इंदौर के लाल बाग पैलेस में नेहरू केंद्र कुछ अतिक्रमण जैसा है

वर्षों बाद 19 मार्च 2019 को पुनः इंदौर के लाल बाग पैलेस को देखने का अवसर प्राप्त हुआ जो होलकर राजाओं का राज प्रासाद रहा है ।देश के सबसे सुंदर राजप्रासादों में से यह भी एक है जो काफी अच्छी हालत में है।इसके साथ लगा बाग जरूर अपनी भव्यता खो चुका है।
   लाल बाग पैलेस शहर के बीचो-बीच निकलने वाली खान नदी जो अब एक नाला है कि सहायक नदी सरस्वती के बाएं तट पर है। जब मुख्य नदी नाला है तो सहायक की लकीर बची है यही काफी है। 72 एकड़ के लाल बाग क्षेत्र में 4 एकड़ में यह पैलेस बना है। यह महल अट्ठारह सौ चौरासी में तुकोजीराव के शासनकाल में पूर्ण हुआ जो कि युवराज शिवाजी राव होल्कर का निवास बना जिसमें 1978 तक यह परिवार रहा ।
इसकी रोमन शैली, पेरिस के महलों जैसी सजावट ,बेल्जियम की कांच की कला, इटली के संगमरमर ग्रीक चित्रकला, बहुत ही खूबसूरत लकड़ी की नक्काशी वाले साजो सामान और उस समय की सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित यह महल अद्वितीय बन पड़ता है। इसका मुख्य गेट इंग्लैंड के बर्मिंघम पैलेस के गेट की तर्ज पर बीड़ धातु का बना है। मेन गेट पर होलकर राज का चिन्ह अंकित है और द्वार पर दो अष्टधातु के शेर जीवंत हैं ।
इस सुंदर महल में घुसते ही पहले कमरे के बीचोबीच एक आधी हाथ कटी हुई जवाहर लाल नेहरू जी की मूर्ति स्थापित कर दी गई है ।इस मूर्ति का पूरे महल के साथ कोई भी सामांजस्य  स्थापित नहीं होता। इसी के साथ बाहर महल के दरवाजे के बगल मे एक बार पत्थर में लिख दिया गया है नेहरू केंद्र ।राजशाही के समय होलकर इस महल में रहे, अंग्रेजों की छत्रछाया रही लेकिन स्वतंत्रता के बाद पार्टी विशेष की विचारधारा के शुभचिंतकों ने नेहरू जी को असंगत रूप से महल के अंदर घुसेड़ दिया तो वहीं दूसरे दरवाजे पर महारानी विक्टोरिया दरवाजा ताकते खड़ी हैं। दुनिया का नक्शा तो अभी भी उनके हाथ में है लेकिन दूसरे हाथ की कुछ उंगलियां टूट चुकी हैं।छत्र गंदा हो चुका है ,धूल पूरे शरीर पर लगी है, मुंह और नाक में तो कालिख लग चुकी है।इनका  बाहर खड़ा रहना आज तर्कसंगत है लेकिन नेहरू जी का महल के अंदर घुसना शुद्ध – शुद्ध अतिक्रमण है ।
इस अतिक्रमण के कारण नेहरू जी का व्यक्तित्व यहां बढ़ता नहीं है बल्कि कमजोर पड़  गया है ।मान न मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज पर बेचारे हाथ कटे नेहरू जी आने जाने वालों को अजनबी की भांति देख रहे हैं जैसे कह रहे हों यहां मेरा कोई काम तो नहीं है लेकिन अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में जैसा कि सभी पार्टियों के चाटुकार करते हैं वैसे ही मेरे लोगों ने भी मेरे साथ किया है।यह महल होलकर वंश का है यहां होलकर ही शोभा देते हैं उन्हीं को यह लगना चाहिए था लेकिन जी हुजूरी की राजनैतिक आदत ने यहां  मुझे अपमानित कर के बीच रास्ते पर चिपके रहने के लिए मजबूर कर दिया है।
यकीन मानिए तथाकथित शुभचिंतकों द्वारा ऐसा किया गया कार्य उन महापुरुषों का कद बढ़ाता नहीं है बल्कि घटता है और उन्हें अपमानित भी करता है। यह अपमान उनके अनुयाई ही करते हैं ।
 सभी पार्टियां ऐसा काम कर रही हैं, जैसे पहले आक्रांता ऐतिहासिक स्थलों में थोड़ा तोड़ फोड़ कर  नया रूप देकर अपनी नेम प्लेट लगा देते थे वैसे ही स्वतंत्रता के पश्चात राजनैतिक पार्टियों ने राजभवन और ऐतिहासिक स्थलों के साथ किया है और आज भी लगातार किया जा रहा है।
 बड़े बड़े संस्थानों के बाहर एक नया गेट बनाकर उस पर अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का नाम लिख देना या उसकी हाथ कटी मूर्ति या बड़ी मूर्ति लगा देते हैं जो पक्षियों के लैंडिंग स्टेशन के साथ मल -मूत्र त्याग स्थल बन जाता है। जबकि चाहिए यह कि उनकी जो भी विचारधारा है उसके अनुरूप उनके स्थल बनने चाहिए जहां उनका पूरा सम्मान हो सके, जहां उनका पूरा कृतित्व हो जिससे लोग उनको सम्मान की नजर से देख सकें ।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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