यथार्थ के धरातल पर उतरा मोदीजी का सपना – राजेन्द्र शुक्ल

10 जुलाई 2020.

सपने देखना और उसे साकार करते हुए यथार्थ के धरातल पर उतारना विश्व में इसे यदि किसी ने संभव करके दिखाया है तो वह हैं हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी। ‘मोदी हैं तो मुमकिन है’ यह सूत्र वाक्य यहीं से निकला है। 10 जुलाई को श्री मोदी ‘रीवा अल्ट्रामेगा सोलर लिमटेड’ को जब देश को समर्पित करेंगे तब वह क्षण विश्व के ऊर्जा जगत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो जाएगा। यह उस दिशा में उठा हुआ कदम है जिसका संकल्प प्रधानमंत्री जी ने पेरिस में संपन्न कांफ्रेंस आफ पार्टीज की 21वीं बैठक में विश्व समुदाय के समक्ष लिया था। मूल संकल्प यह था कि वैश्विक पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत वर्ष 2022 तक 1 लाख मेगावाट की सौर परियोजनाओं को स्थापित करेगा। गुढ़ क्षेत्र की बंजर पहाडियों में स्थापित सोलर पार्क 750 मेगावाट का है और इसे विश्व की सबसे बड़ी परियोजनाओं में एक माना गया है।
रीवा अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट इस मायने में भी महत्वपूर्ण माना गया क्योंकि प्रति यूनिट बिजली की क्रय दर 2.97 रुपये है जो कि विश्व में न्यूनतम है। इस परियोजना ने स्पर्धात्मक बेंचमार्क स्थापित किए हैं। मुझे यह उल्लेख करने में गौरव महसूस होता है कि 7 अप्रैल 2017 को जब उत्पादन कंपनियों से मध्यप्रदेश सरकार का अनुबंध हुआ तब इसकी चर्चा न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट समेत विश्व के तमाम समाचार पत्रों में इसकी चर्चा हुई। बिजनेस अखबारों ने अपनी सुर्खियां बनाई। और तो और पाकिस्तान की पार्लियामेंट में यह बहस का विषय रहा कि जब भारत में ऐसा हो सकता है तो यहां क्यों नहीं.. क्या पाकिस्तान में सूरज कम रोशनी देता है।
मुझे यह बताने में खुशी हो रही है कि..रीवा अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट माँडल को प्रधानमंत्री नवाचार पुस्तिका में शामिल किया गया है। साथ ही इस परियोजना के माडल को नवाचार एवं उत्कृष्टता के लिए वर्ल्ड बैंक प्रेसीडेंट एवार्ड दिया गया है। इस परियोजना ने रिकॉर्ड समय पर उत्पादन प्रारंभ किया अनुबंध से चौदह महीनों के भीतर बिजली का उत्पादन शुरू हो गया.. और इसी वर्ष की 3 जनवरी से पूरी क्षमता यानी कि 750 मेगावाट का उत्पादन होने लागा। 22 दिसंबर 2017 को जब हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय उर्जा राज्यमंत्री श्री आर.के. सिंह ने जब इसका शिलान्यास किया था तभी यह आकांक्षा व्यक्त की थी कि इस परियोजना का काम रिकॉर्ड समय पर पूरा होना चाहिए। बेहतरीन टीमवर्क और दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते यह आकांक्षा भी पूरी हुई। आज विश्व की सबसे सस्ती दर पर यहां से उत्पादित बिजली का 76 प्रतिशत हिस्सा अपने प्रदेश को मिल रहा है वहीं शेष हिस्से की बिजली से दिल्ली की मैट्रो ट्रेने दौड़ रही हैं।
सही अर्थों में इस परियोजना के प्रेरक श्री नरेंद्र मोदीजी ही थे। गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल में सोलर एनर्जी के क्षेत्र में उन्होंने ही पहला कदम रखा था। मुझे मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री के रूप में ऊर्जा विभाग का काम सँभालने का सुअवसर मिला। तभी से गुजरात की तरह मध्यप्रदेश में नवीन व नवकरणीय उर्जा के क्षेत्र में नवाचार का विचार आया। हमारे विंध्य क्षेत्र के लोकप्रिय नेता थे यमुना प्रसाद शास्त्री, उन्होंने 1977 में लोकसभा में गुढ बदवार की इन बंजर पहाडियों पर सवाल खड़ा किया था। मालूम होना चाहिए कि यह 16 सौ हैक्टेयर का बंजर पहाड़ी क्षेत्र सेना का फायरिंग रेंज था। मुश्किल यह थी कि फायरिंग रेंज के चारों ओर गाँवों की आबादी थी। आए दिन दुर्घटनाएं होती थी। रीवा से सीधी- सिंगरौली का मार्ग प्रायः बाधित रहता था। शास्त्रीजी ने इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए लोकसभा में सरकार से सवाल पूछा था कि क्या इस बजंर पहाड़ी में तोप-गोलों की फायरिंग के अलावा कल कारखाने नहीं लगाए जा सकते..?
