दस्तक अभियान में कोताही बरतने पर सख्त कार्यवाही होगी – रीवा संभागायुक्त

रीवा 02 जून 2019. रीवा संभागायुक्त डॉ. अशोक कुमार भार्गव ने लोक स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों से साफ शब्दों में कहा है कि दस्तक अभियान में यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही, कोताही या उदासीनता पाई गई तो संबंधित अधिकारी और कर्मचारी के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि 5 वर्ष तक आयु का एक भी बच्चा पहचान करने से छूटना नहीं चाहिए। रीवा संभागायुक्त डॉ. भार्गव 10 जून से 20 जुलाई 2019 तक चलने वाले दस्तक अभियान की तैयारियों की सतना में समीक्षा कर रहे थे। इस मौके पर जिला कलेक्टर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत तथा जिले के अनुविभागीय अधिकारी राजस्व समेत लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।
संभागायुक्त ने मार्मिक शब्दों में कहा कि दस्तक अभियान हमारे देश के नौनिहालों के लिए मानवीय कल्याण का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्युदर 55 प्रति 1000 जीवित बच्चे हैं। जिसके प्रमुख कारणों में बाल्यकालीन दस्त रोग, निमोनिया एवं कुपोषण व एनीमिया है। उन्होंने कहा कि यह समाज का चिन्ताजनक पहलू है कि राज्य में करीब 81 प्रतिशत महिलाओं द्वारा संस्थागत प्रसव का लाभ लेने के बावजूद केवल 35 प्रतिशत नवजात शिशुओं के ही माँ का पहला गाढ़ा पीला दूध का लाभ मिल रहा है। इसका कारण जागरूकता की कमी है।
संभागायुक्त ने कहा कि दस्तक अभियान के दौरान लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग आपस में मिलकर कार्य करें तथा नवजात शिशुओं को माँ का दूध पिलाने हेतु लोगों को जागरूक करें। उन्होंने कहा कि अभियान को परिणाम मूलक बनाने हेतु जिला स्तर एवं विकासखण्ड स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित की जाए। ग्राम स्तर तक लोगों को अभियान के प्रति जागरूक किया जाए। उन्होंने कहा कि समपर्ण भावना से कार्य करने पर ही अभियान को सफल बनाया जा सकता है।
संभागायुक्त ने अनुविभागीय अधिकारियों राजस्व को निर्देश दिए कि वे अपने क्षेत्र में समन्वयक के रूप में कार्य कर अभियान को गतिशील बनाएं। उन्होंने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के हिदायत दी कि इस अभियान में भरपूर सहयोग देने के लिए वह स्वयं एवं जनपदों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को दायित्व सौंपे। उन्होंने अभियान को एक जन अन्दोलन के रूप में चलाने पर बल दिया। संभागायुक्त ने अपने मैदानी अमले को सक्रिय करने हेतु महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों और लोक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए और कहा कि ऐसा करके वे बच्चों के बचपन को खुशहाल बनाएं और उन्हे रोगमुक्त करें। अगर बच्चे स्वस्थ्य रहेंगे तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में प्रमुख बाल्यकालीन बीमारियों की सामुदायिक स्तर पर सक्रिय पहचान द्वारा त्वरित प्रबंधन करना, ताकि बाल्य मृत्यु दर में वांछित कमी लाई जा सकें। अभियान के दौरान समुदाय में अभियान के दौरान बीमार नवजातों और बच्चों की पहचान, प्रबंधन एवं रेफरल किया जाएगा। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में शैशव एवं बाल्यकालीन निमोनिया की त्वरित पहचान, प्रबंधन एवं रेफरल किया जाएगा। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों मं बाल्यकालीन दस्तरोग के नियंत्रण हेतु ओआरएस एवं जिंक के उपयोग संबंधी समझाइश दी जाएगी व प्रत्येक घर में ओआरएस पहुंचाया जाएगा। गंभीर कुपोषित बच्चों की सक्रिय स्क्रीनिंग एवं प्रबंधन किया जाएगा। 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों में गंभीर एनीमिया की सक्रिय स्क्रीनिंग एवं प्रबंधन किया जाएगा। बच्चों में दिखाई देने वाली जन्मजात विकृतियों एवं वृद्धि विलंब की पहचान की जाएगी और 9 माह से 5 वर्ष तक के समस्त बच्चों को विटामिन-ए अनुपूरण दिया जाएगा। गृह भेंट के दौरान आंशिक रूप से टीकाकृत व छूटे हुए बच्चों की टीकाकरण स्थिति की जानकारी ली जाएगी और समुचित शिशु एवं बाल आहार पूर्ति व्यवहार को बढ़ावा दिया जाएगा। एसएनसीयू एवं एनआरसी से छूट्टी प्राप्त बच्चों में बीमारी स्क्रीनिंग तथा फॉलोअप को प्रोत्साहन दिया जाएगा तथा बाल मृत्यु की जानकारी ली जाएगी।
अभियान के दौरान स्वस्थ्य ग्राम सभा का आयोजन होगा। इसके तहत प्रत्येक ग्राम में दस्तक दल द्वारा लक्षित हितग्राहियों को सम्पूर्ण आच्छादन उपरांत अंतिम दिवस के सायंकाल में स्वस्थ्य ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा। स्वस्थ्य ग्राम सभा में विभिन्न बिन्दुओं पर चर्चा होगी। जिनमें ग्रीष्मकालीन दस्त रोग का नियंत्रण एवं ओआरएस घोल तथा जिंक गोलियों का उपयोग, बीमार गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान एवं एनआरसी बच्चों के रेफरल हेतु समुदाय की भूमिका, बाल्यकालीन निमोनिया को पहचानने हेतु लक्षणों के सरल चिन्हांकन का प्रसार, किशोरी बालिकाओं में संतुलित आहार, आईएफए अनूपूरण, कृमिनाशन एवं माहवारी के दौरान स्वच्छता का महत्व, प्रसव पूर्व एवं प्रसवोत्तर जांच, उच्च जोखिम गर्भावस्था के लक्षणों की पहचान तथा संस्थागत प्रसव, जन्मोपरांत शिशु द्वारा एक घंटे के भीतर स्तनपान, छ: माह तक केवल स्तनपान तथा छ: माह के पश्चात अनुपूरक आहार प्रारंभ करने संबंधी समझाइश तथा वातावरण एवं व्यक्तिगत स्वच्छता द्वारा संचारी रोगों तथा मलेरिया एवं टीबी, कुष्ठ रोग का नियंत्रण शामिल है।

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *