हमें ‘ही’.. ‘शी’.. में फंसा कर वह ‘झी’ हो रहे
अंग्रेजी भी अजीब है पकड़ो तो नखरे दिखाएगी और छोड़ दो तो पीछे पीछे आएगी। जब इसे चाहत की हद तक लोग होठों से लगाते हैं और बिना मसले इसे बोल मे छोड़ दे तो उसे देहाती कहकर बेइज्जत किया जाता है। अगर यही देहाती जानबूझकर अंग्रेजी की बेइज्जती करे उसे मसलकर न बोले अपने ठेठ अंदाज में रौंंदता चला जाए तो फिर इसी देहाती की जय जय ।हमारे राजनैतिक कॉमेडियन लालू जी और कॉमेडी शो करने वाले कपिल शर्मा इसके बेहतरीन उदाहरण हैं।
है न मजेदार ,अगर आप अंग्रेजी के पीछे भागो तो यह नखरे दिखायेगी और आपको दौड़ती ही रहेगी और अगर आप इसे नजरअंदाज कर अपनी मस्ती में बढ़ो तो गिरती पड़ती आपके पीछे पीछे आएगी ।
डी वो ‘डू’ , जी वो ‘गो’ में परेशान हर कोई हुआ है ।सभी इसके चक्कर में पड़े हैं। स्त्रीलिंग, पुलिंग यानी कि लड़की लड़के के लिए भी संबोधन अलग-अलग। लड़की के लिए ‘वह’ के लिए ‘शी’ और लड़के के लिए ‘वह’ के लिए ‘ही’। वह लड़का है तो कहेंगे ‘ही इस ब्वॉय’, वह लड़की है के लिए कहेंगे ‘शी इस गर्ल’। जैसे तैसे आदमी यह ही.. शी.. सीखता है और अपने आप को अंग्रेजी बाबू समझ कर आगे बढ़ाता है यह अलग बात है कि पग पग मे हजारों रुकावटें गलबहियाँ करती रहती हैं तो अंग्रेज और अंग्रेजी कुछ न कुछ नया बखेड़ा खड़ा कर देते हैं।
अभी तक हम ही.. शी.. पढ़ते रहे और जिन्होंने अंग्रेजी हम पर लादी वह अब ‘झी’ कहने लगे ।आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लंदन ने लिंग भेद खत्म करने के लिए अपनी यह व्यवस्था दी है कि छात्र-छात्राएं एक दूसरे को ही..शी.. नहीं ‘झी’ से संबोधित करें ।इससे पता नहीं चलता कि लड़के को संबोधित किया जा रहा है कि लड़की को। यहां यह व्यवस्था पिछले दो वर्षों से संचालित है।इसकी देखा देखी कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने भी अपने यहां ‘झी’ का संबोधन प्रारंभ कर दिया है।
हम यहां भारत में ही.. शी.. में फंसे हैं और वहां वह ‘झी’ हो रहे हैं।
सवाल यह भी है कि क्या इससे लैंगिक समानता आ जाएगी ।जबकि लैंगिक समानता की जगह सम्मानता होनी चाहिए ।यह आंख मूंदने जैसी बात के अलावा कुछ नही है। प्रकृति में जो कुछ भी है उसका समान सम्मान होना चाहिए। क्या झी.. कहने से लड़का, लड़की हो जाएगा या लड़की, लड़का ।सम्मान तो झी.. के बिना भी आ सकता है।मान सम्मान के स्तर पर समानता होनी चाहिए चाहे वह लैंगिक आधार पर कोई भी व्यक्ति क्यों न हो ।लेकिन अंग्रेज और अंग्रेजी दोनों ही कुछ विचित्र करने में अपनी विशिष्ठता दिखाते हैं ।
दुनिया की सभी सभ्यताएं कुछ न कुछ दुनिया को अच्छा देती हैं तो कुछ बुरा भी। जहां भी अच्छा हो उसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए। झी ..कहने से थोड़ी देर के लिए तो परिचय मिट जाएगा लेकिन क्या इससे वास्तविक परिचय मिटेगा ।वैसे भी परिचय मिटाना कौन सी समानता और सम्मान कहलायेगा। अब देखिए न हम तो पहले से ही चाहे वह लड़का हो या लड़की दोनों के लिए ‘वह’ कह रहे थे इन्होंने ही पहले ही..शी.. के चक्कर में फंसाया और अब खुद ‘झी’ बन रहे हैं।
अजय नारायण त्रिपाठी “अलखू”
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