एक अर्सा बीत गया, लेकिन जब प्रधानमंत्री श्रीमोदी ने सौर ऊर्जा के लोकव्यापी करण का आह्वान किया तब इस विशाल बंजर परिक्षेत्र का ध्यान आया। मैंने अपने विचार मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी के समक्ष रखे। उन्होंने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। उन दिनों ऊर्जा की परियोजनाओं की स्थापना मँहगा सौदा माना जाता था। दर लगभग 14 रुपए प्रति यूनिट के आसपास थी। निजी क्षेत्र की कंपनियों को इसके लिए तैय्यार करना और 4500 करोड़ का निवेश आसान नहीं था। मध्यप्रदेश के ऊर्जा विभाग के कर्मठ अधिकारियों ने इस परियोजना को एक मिशन और सबक के तौर पर लिया। उनकी टीम ने दुनिया भर की सौर परियोजनाओं के माडल का अध्ययन किया। और सस्ती से सस्ती बिजली उत्पादित हो इस क्षेत्र में हर संभावनाएं तलाशीं। ऊर्जा मंत्री के तौर पर मैं भी कई ऐसी कार्यशालाओं और सेमिनार में भाग लिया। नवकरणीय ऊर्जा के एक सेमिनार के सिलसिले में जर्मनी जाने का मौका मिला। मैंने वहां की सौर परियोजनाओं के बारे में बारीक से बारीक जानकारियां लीं। कुल मिलकर एक साझा प्रयास इस क्षेत्र में हुआ..। 2014 के बाद जब केंद्र में श्री मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार बनी तब इस परियोजना में उम्मीदों के पंख लगे।
इसके बाद मध्यप्रदेश शासन की संस्था मध्यप्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमटेड एवं भारत सरकार की संस्था सोलर एनर्जी कारपोरेशन आफ इंडिया की ज्वाइंट वेंचर कंपनी ‘रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमटेड का गठन किया गया। तय यह हुआ कि एक मुश्त 750 मेगावाट की यूनिट की जगह 250 मेगावाट की तीन यूनिट स्थापित हो। इसके बाद निविदा का काम शुरू हुआ। निविदा में 6 अंतराष्ट्रीय व 14 राष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया। विडिंग की 33घंटे अनवरत चली प्रक्रिया के पश्चात न्यूनतम क्रय दर 2.97 रूपये प्रति यूनिट प्राप्त हुई। महिन्द्रा, एकमे और एरिन्सन कंपनियों की निविदाएं स्वीकृत हुईं।
जब देश में भारत सरकार के अनुदान और वायबिलिटी गैप फंडिंग जैसी योजनाओं के अंतर्गत 4.50रूपये यूनिट की दर पर बिजली क्रय करने वाली सोलर परियोजनाओं की स्थापना की जा रही थी, उसी समय रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट माडल में न्यूनतम 2.97 रू. प्रतियूनिट क्रय दर प्राप्त की गई। उल्लेखनीय यह कि इस प्रोजेक्ट की बिजली की टैरिफ कोयले व अन्य स्त्रोतों से बनने वाली बिजली के टैरिफ से कम है।
मुझे यह भी बताने में गर्वानुभूति हो रही है कि जहां देश में अल्ट्रामेगा सौर परियोजनाओं का विकास एनटीपीसी, सोलर एनर्जी कार्पोरेशन, पावर फायनेंस कार्पोरेशन आदि के द्वारा किया जा रहा है, वहीं रीवा अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट एक मात्र ऐसी परियोजना है जिसके क्रियान्वयन का संपूर्ण कार्य राज्य की संस्था द्वारा किया जा रहा है। आज रीवा का यह सोलर प्रोजेक्ट देश ही नहीं विश्व के लिए अनुकरणीय प्रकल्प बना हुआ है। इस उपलब्धि में विंध्य का जनजन भागीदार है..जिसकी शुभेक्षा से हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का सपना साकार हुआ है। हम अपने प्रग्यापुरूष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी स्मरण करते हैं जिन्होंने अपने अर्थायाम में ऊर्जा के ऐसे ही विकल्पों की परिकल्पना की थी। उनके विचारों का ऐसा प्रकल्प जिसमें प्रकृति का नुकसान किए बगैर हमें वह सब प्राप्त हो जिसकी जरूरत है।

लेखक- मध्यप्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री रहे हैं व वर्तमान में विधायक हैं।

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