ने सरकारी खेतों में जो ज्यादातर बरसात के मौसम में सड़कों पर बनते हैं उन पर धान का रोपा लगाया था। धान कुछ बढ़ पाती उसके पहले ही सत्ताधारी दल ने कहर बरपा दिया सत्ताधारी दल ने बुलडोजर लगाकर विपक्ष की पूरी धान को तहस-नहस कर दिया। इन्होंने इतनी भी संवेदना नही दिखाई कि बीज के लिए तो कुछ धान उग जाती। पहले तो सत्ताधारी दल ने विपक्ष की धान पर मुरुम पटवाया उसके बाद उन पर गिट्टी बिछवा दी। सत्ताधारी दल का पूरा प्रयास है कि विपक्ष की धान न उगने पाए और न बढ़ने पाए।
यह अमानवीय घनघोर काम जब हो रहा था तो जनता ने विपक्ष के लिए जरा भी सहानुभूति नहीं दिखाई। जनता ने विपक्ष के खेतों को बर्बाद होते हुए खुशी-खुशी देखा वैसे जनता को ऐसा करना नहीं चाहिए था। संवेदना के कुछ शब्द तो बोल देती लेकिन इस भीड़ में कुछ सुधीजन भी थे उन्होंने दबी जुबान में विपक्ष को नए खेतों का पता जरूर दे दिया है वह अपनी धान वहां रोप सकते हैं ।भगवान अगर न रुठा और सत्ता में बैठे लोगों की नजर अगर इन खेतों की तरफ न गई तो यहां पर इनकी फसल अच्छी होगी ।छोटे बड़े सभी तरह के खेत यहां पर मौजूद हैं यह शहर के मुख्य सड़क से बिल्कुल लगे हुए हैं अच्छे खासे मचे हुए खेतों में बढ़िया उपजाऊ कंकड़ रहित मिट्टी है ।चिकनी मिट्टी और पानी से सराबोर मचे हुए खेतों की छटा देखते ही बनती है अगर इन खेतों में विपक्ष ने अपनी धान रोपी तो बंपर उत्पादन की पूरी गारंटी है।जनता ने विपक्ष के साथ कम से कम इतनी संवेदना तो जरूर व्यक्त की है कि उन्होंने इन खेतों का पता उन्हें दे दिया है।वैसे जबसे सत्ताधारी दल प्रदेश की सत्ता में आया है तो पूरी निष्ठुरता के साथ इसने आज के विपक्ष ने जो पूर्व में सत्ता मे रहकर काम करते हुए हुए खेतों का निर्माण किया था उन्हें बड़ी ही बेदर्दी के साथ समतल करने का काम किया है। इनकी निष्ठुरता का परिणाम रहा है कि कई वर्षों तक तो विपक्ष को खेत ढूंढने के लिए आदमी लगाने पड़ गए थे लेकिन इस वर्ष बिल्ली के भाग से छींका फूटने जैसी बात हुई है और सत्ताधारी दल ने विकास कार्य करने का काम जिन कंपनियों को दिया है उन कंपनियों ने विकास कार्य करने के बजाए हर जगह पर छोटे बड़े खेत, तालाबों का निर्माण कर दिया है ।सैकड़ों की संख्या में खेत तो मेरे निवास के आसपास ही हैं ।पलेवा लगे हुए इतने सुंदर खेत हैं कि कहना हि क्या ? इन खेतों में चुपके से विपक्ष धान लगा सकता है और अगर सत्ताधारी दल को इन खेतों मे लगी फसल का पता ना लगने पाया तो बम्पर उत्पादन होगा ।वैसे लोगों की संवेदना धान की खेती करने वाले किसानों से भी है उनका कहना है कि या तो सत्ताधारी ,आप खेत बनाइए मत अगर इतने वर्षों से खेत बना ही दिए हैं और बेचारे किसानों ने अपनी धान रोप ही दी है तो बेदर्दी के साथ उसे उजाड़िए मत ।वैसे इस समय खेत ,मेढ ,तालाब सब जगह विपक्ष खेती करने की इच्छा से काम कर रहा है ।इस बार बरसात जरा देर से हुई है लेकिन पहली बरसात से ही इन्होंने बोनी चालू कर दी है ।सत्ताधारी को पता न चले चुपके-चुपके इन्होंने अधिकारियों को ऊपर के भाग का लालच देकर या जो कर्मचारी रुठे हैं उन्हें पुचकारकर अपना फायदा काफी कर लिया है ।इन अधिकारियों ने विपक्ष को खेतों की जानकारी देने के साथ जहां-जहां संभव हुआ है वहां का पट्टा भी इनके नाम कर दिया है ।क्योंकि सकल भूमि गोपाल की है सारी भूमि सरकारी है जहां पट्टा वितरित भी हो गए हैं वहां भी सत्ता में बैठे हुए लोग पट्टा निरस्तगी का प्रयास कर रहे हैं साथ ही खेतों के समतलीकरण का काम भी कर रहे हैं ।किस्मत की बात है किसको लाभ मिलेगा ,किसकी किस्मत फहराएगी। अगर विपक्ष की धान पक गई तो इनकी बल्ले बल्ले हैं और अगर सत्ताधारी दल इसी तरह पट्टा निरस्तगीकरण और खेतों के समतलीकरण का काम करता रहा तो विपक्ष की खेती को बड़ा नुकसान होगा और सत्ता में बैठे हुए लोगों को बड़ा फायदा मिलेगा ।अब आगे आगे देखिए होता है क्या?
अजय नारायण त्रिपाठी अलखू