राफेल सरकार को परेशान करेगा पर फेल नही

विश्वसनीयता बड़ी चीज है इसको कभी दांव पर नहीं लगाना चाहिए ।सही आदमी और गलत आदमी में अंतर सिर्फ विश्वसनीयता का रहता है ।काम अच्छा हो या बुरा उसमें भी विश्वसनीयता आदमी को अच्छा या बुरा बनाती है ।वर्तमान केंद्रीय सरकार और उसके मुखिया की लोकप्रियता चरम पर रही है ।वर्षों बाद किसी प्रधानमंत्री को इतनी लोकप्रियता प्राप्त है। लेकिन कुछ दिनों से इसमें कुछ कानाफूसी शुरू हो गई है हो भी क्यों न जो आपने कहा और किया उसके विपरीत  तो उंगली उठनी लाजमी है ।पहले एफडीआई का मुद्दा , तेल की कीमतों का मुद्दा , मेड इन इंडिया की जगह मेक इन इंडिया, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटना तुष्टीकरण की ओर झुकना, कश्मीर और राम मंदिर के मुद्दे पर घिघियाना , स्वभाव में घमंड का परिलक्षित होना अन्य अच्छे कार्य कर रही सरकार के लिए माइनस मार्क हैं।इन सबके बीच राफेल एक और मुद्दा आ गया ।इस मुद्दे को कांग्रेस ने विपक्ष की अपनी भूमिका के साथ उठाया है चाहे इसका हश्र भी बोफोर्स की तरह क्यों न हो वर्तमान बिगाड़ने का आयोजन तो हो ही गया है। जहां तक चोरी बेईमानी की बात है तो यह सरकार इससे कोसों दूर है। वर्तमान मुखिया के पास बैंक बैलेंस बढ़ाने का कोई कारण ही नहीं है। इनकी सरकार पर बेईमानी का कोई आरोप लग नहीं पाया है राफेल के मुद्दे पर इसका प्रयास किया गया है ।लेकिन यह  एक व्यापारिक समझौता है जिसमें सरकार का कोई व्यक्ति कमीशन लेने में सहभागी नहीं है बात सिर्फ इतनी है कि अनिल अंबानी की कंपनी को ठेका कैसे मिल गया ।उद्योगपति सभी को चंदा देते हैं स्वाभाविक है जो सत्ता में रहता है या जिससे आपकी जमती है वह ज्यादा चंदा पा लेगा बाकी को भी मिलता जरूर है ।कांग्रेस के साथ इस समय कुछ ऐसा ही हो रहा है एक तो सरकार को परेशान करना दूसरा उद्योगपतियों को यह दिखाना कि हम अभी भी मैदान में हैं। दूसरी बात यह कि जोआरोप लगाया जा रहा है की रिलायंस कंपनी को फाइटर प्लेन बनाने का अनुभव नहीं है तो यह कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि इसके पहले भी जो भी उनको ठेके मिले हैं और कांग्रेस के समय ही मिले हैं उनमे उनको अनुभव नही प्राप्त था।  दुनिया में ऐसा तो है नहीं कि सब कुछ पूर्व अनुभव से ही हो ।कोई भी कार्य किया जाता है तो कभी न कभी वह पहली बार ही होता है अगर पहली बार ही न किया जाए तो आगे तो होगा ही नहीं ।  यह आरोप की रिलायंस कंपनी को विमान बनाने का अनुभव नहीं है इसलिए उसको काम नहीं देना चाहिए उचित नहीं राफेल की इंतहान में सरकार फेल नहीं होगी लेकिन हिलती-ढ़ुलती टेबल में उत्तर लिखने में उसे कुछ समस्या जरूर होगी। तथ्य बताते हैं कि सरकार की तरफ से कोई बेईमानी भ्रष्टाचार नहीं किया गया और जिस अनिल अंबानी को काम मिलने की बात है तो यह भी कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि भारत में व्यवस्था यह कंपनी देगी आखिर विमान तो द साल्ट ही बनाएगी ।इसकी देखरेख में विमान बनेगा कल पुर्जे बनेंगे अगर यहां बनेंगे तो उसी के देखरेख में बनेंगे काम करने वाले लोग भी कंपनी के पेशावर लोग ही होंगे। राजनीति बड़ी क्रूर होती है  फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जब खुद अपने ऊपर लगे आरोपों को हटाने में लगे हो तो इस तरह के कार्य मजबूरी बन जाते हैं। दूसरे पर आरोप लगा दो जिससे अपनी तरफ से ध्यान हट जाए ,अपनी तरफ से ध्यान हटाकर कहीं और लगाने के काम को उन्होंने बखूबी अंजाम दे दिया है इससे उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए और समय मिल जाएगा ।