आत्मा परमात्मा की बात करने वाले खुद ही शरीर पर अटक गए

21वीं सदी नए मठाधीशों के विकास की भी सदी है ।थोक के भाव में मठाधीश पैदा हुए हैं ।लम्बे लम्बे प्रवचन बड़े-बड़े पंडालों में पूरी पांच सितारा सुविधा से संपन्न इन बाबाओं का मायालोक अलग ही है ।आत्मा, परमात्मा ,त्याग, प्रेम भाईचारे की बात केवल इनके मुंह से निकली बात है कार्य इनका सदैव इसके उल्टा होता है। आत्मा की बात करने वाले यह मठाधीश शरीर के तल पर ऐसे उलझे हैं कि श्रृंगार में फिल्मी हीरो हीरोइन इनके सामने फेल हैं ।लटक झटक वाले इन बाबाओं के पीछे खूबसूरत महिलाओं की भीड़ है। साध्वीओं के  पीछे पुरुषों की भीड़ है ।सारा खेल शरीर के तल पर चल रहा है शरीर सुख में इतने मग्न हुए कि पूरी तरह से नग्न होने में इन्होंने बिल्कुल देरी नहीं लगाई ।वयस्क फिल्मों की तरह उनके कृत्य सरेआम हो रहे हैं अपनी दमित वासनाओं को अध्यात्म का चोला पहनाकर इन्होंने खूब तृप्त करने का काम किया है ।इनको इन्हीं की तरह के चेले चेलियां भी खूब मिल रहे हैं इन बाबाओं की तरह ही इनके चेले चेलियों की वासनाओं की भी तृप्ति हो रही है ।और यह सब काम यह बहुरूपिए धर्म की आड़ में कर रहे। सभी धर्मों में छुपे बहुरूपिए अपनी अतृप्त वासनाओं के लिए धर्म का लबादा ओढ़कर घूम रहे हैं।इनके आश्रम आश्रम न होकर पूरी पूरी तरह से व्यावसायिक संस्थान हैं जागने से लेकर सोने तक की दिनचर्या में काम आने वाले सभी उत्पाद इनके पास इनकी खुद की फैक्ट्री मे उपलब्ध हैं।धर्म अध्यात्म वेद वेदांग या दूसरे धर्म ग्रंथ इन के मनोरंजन के साधन के एक अंग मात्र बनकर रह गए हैं।इनके आश्रम बख्तरबंद किलों का रूप धारण कर चुके हैं ।इनका पूरा प्रयास रहता है कि यहां पर हो रहे दुष्कृत्यों से दुनिया अनजान रहे। त्याग की शिक्षा देने वाले इन मठों मे प्रवेश पाने की फीस निर्धारित है जैसी सुविधा वैसी फीस। पांच सितारा सुविधा वाले यह केंद्र आध्यात्मिक की जगह की केवल भौतिक भोग की शिक्षा देते हैं। इन मठों का कोई मठाधीश खुद को गोली मार रहा है तो कोई दूसरों को गोली मरवा रहा है।इन बाबाओं के कार्यक्रम की एक निर्धारित फीस है जो सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं इनके कार्यक्रम भी अब केवल माफिया ही करवा सकते हैं इनके चेले चिलियों की पहली क्वालिफिकेशन सुंदर शरीर है और वह कितने लोगों को फंसा कर अपने आश्रम में ला सकते हैं इससे उनका महत्व  है ।मोटे सेठों को जो पटा कर लाए वह आश्रम का सबसे चहेता जो गा भी ले नांच भी ले खूब लटके झटके मारे वह आश्रम का सबसे प्रमुख। इनके लिए श्रीमद्भागवत व्यापार हो गई है रामायण व्यापार हो गई कुरान बाइबिल व्यापार हो गई इन्होंने सब में अपना व्यवसायिक फायदा ढूंढ लिया है।इन बहुरूपिए धर्म के व्यापारियों से आज समाज का बचना मुश्किल है क्योंकि यह अपने ही स्वभाव वाले एजेंट चारों तरफ फैलाए हुए हैं और यह एजेंट अपने उत्पाद का प्रचार करते चारों ओर घूम रहे हैं जो ज्यादा ग्राहक फंसा कर  लाता है मठ के मठाधीश का सबसे चहेता है ।
यह सच है कि सभी सभ्यताओं में अध्यात्म का महत्व सबसे ऊंचा है आध्यात्मिक व्यक्ति का समाज में सबसे ज्यादा सम्मान भी है इसी लिए यह धनपशु ,काम पिपासु अध्यात्म का चोंगा पहन कर समाज को ठगने का काम कर रहे हैं ।आत्मा परमात्मा की झूठी बात करने वाले मठाधीश सदैव शरीर के तल पर जीते है आज इन बहुरुपियों से बचना जरूरी हो गया है ।
व्यक्ति, परिवार ,समाज की सजगता ही इनसे बचने का एकमात्र उपाय है । कानून की पकड़ तो बाद में केवल खानापूर्ति रह जाती है।
अजय नारायण त्रिपाठी   “अलखू”
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