जनसंपर्क मंत्री ने श्री रामानुज संस्कृत विश्वविद्यालय का किया भूमि पूजन
जनसंपर्क मंत्री ने श्री रामानुज संस्कृत विश्वविद्यालय का किया भूमि पूजन
संस्कृत भाषा ही हमें जीवन के सच्चे संस्कार देती है- जनसंपर्क मंत्री
संस्कृत विश्वविद्यालय ज्ञान संस्कार और सनातन धर्म के उत्कर्ष का केंद्र बनेगा- जनसंपर्क मंत्री
रीवा 07 अक्टूबर 2023. लक्ष्मणबाग मंदिर परिसर में आयोजित समारोह में जनसंपर्क तथा पीएचई मंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल ने श्री रामानुज संस्कृत विश्वविद्यालय का भूमि पूजन किया। इस दौरान सांसद श्री जनार्दन मिश्र तथा पूर्व मंत्री श्री पुष्पराज सिंह उपस्थित रहे। इस अवसर पर मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत ही नहीं दुनिया की अनेक भाषाओं की जननी है। विश्व की ज्ञान की सर्वश्रेष्ठ किताबें संस्कृत में ही है। वेद पुराण उपनिषद का अप्रतिम ज्ञान हमें संस्कृत भाषा के माध्यम से ही मिलता है। संस्कृत भाषा हमें ज्ञान के साथ-साथ जीवन के सच्चे संस्कार देती है। कोई व्यक्ति किसी भी भाषा का हो और कितनी भी उन्नति कर जाए उसके जीवन के जन्म से लेकर मरण तक के संस्कार संस्कृत के मंत्रों से ही पूरे होते हैं। संस्कृत देव भाषा है। इसका जितना महत्व प्राचीन काल में था उससे कहीं महत्व वर्तमान काल में है।
जनसंपर्क मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि आज विंध्यवासियों का तीन पीढियां का सपना पूरा हो रहा है। यहां संस्कृत विद्वानों की कमी नहीं है। पूरे विंध्य में संस्कृत के विद्यालय और महाविद्यालय हैं। स्वामी ऋषि कुमार जी, पंडित रामसागर शास्त्री, पंडित कुशल प्रसाद शास्त्री पं. भगवानदत्त शास्त्री तथा अन्य संस्कृत विद्वानों ने बरसों विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रयास किया। आज उन सब का आशीर्वाद और भगवान की कृपा से यह कार्य पूरा हो रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने रीवा में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना में बहुत बड़ा योगदान दिया है। लगातार प्रयास करने के बाद हमको यह सौगात मिली है ।रामानुज संस्कृत विश्वविद्यालय ज्ञान अध्यात्म और सनातन धर्म के विकास का केंद्र बनेगा। आज सनातन धर्म को कई ओर से चुनौती मिल रही है। इसे देश विरोधी तत्वों द्वारा मिटाने का प्रयास किया जा रहा है ।ऐसे में संस्कृत भाषा ही है जो सनातन धर्म को आगे बढ़ाने और हमेशा हमेशा के लिए कायम रखने का प्रयास करेगी। इसलिए हम सबको संस्कृत से अपना नाता जोड़ना है।
समारोह में सांसद श्री जनार्दन मिश्रा ने कहा कि संस्कृत भाषा का विद्वान सदैव विनम्र और आध्यात्मिक होता है। हमारे देश में कभी संस्कृत का अध्ययन गौरव का विषय होता था। हमारे देश के पराभव का प्रमुख कारण यही है कि हमने संस्कृत भाषा को संरक्षित करने पर ध्यान नहीं दिया। संस्कृत उपेक्षित हुई तो देश का भी पराभव हुआ ।दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान संस्कृत के ग्रंथों में है । हमें इससे अपना नाता जोड़ना होगा। रामानुज संस्कृत विश्वविद्यालय देश की संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा करने वालों को तैयार करेगा। रीवा को विश्वविद्यालय का उपहार देने के लिए मुख्यमंत्री जी और जनसंपर्क मंत्री जी का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
समारोह में संस्कृत विद्वान डॉक्टर अंजनी प्रसाद पांडे ने कहा कि विश्वविद्यालय बनने के साथ यहां विद्यार्थियों की आवश्यकता होगी। हर गांव, हर घर संस्कृत अध्ययन के लिए अपने प्रतिभाशाली संतानों को हमें दे ।जब यह विश्वविद्यालय मूर्त रूप ले तो इसमें सनातन परंपरा के अनुसार वेद, व्याकरण, ज्योतिष और कर्मकांड का अध्ययन कराया जाए। इसमे अध्यापन वैदिक परंपरा के अनुसार किया जाए। समारोह में विदुषी डॉक्टर ज्ञानवती अवस्थी ने कहा कि मंत्री श्री राजेंद्र शुक्ला जी ने रीवा का कलेवर बदल दिया है। उनके प्रयासों से रीवा का चौमुखी विकास हुआ है। आज उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करके पूरे क्षेत्र के विद्वानों को बहुत बड़ा उपहार दिया है। संस्कृत विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा है। हमने स्वयं संस्कृत की उपेक्षा की लेकिन जब विदेशी विद्वानों ने यहां के वेदों का अध्ययन कर उनकी प्रामाणिकता सिद्ध की तब हमें भान हुआ कि हमारे पास संस्कृत में कितना बड़ा ज्ञान कोष है। मैक्स मूलर जैसे विद्वानों ने पूरी दुनिया में वेदों और पुराणों की महत्ता प्रतिपादित की। समारोह में श्री बलभद्र प्रसाद शुक्ला ने भी अपने विचार व्यक्त किया। समारोह का संचालन करते हुए जयराम शुक्ल ने विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर संस्कृत के विकास की गाथा के विभिन्न आयामों से परिचय कराया। समारोह में कलेक्ट्रेट कार्यालय के छह कर्मचारियों को मंत्री श्री शुक्ल ने अनुकंपा नियुक्ति के आदेश प्रदान किया। समारोह में सिरमौर के पत्रकार इंजीनियर राजेंद्र पांडेय द्वारा लिखित पुस्तक मां भारती के सपूत विंध्य के लाल का विमोचन मंत्री श्री शुक्ल तथा सांसद ने किया। समारोह में श्री बलराम शास्त्री, श्री जयंत खन्ना, श्री केशव प्रसाद पांडे, श्री शिवम चतुर्वेदी, डॉक्टर सत्यजीत पांडे, डॉ. प्रभाकर चतुर्वेदी, शेषमणि पटेल, संस्कृत महाविद्यालय की प्राचार्य डॉक्टर कल्पना तिवारी, श्री दीनानाथ शास्त्री, धर्मेन्द्र पाण्डेय तथा बड़ी संख्या में विद्वान आचार्य एवं संतगण तथा संस्कृत के विद्वान एवं संम्रान्तजन उपस्थित रहे।