वर्तमान सरकार को परेशानी में डाला जाए और अपने लिए आसानी खोजी जाए इसमें यही कार्य हुआ है। राहुल गांधी का फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति  ओलांद से मिलना और यह कहना कि राफेल के बड़े धमाके होंगे किसी षड्यंत्र के तहत लगता है।मोदी सरकार को विपक्ष भ्रष्टाचार में घेर नहीं पा रही है तो बाहरी हथियारों का प्रयोग किया जा रहा है। 59 हजार करोड़ के समझौते में जो आरोप लग रहे हैं वह यह है 30000 करोड़ का मेक इन इंडिया प्रोग्राम में अनिल अंबानी की कंपनी को काम दासो द्वारा दिया गया है।आरोप यह है कि अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत सरकार ने सुझाया ।जबकि अंबानी ग्रुप के दासो से पहले से ही समझौता था मुकेश अंबानी की जगह अनिल अंबानी केवल नाम बदला है कंपनी  धीरूभाई अंबानी ही है ।यह भी आरोप निराधार साबित होगा कि पहले ऐसा नहीं होता था वैसा नहीं होता था सरकार सामने नहीं आती थी आदि ।आज जो नई सरकार है कुछ तो अपने हिसाब से करेगी। जरूरी नहीं कि पुराने ढर्रे पर ही चला जाए और सरकारें आपस में बात ना करें जहां तक एक राफेल की कीमत की बात है तो जब इसकी बेस प्राईज की बात हुई और आज जब समझौता हुआ तो यह देखना पड़ेगा कि कितने साल बीत गए और खाली एयरक्राफ्ट की क्या  कीमत है और सुसज्जित एयरक्राफ्ट की क्या। ऐसे मे कीमत मे  अंतर होगा ही। कीमत सार्वजनिक करने की भी आवश्यकता नहीं है सरकार को मालूम है उच्च अधिकारियों को मालूम है दस्तावेज के रूप में संसद को मालूम है जरूरी नहीं है कि यह सार्वजनिक किया जाए । दो देशों की कंपनियों के बीच तीसरे को रेट क्यों पता चले ।इसके जिम्मेदार लोगों को तो मालूम ही है ।मुकेश अंबानी की रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी लिमिटेड 2012 में यूपीए के समय  126 विमानों के सौदे में दसाल्ट की प्रमुख  पार्टनर थी अब अनिल की कंपनी है ।क्योंकि मुकेश ने यह व्यापार अनिल को दे दिया तो इतना हाय तौबा मचाने की जरूरत ही नहीं है। दासो के 72 पार्टनर हैं उनमें से एक अनिल अंबानी की कम्पनी भी है। रही बात फायदा कमाने की तो कोई भी कंपनी काम फायदा कमाने के लिए ही करती है गैरकानूनी बस न हो ।घाटे के लिए कोई काम नहीं करता। वैसे भी समझौते से अभी भी डीआरडीओ को ही सबसे ज्यादा लाभ है रफेल के एम 88 इंजन के ऑफसेट में डीआरडीओ को अपने कावेरी इंजन कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने का मौका मिला है ।क्योंकि 36 विमान सीधे फ्रांस से आएंगे रक्षा मंत्रालय का कहना है कि भारत में केवल 36विमान बनाना महंगा सौदा होता और अभी भी एच ए एल एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड इसका काम करेगा। नागपुर के मिहान एसईजेड में जहां पर  रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड को जमीन मिली है वह भी रिलायंस का पक्ष मजबूत करती है मैंने यह क्षेत्र देखा है मिहान से लगा हुआ ही नागपुर का हवाई अड्डा है जिससे निर्माण पश्चात एयरक्राफ्ट की टेस्टिंग में आसानी होगी तथा आवागमन की भी सहूलियत है ।कुल मिलाकर सरकार पर लगाए जा रहे आरोप केवल आरोप ही रह जाएंगे सरकार कुछ समय के लिए तो असहज हो सकती है लेकिन अंत में सफलता सरकार की ही रहेगी।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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