उन्हीं हार्वेस्टर को अनुमति मिले जो भूसा भी बनायें

उन्हीं हार्वेस्टर को अनुमति मिले जो भूसा भी बनाएं

 मार्च के अंत में , पूरे अप्रैल और मई मे गेहूं की कटाई लगभग  पूर्ण होती है। इस समय खेतों में चारों ओर बड़े-बड़े हार्वेस्टर कटाई करते दिखाई देते हैं ।हारवेस्टर गेहूं के पौधों से बाली वाले भाग से गेहूं अलग कर डंठल खेत में ही छोड़ देते जिससे या तो भूसा बनाने वाली मशीन से भूसा बना दिया जाता है या फिर नरवाई के रूप में इसको जलाया जाता है जो पर्यावरण के नुकसान देय है। गौवंश के संरक्षण के लिए सरकार ने गौशालायें में बनवाई हैं लेकिन वहां भूसा चारा चाहिए, आवारा पशु  किसानी के लिए एक बड़ी समस्या हैं जिसका  समाधान नरवाई को भूसे में तब्दील करके कुछ हद तक किया जा सकता है। पराली पैरे और भूसे के रूप में उपयोग आ जाए साथ ही अन्य निर्माण कार्य में इसका उपयोग हो जाए ।  खेतों में नरवाई, पराली जलाने की सख्त मनाही है इसके लिए अन्य उपाय के साथ  जरूरी है कि उन्हीं हार्वेस्टर को फसल काटने की अनुमति मिले जो साथ साथ भूसा भी बनाते चले। बिना भूसा बनाने वाला हार्वेस्टर को जिले के  कलेक्टर को चाहिए कि जिले में घुसने की अनुमति न दें। पुलिस थानों को अपने क्षेत्र में घुसने वाले सभी हार्वेस्टर की जानकारी हो कि हार्वेस्टर भूसा बनाने वाली तकनीक से युक्त है कि नहीं। नरवाई, पराली जलाने से खेत पर्यावरण के साथ किसान को सबसे ज्यादा नुकसान है लेकिन जल्दी लाभ के चलते या जहां अधियां ,ठेके में खेती कर रहे लोग अपनी लागत में बचत के लिए ऐसा काम कर रहे हैं। लेकिन नरवाई पराली जलाने से भूसे की कमी होने  से मवेशियों के खाने में कमी हो जाती है।ऐसे मे  मवेशी ऐरा घूमते हैं और किसान की फसल चट करते हैं ।सड़क में बैठे पशु जहां दुर्घटना का कारण बनते हैं वही रात में फसल के लिए शत्रु। गोवंश और पशुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था के तंदुरुस्ती  के लिए जरूरी हैं लेकिन जब भूसा पर्याप्त हो और यह तभी हो सकता है जब हार्वेस्टर भूसा भी बनाए कटाई के साथ।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
9 मई 2022
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