किसान सम्मेलनों के माध्यम से सत्ता पक्ष का विपक्ष को उत्तर

गरीब, किसान सत्ता की चाबी है। पूरी राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी इन्हीं के उत्थान की उद्घोषणा करते घूमते हैं और पूरी राजनीति इन्हीं से शुरू और इन्हीं मे समाप्त हो जाती है ।

वर्तमान केंद्रीय सरकार ने भी कृषि सुधार के लिए 3 कानूनों को मान्य किया है जिसके तहत सरकार द्वारा किसान के हित के कई फायदे बताए जा रहे हैं ।कुछ देखने में भी ऐसा ही लगता है जिसके तहत किसान अपने उत्पाद को कहीं भी बेच सकता है। सरकार के कानून के बंधन मंडी टैक्स के रूप में जो थी उससे किसान को राहत दी गई है। कांट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसान अन्य किसी पैसे वाले व्यक्ति से समझौता करके भी कृषि कर सकता है जिससे गरीब किसान को फायदा मिलेगा। अपने कृषि उत्पाद को कहीं बेचने, भेजने के साथ किसान खाद्य पदार्थ निर्माण इकाइयों को भी सीधे अपना उत्पाद बेच सकते हैं। वर्तमान मंडिया चालू रहेंंगी, न्यूनतम समर्थन मूल्य जो सरकार द्वारा दिया जाता है वह लागू रहेगा। इसके साथ उत्पाद का  ज्यादा भाव मिलने पर किसान अपने उत्पाद को बाहर भी बेच दे ऐसी सुविधा है। वैसे किसान  ज्यादा भाव पर अपना उत्पाद बाहर ही  बेचता था जरूर यह छोटे स्तर पर हो पाता था अब वह  बड़े स्तर पर भी हो सकेगा।

इन्हीं कृषि सुधारों को सरकार से वापस लेने के लिए पंजाब मुख्य रूप से और हरियाणा के किसान दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन में मोदी विरोध भी है तो विपक्ष का पूरा पूरा सहयोग भी इन किसानों को है ।और यहीं से किसान के अलावा आंदोलन सत्ता पक्ष – विपक्ष का मुद्दा  बन गया है।

वैसे कृषि सुधार कानून में ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है जिसके तहत इन किसानों के बीच से खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। प्रधानमंत्री मोदी को मारने की धमकी दी जाए, कम्युनिस्ट पार्टी की महिलाओं द्वारा मोदी के मरने की दुआएं मांगी जाए।

सरकार किसानों से कानून पर सुधार के लिए चर्चा के लिए तैयार है। सुधार के लिए तैयार है लेकिन विपक्ष है कि कानून वापस लेने के जिद पर अड़ा है।  विपक्ष आंदोलन के रूप मे अपना रंग दिखा रहा है तो  सरकार भी अब इन सम्मेलनों के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही है। विपक्ष से सत्ता पक्ष ज्यादा ताकतवर है पूरे देश की जनता ने उसे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया है। प्रदेशों में ज्यादा जगह सरकार भी इनकी है इन्होंने भी विपक्ष के आंदोलन के उत्तर में किसानों के समर्थन वाले सम्मेलन कर दिए हैंं ।

लोकतंत्र में ऐसा ही होना भी चाहिए। अपनी-अपनी बात और क्षमता का प्रदर्शन लोकतांत्रिक तरीके से करके जनता को अपने समर्थन में लाना चाहिए ।क्योंकि लोकतंत्र जनता ही सर्वोपरि है ।

आज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में रीवा में भी संभागीय किसान सम्मेलन कृषि सुधार कानून के पक्ष में हुआ ।एनसीसी ग्राउंड में संपन्न हुए इस सम्मेलन में काफी संख्या में किसान शामिल हुए जिससे यह सम्मेलन सफल कहा जा सकता है। कल रात भर बरसात हुई थी कीचड़ था फिर भी इतनी संख्या मे आए  किसानों को देखकर  साफ जाहिर होता था कि सम्मेलन को सफल रहा। रीवा संभाग के किसानों ने बता दिया कि हम कृषि सुधार कानून के पक्ष में हैंं और मोदी सरकार को अपना समर्थन व्यक्त करते हैं। विपक्ष के प्रश्न पर सत्ता पक्ष का यह उत्तर सार्वजनिक रूप से दर्ज हो गया है ।

रीवा जैसी जगह में जहां बाणसागर बांध की नहरों ने यहां के किसानों की तकदीर बदलने का काम किया है। इसकी सिंचाई के कारण आज रीवा का ज्यादातर भाग सिंचित हो गया है कृषि उत्पादन बढने के साथ समृद्धि आई है  ऐसे किसानों को  भाजपा सरकार, शिवराज सिंह चौहान तथा  रीवा विधायक पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल पर पूरा विश्वास है ।यह विश्वास है कि यह लोग जो भी करेंगे हमारे हित में करेंगे। सम्मेलन की सफलता ने यह दर्शा दिया है कि किसान केंद्रीय सत्ता के कृषि सुधार कानून  से इतना परेशान नहीं है जितना कि विपक्ष। किसानों को सरकार की योजनाओं सुविधाओं का लाभ मिल रहा है कुछ कमी बेशी हो सकती है लेकिन यह भी निर्विवाद सच है कि प्रदेश में शिवराज सरकार और केंद्र में मोदी सरकार ने किसानों के हित मे कार्य किए हैं जिसका लाभ किसानों  के विश्वास के रूप में दिख रहा है। किसान सम्मेलन के माध्यम से सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष को जवाब देने का अच्छा तरीका कहा जा सकता है ।अपने सम्मेलन में यह कानून के फायदे किसानों तक पहुंचा रहे हैं विपक्ष इसकी कमी नहीं बता पा रहा है। भविष्य की शंका वाले भूत  से डराने का प्रयास हो रहा है।

कुल मिलाकर सत्ता पक्ष  इन किसान सम्मेलनों के माध्यम से विपक्ष को उत्तर देने में कामयाब हो गया है।

अजय नारायण त्रिपाठी “ अलखू ”

16 दिसंबर 2020

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