हम भारत के विरोधाभासी लोग

हम भारत के विरोधाभासी लोग भारत को एक क्षेत्रीयता प्रमुख संपन्न, पूंजीवादी, पंथ सापेक्ष, वोटतंत्रात्मक, मनराज्य, बनाने के लिए उसके अलग-अलग नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय समूह की स्वेच्छानुसार, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपासना की पहचान अनुसार स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की वोट अनुसार सुविधा प्राप्त करने के लिए तथा उन सबसे वोट की महिमा और राष्ट्र में उपस्थित वोटबैंक की अखंडता सुनिश्चित करने वाली आपसी कटुता बढ़ाने के लिए संकल्प होकर अपनी बात करने के लिए पूर्णताः स्वतंत्र हैं।
 दुनिया में सबसे बड़े विरोधाभासी लोगों का समूह हम भारतीय हैं ।झूठ बोलना हमारा संस्कार बन चुका है ।हम सब अपने-अपने स्वार्थ की कठौतियों मे गोता लगा रहे हैं ।सबका साथ सबका विकास ना कभी था न कभी होगा क्योंकि राज करने के लिए लोगों को समूह में बांटना ही प्रमुख कार्य है। यह आधार सार्वभौमिक बन चुका है ।यह भी सत्य है कि सभी के  विचार एक जैसे हो नहीं सकते क्योंकि प्रकृति का नियम ही यही है कि एक जैसा दूसरा नहीं और हम भारत के लोगों से ज्यादा यह सब अध्यात्मिक बातें कौन जान सकता है ।हम भारत के लोग उस व्यक्ति की सर्वाधिक मूर्ति पूजा कर रहे हैं जिसने अपना संपूर्ण जीवन मूर्ति पूजा के विरुद्ध लगाया ।भारत के लोग विश्व बंधुत्व की बात करते हैं लेकिन अपने ही लोगों से अलग रहते हैं। त्याग की बात करने वालों की त्याग पर प्रवचन देने की लाखों करोड़ों रुपए की फीस नियत रहती है ।
अभी-अभी एक मुद्दा “अति विशेष सुविधा संपन्न” वर्ग के अधिकारों को लेकर उछला है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि न्याय के आधारभूत सिद्धांत जिस पर आरोप लगाया जाए पहले उसकी जांच कर ली जाए फिर आरोपी को आरोप सत्य पाए जाने पर सजा दी जाए ।यह तो दुनिया भी कहती है हम सब अपने रोजमर्रा के जीवन में भी यह व्यवहार करते हैं ।यहां तक कि घर के बच्चे जब आपस में लड़ते हैं और कोई बच्चा अपनी शिकायत माता पिता के पास लेकर आता है कि दीदी ने मुझे मारा है या भैया ने मुझे मारा है तब सबसे पहला काम मां-बाप पूछने का करते हैं ।क्यों मारा है?  जिसके ऊपर आरोप है कि मारा है उसे पूछते हैं कि तुमने मारा है ? उसके पक्ष को जानने का प्रयास किया जाता है और सारी स्थितियों को जानकर डांटा फटकारा या चपत लगाई जाती है ।सीधे कोई मारना पीटना नहीं प्रारंभ कर देता है जिस पर आरोप है उसे स्पष्टीकरण का मौका और स्पष्टीकरण के साथ ही न्याय करनेवाला अन्य स्रोतों से भी सत्यता का पता लगाता है फिर न्याय निर्णय लेता है ।पूरी दुनिया में अपनाया जाने वाला मूलभूत सिद्धांत है लेकिन हम भारत के विरोधाभासी लोग सिद्धांतों का पालन करना अपराध समझते हैं ।हम भारत के विरोधाभासी लोग अपनी इन बातों को जायज ठहराने के लिए आध्यात्मिक सहारा लेते हैं और कहते हैं कि भाई दुनिया तो पहले से ही गोल है और यह  घूमती भी है ।जो आज नीचे है वह कल ऊपर होगा और जो ऊपर है वह नीचे ।पहले “अति सम्मान प्राप्त समाज ” के गलत सही पर बोलना सबसे बड़ा पाप था अब समय बदला दुनिया घूमी नीचे का भाग ऊपर हुआ है ऊपर का भाग नीचे हुआ है इसका परिणाम एक नए “अति सम्मान प्राप्त समाज ” का उदय हुआ है  अब इसके गलत सही पर बोलना पाप है।जैसे पुराने ग्रंथों में उस समय के “अति महत्व ” प्राप्त लोगों का बचाव और पालन किया जाता था उसी तरह आज का ग्रंथ नवीन “अति महत्त्व ” प्राप्त लोगों के बचाव और पालन का कार्य कर रहा है ।चाहे वह अच्छे स्तर पर हो या बुरे स्तर । हम भारत के लोग कल भी विरोधाभासी थे आज भी विरोधाभासी ही हैं ।
बात तो समानता की करते हैं लेकिन कैसी समानता अंगूठा ,अनामिका है और अनामिका ,अंगूठा । सच यह है कि दोनों का अपना महत्व है दोनों सम्मानित है दोनों का समान महत्व है पर दोनों समान नहीं हैं ।जो काम अपने स्तर पर अंगूठा कर सकता है वह अनामिका नहीं लेकिन तब के अति महत्व प्राप्त समाज ने अंगूठा काटकर समानता बनाए रखने का कार्य किया और आज के अति महत्व प्राप्त समाज अनामिका काटकर समानता बरकरार रखना चाहता है ।पुराने भी अपने कार्य में सफल रहे और आज के नए भी अपने कार्य में सफल हैं परिवर्तन केवल समय के चक्र का ही रहा है ।
