आरक्षण मे मेरिट और चयन का मानक योग्यता हो तो माननीय न्यायालय अनारक्षित के हितों का भी संरक्षण हो ?
इसी माह 18 दिसंबर को उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने आरक्षण के फायदे को लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया । यह सर्वोच्च न्यायालय का जातिगत आरक्षण पर अहम फैसला है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोटा नीति का अर्थ योग्यता को नकारना नहीं है इसका उद्देश्य मेधावी उम्मीदवारों को शासकीय सेवा के अवसरों से वंचित रखना नहीं है। भले वह आरक्षित श्रेणी से संबंध रखता हो ।न्यायालय ने कहा कि सीटों को भरने के लिए योग्यता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और मेधावी छात्रों को इसमें प्राथमिकता मिलनी चाहिए चाहे उनकी जात कुछ भी क्यों ना हो। इसके साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि ओपन कैटेगरी के पदों के लिए प्रतियोगिता योग्यता के अनुसार मेरिट के आधार पर होना चाहिए। आरक्षण सार्वजनिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का तरीका है इसे कठोर नहीं होना चाहिए। न्यायमूर्ति यूयू ललित के पीठ के न्यायमूर्ति भट्ट ने यह कहा कि ऐसा करने का नतीजा सांप्रदायिक आरक्षण होगा जहां पर समाज का हर वर्ग अपने आरक्षण के दायरे के भीतर ही रह जाएगा। ऐसा करने से योग्यता की उपेक्षा होगी इसलिए ओपन कैटेगरी सबके लिए खुली होनी चाहिए ।सिर्फ योग्यता वह शर्त हो सकती है जिसके आधार पर उसे इसमें शामिल किया जा सकता है भले ही किसी भी तरह का आरक्षण का लाभ उसके लिए उस वक्त उपलब्ध हो । उल्लेखनीय है कि देश में कई उच्च न्यायालय ने इस बात को स्वीकार किया है कि आरक्षित वर्ग से संबंधित कोई उम्मीदवार अगर योग्य है तो सामान्य वर्ग में भी आवेदन कर सकता है चाहे वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का या अन्य पिछड़ा वर्ग का क्यों न हो ।