न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर ऐसे भी लोग चले आए हैं मयखाने मे

न पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर ऐसे भी लोग चले आए हैं मयखाने में

इन पंक्तियों के लेखक महाकवि गोपालदास नीरज इसी तारीख 19 जुलाई को हम सबके बीच सशरीर नहीं रहे ।लेकिन यह भी सच है कि आप अपने गीत काव्य के माध्यम से हमेशा इस दुनिया में रहेंगे। कवि गोपालदास नीरज जी को मैंने विद्यालयीन  समय से सुना है और उनके काव्य पाठ का अंदाज और भाव सदा ही मुग्धकारी रहा है। बाद के समय में जब कुछ समझ पैदा हुई तब मैंने उनके गीतों का दार्शनिक स्वरूप जाना। नीरज जी का जितना नाम था तो कुछ उनके साथ बदनामी भी रही लेकिन जैसे मणि सर्प के साथ रहकर भी दैदीप्यमान रहती है वैसे ही महाकवि नीरज भी रहे ।उन्होंने इस बात को भी अपने काव्य की पंक्तियों में पिरो दिया है नीरज जी लिखते हैं कि ” इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में , लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में”। लेकिन इसके जवाब में मैं लिखना चाहता हूं “इतना नाम कर गए हैं आप इस जमाने में, सदियां खुद ही भुला दी जाएगी आपको भुलाने मे”। 4 जनवरी 1925 में ग्राम पुरावली जिला इटावा उत्तर प्रदेश में जन्मे गोपालदास सक्सेना का जीवन काफी संघर्षमय रहा आपके पिताजी का जब आप 6 वर्ष के थे तभी निधन हो गया।  परिवार ने भीषण गरीबी देखी लेकिन इस गरीबी में भी मां के द्वारा दिए गए संस्कार और सकारात्मक सोच ने आपको सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया ।पद्मश्री, पद्मभूषण से सम्मानित नीरज जी ने फिल्मों में  सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की रचना की और आपके गीतों को 3 वर्षों तक लगातार फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया ।महाकवि नीरज का काव्य प्रेम का काव्य है लेकिन पूरे काव्य की आत्मा अध्यात्म है ।पूरे लेखन की आत्मा अध्यात्म है यह कवि भी उसी की खोज करता हैं जिसकी संतों ने की है ।जब महा कवि कहते हैं कि मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य तो सही कहते हैं कवि युगों तक याद किया जाता है ।अगर उसका नाम जनमानस भूल भी जाए तो उसकी कृतियां हमेशा याद रहती हैं ।जैसे मुझे नहीं मालूम था कि महाकवि नीरज की कविता की लाइनें हैं कि “जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा “।मैं हमेशा सफर में चलते समय या घर पर भी कहता रहता हूं कि सामान कम से कम रहे तो आराम रहता है यह भी कहता रहा कि किसी कवि ने भी कहा है । अब जाकर पता चला की यह महा कवि नीरज की पंक्तियां हैं और यह पंक्तियां भी आध्यात्मिक स्थिति मे उत्पन्न हुई हैं ।एक बार नीरज जी रजनीश ओशो  जो पहले के रजनीश अपने नाम के आगे आचार्य लगाते थे फिर भगवान लगा चुके थे तब नीरज जी ने उनसे  कहा था कि यह सब एक दिन छोड़ना पड़ेगा क्योंकि आप जिस आध्यात्मिक यात्रा पर हैं  जिस गौरी शंकर की ऊंचाई में जाना है वहां ज्यादा सामान लेकर नहीं चढ़ा जा सकता है जैसे पहाड़ों में चढ़ते समय कम से कम सामान रखने में चढ़ाई आसान होती है वैसे ही आध्यात्मिक गौरीशंकर की चोटी पर पहुंचने के लिए पदवियों का भारी भरकम अहम यात्रा को कष्टप्रद बना देगा। कवि नीरज जी ने तब यह  पंक्तियां लिखी थी कि “जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा”। संवेदनशील व्यक्तियों की तरह ही नीरज जी भी समाज में बढ़ती विषमताओं को लेकर चिंतित थे ।साध्य के साथ साधन की पवित्रता में आप का सर्वाधिक जोर था ।नीरज जी ने जीवन में बेईमानी को कभी जगह नहीं दी ।श्रमसाधक नीरज जी ने सदैव श्रम के सम्मान को सर्वोच्च पद दिया ।संस्थाओं में बढ़ रही अव्यवस्था को लेकर बड़े ही सरल शब्दों में आप कहते हैं कि “ना पिलाने का सलीका ,ना पीने का शऊर ; ऐसे भी लोग चले आए हैं मयखाने में।”

