जल संरक्षण और नदियों के प्रति आस्था का प्रतीक है बीहर आरती
जल संरक्षण और नदियों के प्रति आस्था का प्रतीक है बीहर आरती
रीवा 05 जून 2024. मानव के जीवन में प्रकृति का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे जीवन चक्र में वायु, जल, पृथ्वी और वनस्पतियों का महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए भारत की प्राचीन परंपराओं में प्रकृति को सदैव महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। गंगा, गोदावरी और नर्मदा जैसी नदियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। जल में वरूण देवता का वास माना जाता है। इसका मुख्य आधार जल संरक्षण और संवर्धन है। हम देवताओं का वास मानकर जल का संरक्षण करें और जल स्रोतों को नष्ट होने से बचाएं। यही मूल भावन इसमें छिपी हुई है। बनारस में गंगा आरती की भव्यता और नर्मदा में अनेक स्थानों पर नर्मदा आरती भी जल संरक्षण और नदियों के प्रति हमारी आस्था के ही प्रतीक हैं। इसी तरह की नई पहल रीवा में भी शुरू की गई है। रीवा शहर के मध्य से बहने वाली बीहर नदी पर पचमठा घाट पर पिछले छ: महीनों से बीहर आरती का आयोजन किया जा रहा है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होते हैं।
बीहर छोटी सी नदी है। नवगठित मैहर जिले के खरमसेड़ा-प्रतापगढ़ गांव के बिहारी बांध से इसका उद्गम है। मैहर, सतना और रीवा जिले में प्रवाहित होती हुई यह नदी टमस नदी में मिलती है। टमस नदी प्रयागराज के पास जाकर गंगा नदी में मिलती है। रीवा शहर बीहर और बिछिया नदी के संगम पर बसा हुआ है। बीहर नदी के जीर्णोद्धार और इसके तटों को सुंदर बनाने के लिए उप मुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल के विशेष प्रयासों से पुनर्घनत्वीकरण योजना के तहत बीहर रिवरफ्रंट का निर्माण किया जा रहा है। इसके बाएं तट में लगभग 1800 मीटर में रिवर फ्रंट सहित विभिन्न मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य पूरा किया जा चुका है। पचमठा में शिव मंदिर परिसर में ही बीहर आरती का आयोजन किया जाता है। नदियों को साफ-सुथरा और सुंदर बनाए रखने तथा जल संरक्षण का संदेश देने के लिए यह अनूठी पहल है। कई सामाजिक और धार्मिक संगठन इस आयोजन से जुड़े हुए हैं। गत दो वर्षों में बीहर नदी के दोनों तटबंधों को मजबूत और सुंदर बनाया गया है। इसका कार्य लगातार जारी है।