समृद्ध विरासत विष्णु वराह मंदिर कर्णपुरा – कारी तलाई 

समृद्ध विरासत विष्णु वराह मंदिर कर्णपुरा – कारी तलाई

वर्तमान मैहर जिला के भदनपुर से कटनी जिला के विजयराघवगढ़ जाते समय बीच में करणपुरा गांव पड़ता है। इसी से लगा गांव कारी तलाई है। करणपुरा गांव में भव्य भग्नावशेष विष्णु वराह मंदिर के हैं जो कल्चुरी कालीन है तथा इसी के साथ जैन मूर्तियां भी हैं।
 शैव,वैष्णव, जैन संस्कृति को दर्शाते  भग्नावशेष हमें अपने अतीत पर गौरवान्वित करते हैं।
 पहली बार मैंने इस जगह को लगभग 23 वर्ष पहले देखा था बाद में रास्ता खराब होने के कारण इधर से आना जाना संभव नहीं हुआ अभी पुनः 5 मई 2024 को इस जगह से जाना हुआ तो इसने अपनी ओर आकर्षित कर लिया, काफी देर तक  मैं यहां परिवार सहित रहा।आसपास के लोग और यहां के कर्मचारी तथा इस  स्थान  को देखकर जितना जान समझ  सकता था समझा ।
 जितना ज्यादा  इस जगह को जाना अपने पूर्वजों के प्रति गर्व का भाव जागृत होता गया। अद्भुत संरचना का निर्माण उनके द्वारा किया गया है। जानकारी तथा छायाचित्र लेकर हम लोग कुछ देर से डोकरिया पहुंचे। चाय नाश्ते के समय हमारे सास – ससुर जी ने देरी का कारण पूछा । सामान्यतः हम लोग भदनपुर मे हनुमानजी के दर्शन उपरांत सीधे डोकरिया गांव पहुंच जाते हैं लेकिन इस बार विलंब से थे। हम लोगों द्वारा विष्णु वराह मंदिर दर्शन की जैसे ही बात बताई गई हमारी सासू माँ
  श्रीमती  शकुंतला शुक्ला जी के चेहरे पर एक अलग तरह का आनंद और आवाज मे खनक आ गई उन्होंने  बताया कि मेरा बचपन कारीतलाई में बीता है। उन्होंने बताया कि उनकी मां का निधन  बचपन में ही होगा था उनका लालन पालन उनकी बुआ – फूफाजी के यहां कारीतलाई मे ही हुआ ।
 इसी गांव के विद्यालय में उनकी सातवीं कक्षा तक शिक्षा हुई है उन्होंने बताया  कि विद्यालय के दरवाजे के दोनों ओर कच्छ – मच्छ की खंडित मूर्तियां रखी है ।  कारीतलाई गांव के काली मंदिर तथा एक अन्य मंदिर में भी बहुत सी मूर्ति तथा विष्णु वराह मंदिर से निकले पत्थर लगे हैं । मंदिर मे लगे शिलालेख के बारे मे भी उन्होंने बताया। मंदिर आज पुरातत्व विभाग की धरोहर है , । मेरे ससुरजी श्री लक्ष्मी प्रसाद शुक्ला जी ने भी अपनी स्मृतियां साझा की।
 माताजी से बड़ी  जानकारी मिल गई थी मेरी सासू मां ने बताया कि हम लोग विष्णु वराह मंदिर तक खेलने जाते थे वहां से अपने आप उगने वाली भाजी बथुआ आदि खोंट लाते थे।
 वापस रीवा आते समय मैंने कारीतलाई विद्यालय जाकर कच्छ – मच्छ की मूर्तियां देखी। इस धरोहर की प्राचीनता और महत्व बताने के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना सूचना पटल लगा रखा है।
 वहीं पर एक प्राचीन हनुमान मंदिर तथा कुआं है जो आज भी काफी सुंदरता लिए हुए है।
 कारीतलाई का काली मंदिर जो सड़क से लगा है विद्यालय थोडा अंदर है, देवी मंदिर मे सुंदर मूर्तियों के साथ मंदिर की दीवार पर दो शिलालेख चुने हुए हैं।
 नवमीं शताब्दी में कलचुरी राजा लक्ष्मण राज प्रथम के समय इस गांव का काफी महत्व था, दसवीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया गया । यह शैव, वैष्णव तथा जैन केंद्र भी रहा। विष्णु अवतार वराह, शिवलिंग, तथा एक खंडित जैन प्रतिमा आज भी यहां  मौजूद है।
 बताते हैं कि यहां की महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक सामग्री रायपुर छत्तीसगढ़ तब का मध्य प्रदेश  तथा जबलपुर  पुरातत्व संग्रहालय में रखी है ।
कलचुरियों के बाद यह क्षेत्र गुमनामी में चला गया। रीवा के गोर्गी  सतना के कर्णपुरा भरहुत तथा खजुराहो तक कलचुरियों ने अपनी कला रचनाधर्मिता भव्य निर्माण कार्य से  क्षेत्र को सम्पन्न   किया।
 अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान का 1873 – 74 में दौरा किया था और उन्होंने इस स्थान का विस्तार पूर्वक वर्णन कर दुनिया के सामने लाया ।
 जैसा कि सभी भारतीय धार्मिक स्थानों के साथ बर्बर ,गंवार,नींच  मुस्लिम आक्रांताओं  द्वारा किया गया है वह  यहां पर भी किया गया और इस विशाल मंदिर को जाहिल, अधार्मिक जंगली  लोगों ने ध्वस्त कर दिया।  असभ्य मुस्लिम आक्रांताओं ने  विशाल विष्णु वराह मंदिर को नष्ट किया था लेकिन यह वराह प्रतिमा बच गई यह शायद इसलिए हुआ होगा क्योंकि मुस्लिम वराह ( सुअर) को अपवित्र मानते हैं। यह वराह प्रतिमा एक चबूतरे में स्थापित है।
भट्ट सोमेश्वर दीक्षित द्वारा निर्मित यह मंदिरों में प्रमुख है। यह विष्णु वराह प्रतिमा बलुआ पत्थर में बनाई गई है। 6 फीट लंबी 5 फीट ऊंची तथा तीन फीट चौड़ी मूर्ति को देखकर उसकी भव्यता का एहसास हो जाता और इसी के सामने की तरफ  विशाल शिवलिंग स्थापित है ।
चारों तरफ फैले भग्नावशेष से इस मंदिर की भव्यता का पता चलता है ।
भाग्यवश कारीतलाई गांव के दो मंदिरों में यहां के अवशेष स्थापित हैं उनमें से काली मंदिर महत्वपूर्ण है।
 क्योंकि यहां मूर्तियों के साथ मंदिर की दीवार में दो शिलालेख भी लगे हुए यह तत्कालीन ग्रामीणों द्वारा किया गया एक अच्छा कार्य है जिससे इस मंदिर के बारे में जानकारी में प्राप्त होती है।
 यह लक्ष्मण राज का शिलालेख है। यह शिलालेख खंडित शिलालेख है लेकिन अपना महत्व प्रतिपादित करता है ।यहां पर मैं दोनों शिलालेखों की छायाचित्र दे रहा हूं
 कोई पूरातत्व विद उसको बता सकता है कि में क्या लिखा है। नेट पर सौरव सक्सेना द्वारा पुरातत्व करके लेख मिलता है जो इसकी  जानकारी बताता है।
 उपलब्ध जानकारी अनुसार इस मंदिर के निर्माण कार्य कलचुरी राज के मंत्री भट्ट सोमेश्वर दीक्षित द्वारा कराया गया था। भगवान विष्णु के लिए मुख्य समार्पित इस मंदिर में ऐसा प्रतीत होता है कि उनके सभी अवतारों के प्रतिमाएं थीं।
 कच्छप अवतार तथा मत्स अवतार की खंडित प्रतिमाएं कारीतलाई के विद्यालय द्वार मे रखी ही हैं। शायद विष्णु भगवान की मूल प्रतिमा सबसे बड़ी रह हो।
 वर्तमान सरकार को चाहिए कि ऐसे गौरवशाली स्मारकों का पुनर्निर्माण करें। ऐसे महान निर्माण स्थलों के भग्नावशेष को संग्रहालय मे रखने की जगह मूल स्थान का पुनर्निर्माण कर भव्य मंदिर स्थापित करे।
 आज उपलब्ध तकनीक की मदद से मंदिर का मूल प्रारूप लगभग निर्मित किया जा सकता और उसी आधार पर नव निर्माण किया जा सकता है ।
वर्तमान सरकार और सनातनियों को चाहिए कि देश के कोने-कोने स्थित ऐसे स्मारक स्थलों का पुनर्निर्माण कर देश की  समृद्ध विरासत को भव्यता प्रदान करें। रही अर्थ की बात तो हमारे कई धार्मिक स्थल पर करोड़ों का चढ़ावा रोज आता है उन्हें , जनता तथा सरकार को मिलकर हमें अपने ऐसे धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थलों का पुनर्निर्माण करना चाहिए केवल स्मारक बना कर संग्रहालय बनकर खुश नहीं रहना चाहिए।
 जैसे सोमनाथ मंदिर का कई बार नवनिर्माण हुआ उसी तर्ज पर देश के सभी भाग में ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का नवनिर्माण होना चाहिए ।
जहां पर यह विष्णु वराह मंदिर स्थित है उसे गांव का नाम करण पुरा है यह यहां के पूर्व राजा कर्ण  के नाम पर ही है ।अगर ऐसे भव्य स्थलों का पुर्निर्माण हो जाए तो करणपुरा तथा आसपास के  कई गांव का भाग्य बदल जाए।
 पुनर्निर्माण से सनातन के इन महान स्थलों  को अगर समृद्ध कर दिया जाय तो यह भी अपने आसपास के क्षेत्र को समृद्धि देने की क्षमता रखते हैं।

अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
06 05 2024
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