बांग्लादेश, दोगलेपन से न देश चलते हैं न सभ्यता न संस्कृत

बांग्लादेश, दोगलेपन से न देश चलते हैं न सभ्यता न संस्कृत

  बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश छोड़कर भारत में शरण ले ली। अतिवादियों ने प्रधानमंत्री आवास में घुसकर प्रधानमंत्री आवास को ऐसे तहस नहस कर रहे हैं जैसे यह आवास उनके देश की संपत्ति न हो ।
जिस शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्त कर बंगालियों को अपना स्वतंत्र देश दिया था जिनको कल तक राष्ट्रपिता का दर्जा प्राप्त था आज उनकी मूर्तियों को बड़ी अपमानजनक स्थिति के साथ तोड़ा जा रहा है ।
पूरे देश में इस्लामी अतिवादी ऐसी हरकतें कर रहे हैं जैसे यह इनका देश ही न हो।
वैसे इन सब की समस्या की मूल में इस्लाम के वह मानने वाले हैं जो अपने मां-बाप को ही मां-बाप नहीं मानते हैं ।
इनकी सोच में दोगलापन है और अपने नाजायज होने पर इनको इतनी नफरत है कि यह हर उस निशान को मिटाना चाहते हैं जिससे उनके दोगलेपन और नाजायज होने के सबूत मिलते हैं।
 जो असली इस्लाम वाला देश है वह हिंदू मंदिर बनवा रहा है वह भी अपने ही देश मे ।वहां की महिलाओं को आजादी से जीने की राह है। वह देश आधुनिक ज्ञान विज्ञान विचारों के साथ अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ा रहा हैं और यह जो दोगले हैं जिनको अपने बाप को बाप कहने पर शर्म आती है वह अपने देश की बुजुर्ग प्रधानमंत्री के अंतः वस्त्रों को लेकर नंगा नाच कर रहे हैं।
 जानवरों जैसी सोच रखने वाली दोगली कौम एक महिला के अंतःवस्त्रों को इस तरह लहराते हुए उन्माद में हैं जैसे इन्होंने बहुत बड़ी विजय प्राप्त कर ली हो। यही सोच उनकी महिलाओं पर अत्याचार की प्रेरणा देती है यह अशांति प्रिय कौम अपने देश के उन हिंदुओं पर अत्याचार करने लगी है जिनकी यह संताने सलवार पहनने  के पहले सब हिंदू ही थे। इन नाजायज औलादे को खुद से घृणा होने के कारण अपने पूर्वज हिंदुओं के मंदिरों तथा उनकी संतानों पर अत्याचार करके अपनी हीन भावना को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं ।
इन राक्षसी प्रवृत्ति वाले लोगों से सख्ती  से निपटना जरूरी है। विश्व बिरादरी को चाहिए कि ऐसे विषधारी का फन मानवता को डसने के पहले ही कुचल दें ।
शेख हसीना जो उदारवादी महिला प्रधानमंत्री थी उनको भारत ने शरण दी है और जैसा कि भारत का इतिहास है यहां सभी को शरण है। यहां जब तक चाहेगी तब तक भारत में रहेंगी लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि वह कौन सी मानसिकता है, इस्लाम धर्म का वह कौन सा ज्ञान है जो आदमी को आदमी नहीं मानता केवल मेरे कुएं तक की दुनिया है। इस्लाम की ऐसी सोच ने पूरी दुनिया को एक अंधेरे कुएं की तरफ धकेल दिया है ।पूरी  दुनिया में इस्लाम को मानने वाले ऐसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग एक साथ हो रहे हैं। ऐसे दोगलों से देश को बचाना जरूरी है ।इनसे न तो कोई सभ्यता बच रही है न कोई संस्कृत बच रही है इसलिए इनका विनाश ही अब  इलाज है।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
06 अगस्त 2024
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