गौ माता को भी हमने समस्या बना लिया
1 जनवरी 2019.
नए होशियार चंदों का काम निराला ही रहता है पहले गाय पर समस्या थी अब गाय अपने पूरे वंश के साथ समस्या बन गई है। गंगा और गाय भारत का अस्तित्व है लेकिन हमने गंगा को गंदा किया और गाय को सभ्यताओं को नंगा करने का औजार बना लिया। दुर्भाग्य से गोवंश पहले भी कटता था और आज भी कट रहा है पर अब यह जरूर हुआ है कि गाय के साथ आदमी भी कटने लगा है। गोवंश संरक्षण के लिए सरकार और समाजसेवियों के हवा हवाई कार्य जहां एक और सतत चालू हैं करोड़ों का ग्रांट भी लगातार जारी है ।सच तो यह है कि गौवंश को गौपालक ही मरने के लिए ऐसी ऐसी जगह में फेंक रहे हैं जहां से उनका जीवित बचना नामुमकिन हो। मांस के लिए हत्या पर हिंदूवादी संगठन बदले की कार्यवाही पर उतारू रहता है जिसके जिसके डर से इनकी हत्या मांस के लिए कम हो पा रही है तो वहीं गौपालक अनुपयोगी गोवंश को बेसहारा मरने के लिए छोड़ देते हैं इन आवारा जानवरों से खेती को नुकसान होता है इसलिए किसान इनको हांक कर ऐसी जगह पहुंचा देते हैं जिससे भूख प्यास से इनकी मृत्यु हो जाए पर इनकी हत्या का दोष उन पर न आए। मांस भक्षण के लिए गोवंश हत्या अगर अपराध है तो इस तरह की हत्या भी अपराध है और यह अपराध आज पूरे देश में हो रहा है ।
अपने रीवा क्षेत्र में ही हजारों गौवंश की हत्या का प्रयास हो चुका है सैकड़ो की संख्या मे उनकी मृत्यु भी हो चुकी है। इनको मारने के लिए कभी सूखी नहर में गोवंश को धकेल देते हैं ,कभी चचाई के जलप्रपात की खांईं में पहुंचा देते हैं कभी सिरमौर के हाइड्रल प्रोजेक्ट के खांंई में गिरा देते हैं ,कभी जानवरों का मुंह बांध का मरने के लिए छोड़ देते हैं इस सबके साथ सड़कों में आवारा घूमते और दुर्घटना से मरना अलग है ही ।आखिर ये कैसा हम भारतीयों का गाय माता प्रेम है मीठा-मीठा गप्प कड़वा कड़वा थू ।रीवा में मेरे घर के सामने पंद्रह बीस आवारा गौवंश घूमता रहता है घर की चारदीवारी से सटकर रात में बैठा रहता है या फिर घर के सामने खुले पार्क में ।मेरे घर के सामने खुला पार्क है जिसमें लोग सुंदरीकरण के नाम पर बाउंड्री करना चाहते हैं लेकिन मैंने सदा ही इसे उचित नहीं माना क्योंकि इन गोवंश के साथ दस बारह घोड़े, आठ नौ गधे और कई कुत्तों के रहने का स्थान यही पार्क है ।इसी पार्क मे शंकर जी का मंदिर है और यह सब उनके गण ही तो हैं यह अपने ईष्ट के पास विचरण करते हैं। आखिर इनके रहने के लिए भी तो कोई जगह होनी चाहिए मेरा मानना है कि शंकर जी की पूजा करें और उनके वाहन नंदी की भी मंदिर में पूजा करें लेकिन जीवित नंदी से नफरत ठीक नही है। लेकिन आजकी स्वार्थी व्यवस्था मे इस आवारा पशुधन की घूमती हुई संख्या हमारे लिए एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में हो गई है ।गांव से लोग इन्हें शहर की तरफ भगा रहे हैं तो एक गांव दूसरे गांव की तरफ, दूसरा गांव तीसरे गांव की तरफ जो हमारा धन है उसे हमने समस्या बना लिया है। इसके लिए लोगों के साथ सरकार जिम्मेदार हैं क्योंकि इनके सम्मान पूर्वक जीने के हक को बरकरार रखने के लिए सरकार को अपनी उन योजनाओं को धरातल में उतारना पड़ेगा जिससे यह पशुधन वाकई धन बन सके।और अगर इस गौधन का सही संरक्षण नहीं किया गया और यह अगर ऐसे ही समस्या बनता जाएगा तो एक कड़वा सच जो ओवेसी के छोटे भाई ने कहा है वह होगा उसने कहा था कि मेरे भाइयों कुछ वर्षों तक तुम गाय मत खाओ इनकी इतनी संख्या बढ़ जाएगी कि हिंदुओं का खेती करना दूभर हो जाएगा और जो हिंदू गाय को अपनी माता कहते हैं वह स्वयं अपनी माता को तुम्हारे पास लाएंगे और कहेंगे कि आप मेरी माँ को मार कर खा लीजिए। यह एक वीभत्स कड़वा सच है ।इसलिए देश के नवहोशियार चंदों को ऐसा काम तुरंत करना होगा जिससे जो धन भारत के विकास का साधन बन सकता है ऐसी समस्या का कारण न बने जो अत्यधिक अपमानजनक हो ।इतिहास को भी याद रखना जरूरी है विदेशी आक्रांताओं ने कई युद्धों में गाय को आगे रखकर भारतीय राजाओं को पराजित किया है। हमारे मंदिर हमारी गौ संपदा ही हमारे अपमान का कारण बन गए थे।आक्रांताओं ने जब देश मे आक्रमण किया तो मंदिरों में चढ़ाया धन उन्हें एक मुस्त मिल गया इससे वो और शक्तिशाली सेना का निर्माण करते रहे साथ ही दूसरे लुटेरों को भी लालच देते रहे वहीं गोवंश के रूप में उनको प्रचुर मात्रा में भोजन मिलता रहा साथ ही भारतीय राजाओं के आक्रमण से एक रक्षा कवच भी। आज भी हमारे मंदिरों का भंडार बढ़ता जा रहा है साथ ही गोवंश भी प्रचुर मात्रा में यत्र तत्र बिखरा हुआ घूम रहा है ।देश को इस दिशा में भी सोचना होगा इतिहास से सीख लेकर गौ माता की सम्मानजनक व्यवस्था की जाए वह न तो स्वयं के लिए समस्या बने न ही देश के लिए।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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