भारतीय संगीत, संस्कृति के वाहक उस्ताद जाकिर हुसैन
भारतीय संगीत, संस्कृति के वाहक उस्ताद जाकिर हुसैन

9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे उस्ताद जाकिर हुसैन पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से अलंकृत थे। उन्हें पांच ग्रेमी अवार्ड मिले थे। जाकिर हुसैन तबला वादक के साथ संगीत निर्माता और फिल्म अभिनेता भी थे।
जाकिर हुसैन विख्यात तबला वादक उस्ताद अल्लाह रक्खा के बेटे थे। 1988 जब पद्मश्री मिला तो वह 37 वर्ष की आयु में थे। 2002 में पद्म भूषण और 2023 में राष्ट्रपति द्रोपदि मुर्मू द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
उस्ताद जाकिर हुसैन को तबला वादन में महारत हासिल थी वह उनकी पहचान है लेकिन दिलों में राज करने का कारण उनका अच्छा स्वभाव तथा एक नेक इंसान होना है।
इस महान तबला वादक मे सच स्वीकार करने की क्षमता थी एक अच्छे इंसान की यही पहचान है कि वह सच स्वीकार स्वीकार्य करे और झूठ से दूर रहे। उसको सम्मान दे जिसके दम पर वह समाज में सम्मानित है। इनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा जो स्वयं एक महान तबला वादक थे वह भी सच को स्वीकारने वाले व्यक्ति थे।
भारतीय शास्त्रीय संगीत सनातन धर्म आधारित है और इन पिता पुत्र को अपने ज्ञान के मूल आधार पर गर्व था और उनका सम्मान करने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। धर्म के मर्म को जानने के ज्ञान ने इन दोनों को इस लायक बनाया कि लोगों के दिलों पर तबला वादन के दुलार के साथ अपने अच्छे स्वभाव के कारण राज कर सके ।
इनके पिता ने इनके पैदा होने पर उनके कानों में पहली ध्वनि ताल की डाली थी। उन्होंने हमेशा विद्या की देवी सरस्वती,शिव जी, गणेश जी, कृष्ण भगवान और इनके जो वाद्य यंत्र हैं जो भारतीय संगीत के मूल है उनके कार्य और नाम को लेने में कभी परहेज नहीं किया। जो जहां से सीखा उसे बताने में परहेज नहीं किया ।अपने समय के सभी महान वादकों के साथ इन्होंने जुगलबंदी की है। एक कार्यक्रम के समय जब इन्हें पद्मश्री मिलने की जानकारी पहले इनके पिता और बाद में मंच में सितार बजा रहे पंडित रविशंकर जी को हुई तो उन्होंने इन्हें बधाई देते हुए जाकिर हुसैन को उस्ताद जाकिर हुसैन कहा ।
इनकी विनम्रता इन्हे लोगों के दिलों में राज करने की क्षमता देती है। भारतीयता उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे महान लोगों के आचरण में ही है ।भारतीयता यही है सभी को सम्मान । क्योंकि भारतीयता यह जानती है की पूर्णता कभी और कहीं नहीं है सभी अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं ।
कोई एक विचार भी पूर्ण नहीं नहीं है। वैसे भी वह जिस पंथ को मानने वाले थे उसमें गायन वादन को मोलवियों द्वारा हराम कहा गया है और मजेदार बात यह भी है कि इस पंथ को मानने वाले ज्यादातर लोग गायन वादन से जुड़े हैं । जो लोग इस सत्य को स्वीकार करते हैं कि मूर्खता नहीं कूप मंडूकता नहीं ऐसे लोगों से ही भारत है।
उस्ताद जाकिर हुसैन वास्तव में भारतीय पहचान थे उन्होंने एक इटालियन महिला से विवाह किया और अंतिम सांस उन्होंने सेंनफ्रांसिसको कैलिफोर्निया अमेरिका मे ली । लेकिन वह हमेशा लोगों के दिलों में एक खूबसूरत संगीत ताल बनकर अमर रहेंगे।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
18 दिसंबर 2024
Facebook Comments