शासकीय कैलेण्डर में दमकी रीवा की सुपाड़ी हस्तकला

रीवा 06 फरवरी 2019. रीवा की अनूठी हस्तशिल्प कला सुपाड़ी के खिलौने पूरी दुनिया में रीवा का नाम रोशन कर रही है। सुपाड़ी के खिलौने, मूर्तियां, सुपाड़ी की छड़ी लोगों के सम्मान में दिये जाने वाले पसंदीदा उपहार बन चुके हैं। ये न सिर्फ रीवा और आसपास बल्कि पूरे देश व विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं और इनकी मांग है। इस अनूठी हस्तशिल्प कला को जीवंत रखे हुये हैं। रीवा के कुछ कुंदेर परिवार जिसकी कई पीढ़ियाँ इस पुश्तैनी कार्य को वर्षों से करती आ रही हैं। कुछ कारीगरों का कहना है कि इस सुपाड़ी से मूर्तियाँ, खिलौने, छड़ी आदि बनाना उनकी कला है और कोशिश रहेगी कि ये कला निरंतर चलती रहे। उन्होंने बताया कि समय-समय पर प्रशासन द्वारा उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया तथा कई बार हस्तशिल्प प्रदर्शनी के माध्यम से देश के कई हिस्सों में जाने का मौका मिला। वर्ष 2019 के मध्यप्रदेश शासन के कैलेण्डर में रीवा जिले की सुपाड़ी कला के वैभव को प्रदर्शित किया गया है। इससे सुपाड़ी कला के हस्तशिल्पियों में बेहद खुशी है। दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित स्व. राममिलन कुंदेर के पुत्र राकेश कुन्देर (लल्ली) का कहना है कि मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार द्वारा हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहित करने के लिए यह अच्छा कदम उठाया गया है। इससे हम शिल्पियों की कला का और अधिक प्रचार-प्रसार हो सकेगा।
दरअसल कुंदेर परिवार पहले लकड़ी के खिलौने बनाया करते थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इन्होंने सुपाड़ी में भी प्रयोग करते हुए तरह-तरह की आकृतियां बनानी शुरू कर दी। इस कार्य में उनका परिवार भी शामिल होता चला गया और धीरे-धीरे यह कला उनके परिवार के लिये पुश्तैनी व्यवसाय बन गई। समय के साथ रीवा की सुपाड़ी कला की चर्चा दूसरे शहरों से होते हुए पूरे भारत में पहुंच गई। सम्मान स्वरूप सुपाड़ी के खिलौने मूर्तियां देने का रिवाज सा चल पड़ा जो राजनीतिक गलियारों तक भी पहुंचा। विधानसभा और लोकसभा तक राजनेताओं के माध्यम से सुपाड़ी की मूर्तियां पहुंच गई और इस अनूठी कला के कलाकारों को प्रोत्साहन भी मिला। सुपाड़ी के खिलौने की मांग देश सहित चीन, नेपाल, इंग्लैण्ड तथा अन्य देशों में भी है। इनका पूरा परिवार इसी कला पर निर्भर है।
कुंदेर परिवार की स्त्रियां भी इस काम को लगन के साथ करती हैं। उनका कहना है कि उन्होंने घर में होने वाले इस कार्य को देखकर सीख लिया और वो भी इस कला में माहिर हो गईं। इस कला में वे अपने परिवार का हाथ बंटाती हैं। वे सुपाड़ी से अब तक लक्ष्मी, गणेश, राधा-कृष्ण आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां, ताजमहल, कप प्लेट आदि चीजें बना चुके हैं और इन्हें खरीदने के लिये ग्राहक भी आते हैं। इन्हें विशेष आयोजनों में कुछ मूर्तियां या अन्य वस्तुएं बनाने का आर्डर मिलता रहता है।

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