ऊषा के लिये वरदान बना गौ पालन “सफलता की कहानी”

गौपालन प्राचीन काल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा कृषि का आधार रहा है। मानव को दूध तथा खेतों को गोवर देकर गाय दोनों का पोषण करती है। इसी लिये उसे गौमाता कहा जाता है। आज भी गौपालन लाभदायक व्यवसाय है। रीवा जिले के रायपुर कर्चुलियान विकासखण्ड के ग्राम लौवा कोठार की श्रीमती ऊषा विश्वकर्मा ने गौपालन अपना कर अपनी गरीबी मिटाई है। उनकी गाय को विकासखण्ड स्तरीय प्रतियोगिता में गौपाल पुरस्कार के रूप में 7500 रूपये मिले हैं। उनकी भारतीय नस्ल गिर की गाये 8 से 10 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं।
म.प्र. ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा बनाये गये महिला स्वसहायता समूह में ऊषा विश्वकर्मा शामिल हुयी। उन्होंने समूह के सदस्य के रूप में दुधारू पशुपतान प्रशिक्षण लिया। उन्होंने प्रशिक्षित होने के बाद आजीविका मिशन की ग्राम समिति से ऊषा ने ऋण लेकर गीर नस्ल की गाय खरीदी। गाय की समुचित देखभाल तथा अच्छा एवं पोषक आहार के कारण 8-10 लीटर दूध प्रतिदिन मिलने लगा। ऊषा दूध बेंचकर हरमाह 10 हजार रूपये कमा रही है। ग्राम समिति को भी नियमित रूप से राशि अदाकर रही है। ऊषा अब शीघ्र ही एक अन्य गाय खरीद कर अपनी आय दुगनी करने जा रही है। शासन की आजीविका मिशन योजना से जुड़कर ऊषा ने गौपालन से अपने जीवन में विकास का उजाला फैलाया।

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