गांव के साथ प्रधानमंत्री आवास मे भी भेदभाव है

गांव के साथ प्रधानमंत्री आवास में भी भेदभाव है

 शहरी क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास के लिए ढाई लाख रुपए हितग्राही को मजदूरी के साथ मिलते हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्र में निर्माण के लिए डेढ़ लाख मजदूरी के साथ। जो भेदभाव सदियों से भारत के गांव और ग्रामीणों के साथ होता आया है वह आज भी हो रहा है। सरकार चाहे किसी की भी रही हो वोट तो सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र से चाहिए सुविधाएं लेकिन शहर को।
आज की केंद्र सरकार भी गांव के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। नगर परिषद का वार्ड जो शहरी क्षेत्र में आता है उसमें गृह निर्माण के लिए ढाई लाख सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं इस में डेढ़ लाख केंद्र सरकार देती है और एक लाख राज्य सरकार का मद है। नाम अलग-अलग है लेकिन मिलता ढ़ाई लाख ही है ।वहीं गांव में भी प्रधानमंत्री आवास बन रहा है उतना ही बड़ा बन रहा है लेकिन उसको डेढ़ लाख रुपए मिल रहा है एक लाख राज्य सरकार और पचास हजार केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा का। सड़क के इस पार वाले को ढाई लाख सड़क के उस पार वाले को डेढ़ लाख। मेड के इस पार वाले को ढाई लाख मेड के उस पार वाले को डेढ़ लाख।
 जबकि गांव में सामान महंगा मिलता है। शहरी क्षेत्रों में सीमेंट आदि की दुकानें रहती यहां गिट्टी बालू सीमेंट लोहा सब का भाड़ा कम लगता है लेकिन यही सामान जब गांव जाता है तो भाड़ा ज्यादा लगता है। इस तरह गांव में घर बनाना शहर से महंगा है लेकिन विडंबना यह है कि शहर में घर बनाने के लिए सरकार द्वारा ज्यादा पैसा दिया जाता है गांव में कम। गांव में जो भी प्रधानमंत्री आवास बन रहे हैं उसमें से  हर दूसरा हितग्राही का कर्जदार है या तो वह ब्याज देते देते मरा जा रहा है या फिर वह जमीन बेचता है। मैंने सैकड़ों  हितग्राही देखे हैं जिन्होंने अपनी जमीन बेचकर प्रधानमंत्री आवास पूर्ण कराया। यह ठीक है कि यह सरकार द्वारा एक मदद है लेकिन लालच भी तो है पक्के मकान का। पक्का मकान का लालच किसे नहीं लुभाता है अगर घर का मालिक ना भी चाहे तो उसकी पत्नी बच्चे  चाहते हैं कि दूसरे का घर पक्का बना है तो हमारा भी पक्का बने।
 वैसे इस योजना में देखा जाय तो केंद्र की मोदी सरकार का गांव से सौतेला व्यवहार है। होना तो यह चाहिए था कि गांव में तीन लाख मिलते शहर में ढाई लाख। हकीकत मे इस डेढ़ लाख में भी उसको एक लाख तीस हजार ही मिलता है बाकी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाता है। केंद्र और सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि अगर गांव को शहर से ज्यादा आवास निर्माण के लिए पैसा नहीं दे सकते हैं क्योंकि उनको गांव के साथ सौतेला व्यवहार करना ही है तो कम से कम बराबर में तो दे दें जिससे गांव का आदमी कम कर्जदार हो।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
  02 अप्रैल 2022
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