मत मतदाता मतदान का हो अब गुणात्मक मूल्यांकन

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं तीन राज्यों में संपन्न हो चुके हैं और पांच माह बाद देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं ।लोकतंत्र संख्या का खेल है जिसकी संख्या ज्यादा वह जीता।लोकतंत्र मे संख्याबल में सबसे बड़ा बल है लेकिन इस संख्या बल की गुणवत्ता पर भी अब विचार करना आवश्यक है ।इस सवाल पर बहुत से लोगों को लगेगा कि आखिर चुनाव सुधार तो कई स्तर पर हो रहा है तब इसकी क्या जरूरत है।लेकिन ऐसा लगने लगा है कि मत मतदाता मतदान की गुणवत्ता पर विशेष बल देने की आवश्यकता आ गई है दूसरे जो समानता का भाव संविधान के समक्ष होना चाहिए उसके लिए भी जरूरी जान पड़ता है। 28 तारीख को मध्य प्रदेश का चुनाव संपन्न हुआ मेरा अनुभव मतदान में अच्छा नहीं रहा ढाई घंटा लाइन में लगना पड़ा सभी कर्मचारी अयोग्यता से नई घंटा लाइन में लगने के दौरान मतदाताओं के स्वभाव का दर्शन कर रहा था जो इस लोकतंत्र का विकास स्वरूप है मतदाताओं में बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता थे जिनका चेहरा सूजा हुआ था और पूरे शरीर से शराब की बदबू आ रही थी बहुत से कंबल ,साड़ी हजार पांच सौ की नगदी लिए बैठे हुए थे ।ऐसे मतदाताओं से मेरे अनुसार लोकतंत्र की मजबूती या कहे कि देश की मजबूती बेमानी है। होना तो यह चाहिए कि मतदान केंद्र में अल्कोहल पीकर आने  वालों का टेस्ट किया जाए शराब पिए हुए लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित किया जाए साथ ही प्रलोभन में आने वाले मतदाताओं पर कुछ मापदंड बनाकर निगरानी की जाए। उनसे से पूछा जाना चाहिए कि आपको अपने मत के अधिकार के बारे में पता है आप के मत से आपके लिए और समाज के लिए क्या-क्या लाभ होने वाले हैं आदि आदि ।अब बात अगर संख्या बल की जाए तो इसमें यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि एक परिवार सरकार के नियम कानून को मानता है हम दो हमारे दो नियम का पालन करता है वहीं दूसरा परिवार सरकारी नियमों को तोड़ना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता है ।उसका मानना है कि होने दो जितने पैदा हो सके इसको गंभीरता से देखने की आवश्यकता है ।अलग-अलग समूहों द्वारा कहा जाता है जिसकी जितनी संख्या उतनी उसकी भागीदारी। यहां देखने वाली बात यह है कि संख्या बल में कानून का पालन करने वाला समूह कौन सा है। जनसंख्या नियंत्रण के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब ऐसी बातें देश के सभी समूह संख्या बल बढ़ाने की बात करते नजर आते कोई कानून को सख्ती से पालन करने का हिमायती नही होता। सोचने वाली बात यह है कि आखिर जिसने कानून का सम्मान कर जनसंख्या नियंत्रण को माना उसने कौन सा गुनाह किया क्योंकि लोकतंत्र में संख्या बल का राज है तो जो गैरकानूनी कार में संलिप्त है तो वही राजा हुआ।अब विषय को भी आज देखने की आवश्यकता आन पड़ी है होना यह चाहिए कि परिवार मत मतदान का आधार बने। अगर एक परिवार हम दो हमारे दो का पालन करता है और परिवार की संख्या चार है जो मतदान के लिए योग्यता रखते हैं दूसरा परिवार है जो सब ऊपर वाले का आशीर्वाद मानकर हम पांच हमारे पच्चीस का नारा बुलंद किया है उसके मत की गिनती तीस  नहीं होनी चाहिए ।दोनों के मतों की गिनती चार ही होनी चाहिए।लोकतंत्र में असली राजा विधायक सांसद चुने हुए जनप्रतिनिधि है यही नीत निर्धारण करते हैं और सर्व सुविधा का अधिकार पूर्वक उपभोग करते हैं इसलिए  कानून से संख्याबल जिसे मतबल बनाया जाता है पूरी तरह से नियंत्रित करने की आवश्यकता है।वैसे भी अगर इस असमानता पर अंकुश नहीं लगाया गया तो कानून का पालन करने वाला परिवार मात्र इनका नौकर बनने के अधिकार तक ही सीमित रह जाएगा। लोकतंत्र के स्वस्थ्य सफलता के लिए एक और सुधार जरूरी है ।मतदान प्रक्रिया में सुधार का  ऑनलाइन मतदान की सुविधा भी मतदाताओं को मिलनी चाहिए।यहां तक कि अगर कोई मतदाता मतदान के समय किसी कारणवश विदेश चला जाता है तो वह वहां से भी अपना मतदान कर सके इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए। मतदान व्यवस्था में देश का सर्वाधिक बौद्धिक और कामकाजी तबका लगभग मतदान से वंचित रह जाता है।यह सच है कि छः महीने पहले आवेदन देकर अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वाया जा सकता है लेकिन ज्यादातर लोग इससे बचे रह जाते हैं जिनका कार्य क्षेत्र भ्रमण संबंधी होता है वह अपना नाम एक ही जगह लिखा रहने देना  चाहते हैं ।ज्यादातर युवाओं के नाम अपने गृह क्षेत्र के मतदाता सूची में लिखा रहता है लेकिन वह काम दूसरे शहरों में करते हैं ऐसे मतदाता भी अपने मतदान का प्रयोग करने आते हैं जब चुनाव में उनका अपना कोई खड़ा होता है दूसरी बात यह भी है कि मतदाता भी अपने क्षेत्र में अपने मतदान का उपयोग करना चाहता है क्योंकि उसके ज्यादा हित अपने ही क्षेत्र से जुड़े होते हैं ।ऑनलाइन वोटिंग सुविधा से मतदान की गुणवत्ता बढ़ेगी और ज्यादा से ज्यादा मतदान हो सकेगा ।वर्तमान व्यवस्था में कुछ लोगों के मत थोक मे पड़  जाते हैं लेकिन बाहर काम कर रहे ऐसे मतदाताओं के वोट पड़ने से रह जाते हैं जो उच्च शिक्षित तथा बड़ी-बड़ी संस्थानों में काम करते हैं कुल मिलाकर मत, मतदाता, मतदान के स्वरूप में मूल्य आधारित गुणात्मक सुधार की आज आवश्यकता है और इसे ज्यादा देर तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जितना जल्दी इसे अपना लिया जाए उतना ही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक रहेगा।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *