पदोन्नति न सही उच्च पदनाम उच्च प्रभार ही सही

पदोन्नति में आरक्षण विषय न्यायालय के विचाराधीन है। उत्तर प्रदेश जैसी सरकारों ने उच्चतम न्यायालय के पहले के फैसले के बाद पदोन्नति में आरक्षण बंद ही नहीं किया बल्कि जो लोग ऐसा लाभ पा गए थे उन्हें उनके मूल उचित पद पर वापस भी भेजा ।लेकिन कई राज्यों ने ऐसा न कर फैसले के खिलाफ  सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया । न्यायालय ने यथास्थिति बरकरार रखने की बात की जब तक निर्णय न हो जाए । इसका परिणाम निकला माया मिली ना राम, आधी  छोड़ पूरी को धावय आधी मिले न पूरी पावें वाली बात हो गई। पदोन्नति आरक्षण के तहत जिन्हें मिलनी थी उनको भी नहीं मिली और जो वरिष्ठ थे उनको न्यायोचित रूप से पदोन्नत मिलनी चाहिए थी उनको भी नही मिली।
 लाखों कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हुए ।मध्य प्रदेश सरकार के पास आज अनुभवी हाथों की कमी है साथ ही जिन्हें पदोन्नति मिलनी चाहिए थी वह भी कुंठा ग्रस्त हैं । तैतीस चौतीस वर्ष नौकरी करके भी कर्मचारी एक पदोन्नति को तरस गए हैं ।बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए यह सब उनके लिए बड़ा दुखदाई और कष्टप्रद  रहा। वही कुंठाग्रस्त आज जो कर्मचारी कार्यरत है और सेवानिवृत्ति के पास है  प्रत्येक कर्मचारी और उसका परिवार यह चाहता है कि उसको पदोन्नति मिले। शासकीय सेवा में रहते हुए सम्मान अर्जित करें और सेवानिवृत्ति के बाद उसके घर के नेम प्लेट पर उसका  यथासंभव उच्च पद  नामांकित हो।
 पिछली कांग्रेस की सरकार ने यह कहा था कि पदोन्नति न सही पदनाम तथा प्रभार तो उच्च पद का  दिया जा सकता है। क्योंकि कर्मचारी वेतन तो उच्च स्तर का पा ही रहा है केवल पदोन्नति नहीं है ।
वर्तमान भाजपा सरकार ने पूरे प्रदेश के चार लाख सैतालिस हजार अधिकारी कर्मचारियों को पदोन्नत न मिलने की स्थिति में उच्च पद का प्रभार और पदनाम देने का फैसला कर रही है ।  अधिकारी कर्मचारी को पदोन्नति न मिलने पर प्रभार देकर और पदनाम देकर सरकार अगर काम चलाती है तो उस पर किसी तरह का आर्थिक  भार भी नहीं पड़ने वाला है ।
प्रदेश में पिछले 4 वर्षों से पदोन्नति पर रोक लगी है जिससे प्रशासनिक तंत्र अव्यवस्था का शिकार हो चुका है ।क्योंकि 30 अप्रैल 2016 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार के पदोन्नति नियम  मध्यप्रदेश लोकसेवा आदेश 2000 को निरस्त कर दिया है ।इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय गई  जहां न्यायालय ने यथा स्थिति बनाए रखने को कहा। लेकिन अब उच्च पदनाम तथा उच्च पद प्रभार  का सरकार का निर्णय  कुछ मरहम का काम करेगा। निर्णय स्वागत योग्य है।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू “
13 दिसंबर 2020
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