अगर परिवार नियोजन जबरिया नही तो सरकारी कर्मचारी को दो संतान की बंदिश क्यों ?

अगर परिवार नियोजन जबरिया नहीं तो सरकारी कर्मचारियों को दो संतान की बंदिश क्यों

 मध्यप्रदेश सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्ते )नियम 1961 के नियम 6 के अनुसार शासकीय सेवा के लिए वह उम्मीदवार अपात्र होगा जिसके दो संतानों  से अधिक संतान हैंं  जिसमें से एक का जन्म 26 जनवरी 2001 को यह उसके पश्चात हुआ है। मध्य प्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 22(4) के अनुसार प्रत्येक शासकीय सेवक भारत सरकार के परिवार कल्याण  कार्यक्रम से संबंधित नीतियों का पालन करेगा ।इस नियम के तहत शासकीय सेवक के 2 से अधिक बच्चे होने को अवचार माना जाएगा ।
लगभग ऐसा ही नियम देश के कई राज्यों में है जहां नहीं है वहां बनाया जा रहा है कहीं पदोन्नति में रोक है तो राजस्थान जैसे राज्यों में बहाली भी है।  कुल मिलाकर अलग अलग राज अलग-अलग नियम लेकिन ज्यादातर राज्य सरकारी नौकरी के लिए दो बच्चों की अनिवार्यता बाध्य करते हैंं। ऐसे शासकीय कर्मचारी जिनके दो बच्चे हैं  अगर यह नियम होने के बाद तीसरा बच्चा हो जाता  है तो नौकरी जाने के डर से  माता-पिता उसे अपना बच्चा न बताकर रिश्तेदारों के यहां भेज देते हैं या कोई और उपाय अपनाते हैंं । इस नियम के तहत मध्यप्रदेश न्यायालयीन कुछ कर्मचारियों की सेवा समाप्त भी हो गई है।  दो बच्चे से ज्यादा होने पर एक तो नौकरी नहीं मिलेगी दूसरी मिल गई तो  चली भी जाएगी।
  असम सरकार कह रही है कि दूसरे बच्चों वालों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं दिया जाएगा। अन्य राज्यों के साथ यहां भी दो से अधिक बच्चे वालों को निकाय चुनाव लड़ने की मनाही है ।
 केंद्र सरकार ने अश्विनी  कुमार उपाध्याय की   जनहित याचिका में जो जवाब न्यायालय में दिया है उसमे कहा है कि कोई दंपति अपने परिवार में कितने बच्चे रखना चाहता है इसका फैसला वह स्वयं करें ।दंपति तय करें कि वह कितने बच्चे पैदा करें  सरकार नागरिकों पर जबरदस्ती न करें कि वह कितने बच्चे पैदा करें। उच्चतम न्यायालय में सरकार ने कहा है कि वह जबरन परिवार नियोजन थोपने के पक्ष मे नही है।
 अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दिल्ली उच्च न्यायालय मे देश में बढ़ती आबादी के नियंत्रण के लिए दो बच्चों के नियम समेत कुछ कदमो को उठाने की याचिका दाखिल की थी जिसे न्यायालय ने  खारिज कर दिया था। इसी की अपील करते हुए  उन्होंने इस आदेश को उच्चतम न्यायालय मे चुनौती दी थी ।उच्चतम न्यायालय के सवाल पर  जवाब में केंद्र सरकार ने यह जवाब है दिया है । बात यहीं से विरोधाभासी शुरू हो जाती है एक तरफ दो बच्चों का कानून और दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि इसकी बाध्यता नहीं । अब कोई करे तो करे क्या ?
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
17 दिसंबर 2020
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