बरकरार है मोदी.. मोदी.. मोदी.. की धमक
बरकरार है मोदी.. मोदी.. मोदी.. की धमक
देश की संसद में विश्वास मत हासिल करने के बाद पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 अफ्रीकी देशों के दौरे पर थे। इन देशों की पांच दिवसीय यात्रा में पहले प्रधानमंत्री रवांडा गए फिर युगांडा और बाद में दक्षिण अफ्रीका जहां इन्होंने ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लिया। कोई कुछ भी कहे प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मिलनसार छवि से पूरी दुनिया को अपना अभी भी मुरीद बना कर रखा है। मोदी.. मोदी.. मोदी.. का उद्घोष आज भी वैसा ही होता है जैसे शुरुआती वर्षों में होता था। निसंदेह मोदी आज वैश्विक नेता हैं और भारत के मान सम्मान को विश्व पटल पर बढ़ाने और निखारने का कार्य पूरी निष्ठा के साथ कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जहां ब्रिक्स सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय शांति सुरक्षा जैसे वैश्विक महत्व पर चर्चा करते हैं तो रवांडा की गिरिंका योजना के लिए 200 गाय दान करते हैं। गाय रवांडा के सामाजिक आर्थिक उत्थान का प्रतिमान बन रही है गिरिंका योजना के तहत एक पड़ोसी अपनी गाय की बछिया को दूसरे पड़ोसी को दान करता है जिससे पड़ोसी भी गाय को अपनी समृद्धि का आधार बना सके। खाद्य सुरक्षा और कुपोषण से लड़ने के लिए गाय वरदान है लेकिन हमारे यहां इस पर भी राजनीति चालू हो गई है कि मोदी भारत से 200 गाय लेकर गए जबकि हकीकत यह है कि वही की अच्छी नस्ल की गाय लेकर गोपालकों को भेंट की गई ।वैसे गाय और गोवंश अगर साथ हो तो जीवन की लगभग सारी रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। यहां इस पर विस्तार से बात करना उचित नहीं है लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि मोदी हमेशा मास्टर स्ट्रोक खेलते हैं ।भारत में भी गाय, विदेश में भी गाय विरोधियों को मिर्ची लगाने के लिए काफी है। लेकिन भारत में अब गाय और गोवंश दुर्दशा का शिकार हो रहा है ।हमारी एवं सरकार की नीतियों और सरकार द्वारा सब कुछ गोद लेने की प्रवृत्ति ने हमारे स्वावलंबन को लगभग समाप्ति की ओर धकेल दिया है ।पिज़्ज़ा बर्गर संस्कृति जो आधुनिक और विकास का पैमाना बन गई है उससे देश को बड़ा नुकसान हो रहा है। कोई संस्कृति बुरी नहीं है लेकिन मूल संस्कृति का ह्रास बुरी बात है। भारत को अपने मूल स्वभाव में रखना हमारा उत्तरदायित्व है और इसके लिए ग्रामीण स्वावलंबन जो हमारी संस्कृति रक्षा करने में सदैव महत्वपूर्ण आधार रहा उसको बचाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी से देश इस दिशा में भी बड़ी आशा रखता है। दुनिया आज भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है जिस तरह गुजरात से अमूल जैसा सहकारी ब्रांड निकला है वैसा सभी क्षेत्रों के लिए होना चाहिए और इसकी आशा देश ने मोदी से की है ।इन 4 वर्षों में मोदी सरकार ने सुधार के कई कदम उठाए हैं लेकिन पूर्व सरकारों की भांति जमीनी स्तर पर योजनाएं भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती है भ्रष्टाचार से इन योजनाओं का बचाव आज भी उस स्तर पर नहीं हो पा रहा जैसी उम्मीद थी ।यह गर्व का विषय है कि मोदी सरकार के ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप अभी तक वस्तुतः नहीं लगा है और जनता में इसका अच्छा संदेश है कि मोदी और मोदी सरकार ईमानदारी से काम कर रही है लेकिन आमूलचूल परिवर्तन वाली स्थिति नहीं दिखी है। इसका कारण सिर्फ और सिर्फ निचले स्तर का भ्रष्टाचार है राज्य सरकारों का भ्रष्टाचार है। केंद्र या राज्य सरकार सरकारी संस्थाओं को पुनर्जीवित करने में लगभग असफल साबित हुए हैं ।गैर सरकारी संस्थान विकास के वाहक तो हैं लेकिन सरकारी संस्थान इसका यथार्थ होता है ।मजबूती के साथ विकास को जन जन तक पहुंचाने का काम करते हैं सरकारी संस्थान ।गैर सरकारी संस्थानों का मालिक और लगभग कर्मचारी भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी वही रहते हैं और संसाधन भी कुछ लोगों के हाथ में सीमित हो जाते हैं । जबकि सरकारी संस्थानों से संसाधनों का वितरण सभी लोगों तक होता है।उम्मीद कर सकते हैं कि सरकारी नीतियों का परिणाम आगे आने वाले समय पर और धरातल पर दिखे ।इन सबके बीच जो बात मैंने शीर्षक में उठाई है वह है मोदी जी के नाम की धमक की तो वह आज भी वैसे ही बरकरार है ।आज भी चाहे देश में हो या विदेश में मोदी.. मोदी.. मोदी.. मोदी ..के नारे से पूरा कार्यक्रम गुंजायमान रहता है ।सुदूर देशों की जनता जब भारत के प्रधानमंत्री का गर्मजोशी के साथ स्वागत करती है तो देश का हर नागरिक गौरवान्वित होता है ।देश आगे बढ़े और यह धमक बनी रहे और उम्मीद करें कि सरकारी संस्थानों का धरातल पर पुनर्जागरण का जो बीड़ा मोदी जी ने उठाया वह साकार हो।
अजय नारायण त्रिपाठी “अलखू”