कंदरिया विरासत जो सहेजी जा सकती है
रीवा से 30 किलोमीटर दूर पपरा पहाड़ के एक भाग में मुकुंदपुर के आगे कंदरिया जगह है ।यह जंगल के बीच है लेकिन रीवा व्योहारी मार्ग से लगा हुआ भी है सड़क से लगभग इसकी दूरी 4 किलोमीटर है।
कंदरिया जैसे नाम से ही पता चलता है कि यहां कंदराएं हैं ।इन कंदराओं के पास से कल – कल बहते झरने और नाले हैं ।कुछ नालों में बारहों महीने जल रहता है तो कुछ स्वाभाविक रूप से बारिश के दिनों में सक्रिय रहते हैं। कंदरिया में जिस जगह की मै बात कर रहा हूं यहां बारहमासी जल का प्रवाह है और यह प्रवाह जगह-जगह झरने के रूप में दिखता है। स्वाभाविक है कि जंगल के बीच में बहता हुआ यह शुद्ध जल अमृत समान है औषधीय गुणों से भरपूर पुष्टि कारक है तो दृश्य नयनाभिराम है ।
इस दीपावली के दूसरे दिन यानी कि 15 नवंबर 2020 को मुझे अपने मित्रों के साथ इस जगह जाने का अवसर मिला ।अवसर भी संयोग बस मिला क्योंकि इस सुंदर मनोरम स्थल से 2 किलोमीटर दूर एक मित्र की खेती की जमीन है जहां पर वह औषधीय पौधों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि वर्तमान कोरोना वायरस के समय मैंने भी खेती-बाड़ी में ध्यान दिया है तो उनके इस मनोरम स्थल को देखने तथा जंगल में भरता रोटी खाने की ललक से मै भी चला गया। मित्र का औषधीय खेती का प्रयास प्रशंसनीय है और उससे ज्यादा प्रशंसनीय कार्य उनके द्वारा दिखाया गया यह कंदरिया स्थल है ।
हम कंदरिया के पहले मनसा देव जी के दर्शन कर लेते हैं ।कंदरिया झरने के पहले जंगल के बीच चारों तरफ विशाल मंदिर के भग्नावशेष पड़े हैं उन्हीं भग्नावशेषों के बीच एक सुंदर प्रतिमा स्थापित है जिसे स्थानीय जनमानस मनसा देव जी के रूप में पूजता है । यह मंदिर कई हजार वर्ष पुराना है ।मंदिर के सामने ही एक बावड़ी है जो आज भी अच्छी हालत में हैै ।यह क्षेत्र आदिवासी बहुल क्षेत्र रहा है और यहां मानव सभ्यता लाखो वर्ष पुरानी हैै ।विंध्य क्षेत्र के जंगलों पहाड़ों में आदिमानव द्वारा बनाए गए हजारों वर्ष पुराने शैल चित्र आज भी सुरक्षित हैं । ऐसा ही शैल चित्र कंदरिया में भी मुख्य झरने के पास में हैं जो तीन और चार नंबर के रूप में पुरातत्व विभाग द्वारा चिन्हित किए गए हैं ।दोनों ही शैल चित्र जिन में बारिश का प्रभाव कम है आज भी वैसी ही चमक के साथ हैं जैसे अभी के बने हो ।लेकिन इन शैल चित्रों के सामने समय काल विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाले सूचना पटल का पुरातत्व विभाग द्वारा ना लगाना अखरता है। पुरातत्व विभाग द्वारा यहां पर सूचना पट्टिका लगाना चाहिए जिससे सामान्य जन इसके महत्व और ऐतिहासिकता से परिचित हो सके।
क्षेत्र का भ्रमण मेरे और मेरे मित्रों के लिए काफी रोमांचकारी रहा। नवीन चंद्र व्यास, दिनेश मिश्रा ,सुरेंद्र सिंह, पीयूष सिंह ,अमिताभ त्रिपाठी के साथ क्षेत्र का भ्रमण ज्ञानवर्धक तथा अपनी जड़ों से जुड़ने वाला रहा ।पीयूष सिंह द्वारा बताया गया कि इसी स्थल पर रीवा महाराजा द्वारा शिकार भी किया जाता था। उन्होंने वह स्थल भी दिखाया जहां चारे के रूप में बकरे को बांधा जाता था और ऊपर की ओर मचान बनाया जाता था जहां से रीवा के जंगलों का राजा बाघ बकरे के शिकार के लिए आता तब रीवा के बघेल राजा जंगल के राजा का शिकार करते थे ।
आज पुरातत्व विभाग और जंगल विभाग के साथ प्रशासन और जनता के सहयोग से इस विरासत को सहेजने और सुंदर बनाकर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है जिससे नई पीढ़ी अपने अतीत गौरव से परिचित होकर गौरवान्वित हो सके।
अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू ”
01 दिसंबर 2020
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