स्क्रेपिंग पॉलिसी, ज्यादा अच्छाई भी बुराई में बदल जाती है
स्क्रेपिंग पॉलिसी, ज्यादा अच्छाई भी बुराई में बदल जाती है
निःसंदेह गडकरी जी एक अच्छे व्यक्ति और मंत्री हैं लेकिन उन्हें यह भी समझना पड़ेगा कि भारत कभी भी अति को पसंद नहीं करता ।
पुराने वाहन को नष्ट करके नए वाहन का कानून उचित है लेकिन ज्यादती करना उचित नहीं। जो वाहन पुराना हो लेकिन अच्छी स्थिति में हो तो वह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी है नया खरीदने की उसकी क्षमता नहीं है ऐसे मे पुराने वाहन का उपयोग गलत नही कहा जा सकता है ।
एक हद तक देश के विकास के लिए पुराने वाहन भी सहयोगी रहते हैं उनके प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए ना कि उनको नष्ट करने में अपयश वाली स्थिति में आना चाहिए ।
अब सरकार इस विषय में सही रास्ते में आ रही है पहले की पूर्ण बहुमत में यह सब घमंड से भरे थे। मोदी जी हों चाहे गडकरी जी सब की भाषा अकड़ वाली रहती थी अब वह भाषा नरम हो गई है ।
मोदी जी का अकेले खड़े होकर फोटो खिंचवाना गडकरी जी का पत्रकारों को उल्टा सीधा जवाब देना यह सब याद है।सारी सब्सिडी खत्म करने की बात करना । एक बार एक पत्रकार ने एक कहा था कि पत्रकारों को टोल टैक्स में छूट मिलनी चाहिए राज्य सरकार देती है तो गडकरी जी का जवाब नकारात्मक तो था ही उन्होंने सीधे मना करते हुए पत्रकार वर्ग को शर्मिंदा किया ऐसा ही मोदी जी ने रेलवे में जो छूट पत्रकारों और बुजुर्गों को मिलती थी उसको बंद किया बाद में लागू किया लेकिन मतलब कुछ रह नहीं गया।
प्रभुता में अकड़ आना स्वाभाविक है और उसे अकड़ में कुछ नुकसान होना भी लाजिमी में है।
स्क्रेपिंग पॉलिसी के समाचार से जनता में भय का वातावरण निर्मित हुआ ।अब मेरे पास पुरानी गाड़ी है मैं नई गाड़ी खरीद नहीं सकता कभी-कभी अपने परिवार के साथ कहीं जाने के लिए इसका इस्तेमाल करता हूं गाड़ी की स्थिति अच्छी है ऐसे में गाड़ी को कबाड़ के भाव बेचना और बिना गाड़ी के होना कष्टप्रद लगता है। सरकार को कोई नियम ऐसा नहीं बनना चाहिए जो जनता के लिए कष्टकारी हो नियम मध्य वर्गी होना चाहिए । अब जब सरकार सहयोगियों के दम पर चल रही है तो अब इस स्क्रेपिंग पॉलिसी में ऐसा सुनने में आ रहा है कि सरकार पुनर्विचार करने वाली है। इनको अब ऐसा करना भी पड़ेगा क्योंकि अब अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं है सहयोगियों की भी अब बात सुननी पड़ेगी। अब ऐसा कहा जा रहा है कि वाहन की उम्र नहीं उसका प्रदूषण दिखेंगे।
वैसे प्रदूषण देखने वाला नियम ही अपने आप में प्रदूषित है। प्रदूषण नियम भ्रष्टाचार को और बढ़ने वाला नियम है। फर्जी तरीके से पियूसी बनती है। ज्यादातर देखने में आता है कि कंडम वाहन में ऑफिस बनाकर पियूसी देने वाले अपना ऑफिस चलाते हैं।
खुद प्रदूषण फैलाने वाले और कंडम वाहन में बैठकर दूसरों को ज्ञान बांटते हैं। फोन से पियूसी बन जाती है। दलालों के हाथ थोक भाव में पियूसी बनाकर पहुंचाई जाती है। यह प्रदूषण नियंत्रण चेकिंग भ्रष्टाचार का एक और माध्यम बन गया है जितना ज्यादा नियम उतना भ्रष्टाचार यह मानकर चलिए। खराब और प्रदूषण फैलाने वाले वाहन अपने आप दिख जाते हैं उन पर कार्यवाही की जा सकती है। सरकारों को चाहिए कि ऐसे वाहन कैमरे में कैद करें उनको देखे न कि नियम बनाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दें। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि ज्यादा अच्छाई जो लोगों के लिए हितकारी ना हो सबके लिए बुराई में बदल जाती है।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
12 सितंबर 2024
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