19 तारीख को नीरज जी इस दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन इसके दूसरे दिन दिल्ली की संसद में वर्तमान सरकार के खिलाफ प्रमुख विपक्षी दल ने अपने साथियों के साथ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया । एक तरफ नीरज जी के जाने का गम था तो दूसरी तरफ संसद का ड्रामा पूरे शबाब पर था। अविश्वास प्रस्ताव मे सारे विपक्षी दल और कुछ मात्रा में सत्ताधारी दल की तरफ से जिस तरह का स्तरहीन प्रदर्शन संसद भवन के अंदर किया गया उससे देश शर्मसार हुआ। अगर नीरज जी के उपरोक्त पंक्तियों को यहां पर लिखे तो वह कुछ इस तरह से होंगी “न संसद चलाने का सलीका न संसद चलने देने का शऊर ,जाने कैसे-कैसे लोग चले आते हैं सांसद बनकर ।” जिस तरह की हरकत प्रमुख विपक्षी दल के नेता ने कि वह ओछी हरकत संसदीय मर्यादा को तार तार करने वाली थी लेकिन जिस तरह के जवाब सत्ता पक्ष के द्वारा दिए गए वह भी लोगों को सही नहीं लगे ।जिस तरह का वातावरण यहां देखने को मिला वह स्थित घातक है ।हम अपने स्वार्थ के लिए अपनी पसंद की पार्टी का समर्थन करेंगे लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि हम आने वाली पीढ़ी को किन हाथों में सौंप रहे हैं ।विश्वसनीयता का घोर अभाव हुआ है झूठ झूठ झूठ ही सफलता का पैमाना बनता जा रहा है ।मैं का भाव प्रधान हो चला है। सही बात कहना भी गुनाह है जो आपके पक्ष मे  न बोले उसे बाहर फेंको ।सरकारी संस्थानों में विश्वसनीयता के पुनर्जागरण का कार्य नहीं हो पाया है जो संस्थान मर रहे थे वह उसी तरह से मर रहे हैं ।कहीं  कहीं केवल मरहम पट्टी दिखती है लेकिन संस्थानों का मरना नहीं रुका है ।योग्यता अपना महत्व खोती जा रही है चापलूसी योग्यता का एक मात्र पैमाना है ।कहना कुछ करना कुछ सभी राजनीतिक दलों का ध्येय वाक्य है ।आज सभी राजनैतिक दल जनता की मजबूरी का भरपूर फायदा उठा लेना चाहते हैं ।देश के सर्वोच्च पंचायत को चलाने का सलीका नष्ट हो रहा है संसद को चलने देने के लिए जो उत्तरदाई हैं  उनको इसका शऊर ही नहीं रहा है और जैसा कि नीरज जी ने कहा है संत पड़े हैं जेलों में और चोर उचक्के बैठे हैं संस्थानों में ।हम लोग स्वार्थवश
चुप रह सकते हैं लेकिन हमारी चुप्पी राम नहीं भस्मासुर ही पैदा करेगी नीरज जी को याद करते हुए कहना चाहूंगा कि सलीका और शऊर दोनों को बचाना बहुत जरूरी है।

अजय नारायण त्रिपाठी अलखू

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