महिला स्वसहायता समूह बनें आजीविका संवर्धन के माध्यम “सफलता की कहानी”
अन्त्योदय राज्य ग्रामीण आजीविका द्वारा गठित महिला स्वसहायता समूह महिलाओं की आजीविका संवर्धन के माध्यम बने हैं। रीवा विकासखण्ड के ग्राम लोही में आजीविका केन्द्र में 7 स्वसहायता समूह की 35 अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग की महिलाओं द्वारा हथकरघा के माध्यम से कपड़ा निर्माण किया जा रहा है। अभी तक इन महिलाओं ने 270 मीटर कपड़ा बुना और प्रति मीटर 50 रूपये के मान से महिलाओं को राशि मिलती है इस प्रकार उन्हें 4500 प्रतिमाह की आय होती है।
इसी क्रम में लोही व मऊगंज के ढेरा में 21 स्वसहायता समूह की 90 महिलाएँ टेडीवेयर बना कर अपनी आजीविका का संवर्धन कर रही हैं। प्रत्येक महिला को रोज 3 से 4 टेडीवेयर बनाने पर 200 रूपये आमदनी हो जाती है। लोही में 2 स्वसहायता समूह की दस महिलाएँ प्रतिमाह 4000 साबुन बनाकर अपनी आय बढ़ा रही है। जिले के जोरी व खीरा ग्राम में 180 महिलाएँ अगरबती निर्माण कार्य में लगी हैं जो प्रति मशीन प्रति दिवस एक क्विंटल तक अगरबती बनाती हैं इसे अक्षर अगरबती के नाम से जाना जाता है। जो बाजार में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
पशुओं के गोबर से गमले व गम पावडर कार्य निर्माण भी जिले के ग्राम लोही, भानपुर व खाम्हा की स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। ग्रामों में ऐरा प्रथा को रोकने व पालीथीन मुक्त कर पर्यावरण संरक्षण में गमला निर्माण व गम पावडर सहायक हो रहे हैं। जिले में 9 स्वसहायता समूह की 45 महिलाएँ 25 मशीनों से प्रतिमाह 1.10 लाख गमले बना रही हैं। बाजार की उपलब्धता हेतु उद्यानिकी विभाग वन विभाग द्वारा 5 लाख गमलों का आर्डर भी इन महिला समूहों को मिला है।