 अब देखें तो यह  सत्य है कि सबका साथ सबका विकास ना तो पहले था ना अभी है ना कभी होगा।स्वप्न देखने और दिखाने की कभी पाबंदी नहीं रही है। जन्नत की हक़ीक़त बयां करने का सबको अधिकार है लेकिन हम भारत के विरोधाभासी लोग सच को स्वीकार कभी नहीं करेंगे कि जन्नत की हकीकत तो मरने के बाद ही पता चलती है। मर के जन्नत की  हकीकत जानने से अच्छा है कि जीवन को हकीकत के साथ जी लिया जाए।
और हकीकत यह है कि तुम मानव हो वोटबैंक नहीं ।अपनी मानवता को जीवित रखो यही तुम्हारी समानता है और किसी तरह की समानता की बात मूर्खों का उपदेश है।
 आम के बगीचे में आम की कितनी प्रजातियां रहती हैं रीवा के ही कुठुलिया बगीचे का उदाहरण ले लें  है ।यहां सभी तरह के आम हैं लेकिन सुंदरजा यहां का विशेष है ।आम सभी हैं लेकिन सबका रंग, रूप ,बजन, मिठास अलग अलग है।  कोई जल्दी पकता है कोई देर से, किसी का अचार अच्छा बनता है तो किसी का शेक।यहां सुंदरजा विशेष है तो  दूसरी जगह आम्रपाली विशेष हो सकता है मालदहा विशेष हो सकता है तोतापरी विशेष हो सकता है आम सभी हैं लेकिन एक समान नहीं ।समान कुछ भी नही है । मैं जो कल था वह आज नहीं हूं मैं किसी रुप से सामान नहीं हूं प्रतिबल बदल रहा हूं तो दुनिया में करोड़ों लोग समान कैसे हो सकते हैं ?आपका अपना वैशिष्ट है सबका सम्मान जरूरी है उनका समान होना जरूरी नही है ।सबको समान करना एक मूर्खतापूर्ण उद्यम है।
 एक तरफ सामाजिक समरसता उसका भोज दूसरी तरफ समाज को विभाजित करते हुए भोजन की उपलब्धता। एक तरफ समान नागरिक संहिता कानून की बात दूसरी तरफ विशेष समूह को विशेष कानूनों द्वारा प्राश्रय। एक तरफ समाप्त हो रही जीव जाति, मनुष्य जाति, अन्न जाति के संरक्षण का प्रयास दूसरी तरफ संकर प्रजाति के प्रोत्साहन के लिए अनुसंधान और सहायता ।
हम भारत के विरोधाभासी लोग यही नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर हमें करना क्या है? किसी जाति का संरक्षण करना है या उसे समाप्त करना है।
 हम भारत के विरोधाभासी लोग आवाज उठाते हैं कि मंत्री से लेकर संत्री तक के बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ाना अनिवार्य कर दिया जाए जिससे विद्यालय की स्थिति में सुधार होगा ।लेकिन वहीं हम भारत के विरोधाभासी लोग 80 नंबर वाले को शिक्षक पद के लिए अनुपयुक्त घोषित करते हैं 8 नंबर वाले को उपयुक्त। फिर हम भारत के विरोधाभासी लोग विशेष लाभ की चाह रखने वाले यह सोच लेते हैं कि 8 नंबर वाला 80 नंबर वाले जैसा पढ़ा लेगा और आठ नंबर वाला 80 नंबर वाले के सामान रहेगा।
 एक सत्य घटना बताता हूं विशेष सुविधा प्राप्त छात्रों ने अपने स्थानीय मंत्री के सामने बड़े ही करुण स्वर में अपना मांग पत्र रखा । मांग पत्र में था विशेष भर्ती अभियान की बात, अंकों में छूट की मांग अन्य सुविधाओं के साथ इनकी विशेष मांग थी योग्य शिक्षकों की भर्ती ।हम भारत के विरोधाभासी लोग यह कब समझेंगे कि या तो योग्य शिक्षक की भर्ती सुविधा ले लो या अयोग्य शिक्षक की अति विशेष सुविधा का लाभ।
 हम भारत के विरोधाभासी लोग हमेशा चमत्कार में विश्वास करना चाहते हैं क्योंकि हमारी हमेशा चाहत रही है कि सुविधा तो हमें सब मिले लेकिन काम कोई न करना पड़े। बाबा जी ताबीज दे दें गड़ा या आसमान से टपक कर धन मिल जाए और जिंदगी ऐश के साथ एश से कट जाए ।हम भारत के विरोधाभासी लोगों की मनोकामना पूर्ति कभी बाबाजी  ताबीज देकर करते थे और आज के बाबा जी आश्वासन और वादों की ताबीज देकर कर रहे हैं। आम आदमी का शोषण तब भी था और आज भी। बाबाजी ने तब भी मजे किए और आज भी कर रहे हैं ।आखिर हम भारत के विरोधाभासी लोग कब बाबा जी से कहेंगे कि बाबा जी आपके ताबीज से नहीं मेहनत के बीज से लगाए पौधे मे आए फलों से हम अपना गुजारा कर लेंगे ।हम भारत के विरोधाभासी लोग एक तरफ विविधता में एकता का राग अलापते हैं दूसरी तरफ विविधता को समाप्त करने का सरकारी कार्यक्रम चलाते हैं फिर हम सब इस सच को स्वीकार नही करते कि विविधता  हमारी सुंदरता है ।बाग मे खिले भिन्न भिन्न तरह के पुष्प उसकी सुंदरता है नीरसता नहीं। नीरसता तो तब है जब बाग में एक ही तरह के पुष्प खिलें ।
बार-बार यही सोचता हूं कि हम भारत के विरोधाभासी लोग आखिर कब सत्यानाशी की जगह सत्याभासी होंगे।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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