कृषि सुधार और मेहनत पर महंगाई की मार
विकास कार्यों का लाभ जैसे सभी को मिलता है वैसे ही किसान को भी। कृषि सुधार में किए गए प्रयास सभी सरकारों के कम या ज्यादा सराहनीय हैं लेकिन इन सबके बावजूद कृषि लाभ का धंधा नहीं बन पा रही है तो इसके पीछे मुख्य कारण है महंगाई की मार।
इन वर्षों में मैंने कृषि को करीब से देखा है। कृषि कार्य का लाभ उन किसानों के पास दिखता है जिनके पास आय का अन्य स्रोत भी है ।पूर्ण रूप से कृषि आय पर आधारित कृषक विकास धारा में जहां पहले था वहींं अभी भी खड़ा है।
कृषि तकनीक, बिजली, सिंचाई, सड़क का लाभ जो मिला है उसके कारण कुछ रंगत जरूर दिखती है सरकारों के कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों का भी लाभ दिखता है लेकिन इन्हीं सबके बीच बढ़ती महंगाई पूरे परिश्रम मे पानी फेर जाती है ।
जैसे ही सरकार समर्थन मूल्य बढ़ाती है वैसे ही उत्पादन की लागत बढ़ जाती है ।बढ़े समर्थन मूल्य की घोषणा के साथ ही मजदूरी बढ़ जाती है ।बीज ,खाद ,जुताई, बुवाई ,कटाई का मूल्य बढ़ जाता है ।ले देकर किसान के पास रह जाता है बढ़े मूल्य का झुनझुना।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, मुख्यमंत्री सम्मान निधि सीधे किसान के खाते में जा रही है लेकिन इसको भी महंगाई की नजर लग जाती है ।
सबसे पहले तो पटवारी और कंप्यूटर ऑपरेटर के कारण सम्मान निधि पात्र किसान को परेशान होना पड़ता है ।प्रार्थना निवेदन और चढ़ौत्री के बाद साल – साल भर बाद किसानों को इसका लाभ मिल पाता है ।पटवारी और कम्प्यूटर आपरेटर के भ्रष्टाचारी मिलीभगत से लाखों किसान इस लाभ से वंचित हैंं फर्जी किसानों से ₹1000 लेकर पटवारी और कंप्यूटर ऑपरेटर किसानों के नाम सम्मान निधि मे जोड़ रहे हैं बाद में इन्हीं किसानों से वसूली हो रही है ।इस सबके बीच असली किसान सम्मान निधि से वंचित रह रहा है और ऐसे होते होते वर्ष निकल जाता है ।जबसे इस सम्मान निधि की घोषणा हुई है लाखों पात्र किसान इस निधि के लिए भटक रहे हैं। पटवारी और कंप्यूटर ऑपरेटर की बदमाश जोड़ी के आगे किसान नतमस्तक है। जब तक लेनदेन पूरा न हो जाये तब तक पटवारी किसान की सही जानकारी नही देता है । पटवारी के बाद कंप्यूटर ऑपरेटर उसमें कुछ गलती करके और किसान से जानकारी सुधरवाने के नाम पर चक्कर लगवाता है जब तक कि उसका हिस्सा नही मिल जाता है। इसके बाद भी बीच-बीच में पटवारी द्वारा जांच के नाम पर चायपान की व्यवस्था कृषक से बनवा ली जाती है। शासन की सभी योजनाओं मे लगभग यही आलम रहता है । इस समय सबका मालिक कम्प्यूटर आपरेटर हो गया है जो उपमाएं पहले आफिस बाबू के लिए थीं वह सब आज कम्प्यूटर आपरेटर के लिए हैं।
सौ में से दस प्रकरण अपने आप निराकृत हो जाए पर बाकी प्रकरणों में चढ़ौत्री लगती है। खाद बीज के कारोबार मे कालाबाजारी के कारण किसान खुले बाजार से खाद बीज लेने के लिए मजबूर रहता है। धान खरीदी केंद्रों में हो या मंडी में मेरा किसान हाथ जोड़े ही खड़ा रहता है किसान के सम्मान निधि मे सबकी नजर रहती है किसान किसानी कार्य या स्वयं के घर के कोई कार्य के लिए बाजार जाता तो सभी का रेट पहले ही बढ़ जाता है सभी के नजरों में चढ़ी हुई सम्मान निधि तुरंत स्वाहा हो जाती है।
इस समय प्याज के मूल्य की काफी चर्चा रही ।किसान से ₹6 में खरीदी प्याज 20 मे, किसान से ₹20 में खरीदी प्याज 80 में बिक रही है और ₹40 की ₹100 में , ₹120 के मूल्य में बिकी है और इस बड़े मूल्य में किसान कहां है। किसान के प्याज से व्यापारियों ने खूब कमाया लेकिन आज जब किसान को फिर प्याज लगाना है तो बीज का भाव 3 गुना हो चुका है जो प्याज पिछले वर्ष 1500 प्रति किलो मिला था वह ₹4500 प्रति किलो मिल रहा है।
अब किसान को बढ़े मूल्य का क्या लाभ मिल रहा है केवल उसके नाम पर छलावा हो रहा है किसान को कंपनी और व्यापारियों अपना ऐसा मोहरा बनाया है जो मूल्य वृद्धि के नाम पर बदनामी पाता है लेकिन मजा कंपनी और व्यापारी के खाते मे हैं । ईस्ट इंडिया कंपनी आज भी नए रूप में मौजूद है जो अपने लिए किसानों से वही खेती करवाती है जिसमें उनको लाभ है। किसान हमेशा उनके लिए गुलाम की तरह काम करता है क्योंकि इन्हीं कंपनियों द्वारा बाजार बढ़ाया या घटाया जाता है किसान कठपुतली की तरह इनके इशारों पर नाचते हैं। नव संगठित ईस्ट इंडिया कंपनियों के द्वारा बढ़ाई गई महंगाई से किसान जहां से चला था वहीं रह जाता है और इनकी रोज नई हवेलियां खड़ी हो जाती है और इस तरह से कृषि सुधार और सरकारों की मेहनत पर महंगाई की मार पानी फेर जाती है।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
27 नवबंर 2020
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