कृषि को ध्यान में रखकर तैयार करें संभाग में विकास की कार्ययोजना – कमिश्नर डॉ. भार्गव
संभाग के विकासखण्डों में संभव्यतायुक्त विकास कार्ययोजना तैयार करने हेतु कार्यशाला का शुभारंभ
रीवा 24 जुलाई 2019. संभाग के विकासखण्डों में संभव्यतायुक्त विकास कार्ययोजना तैयार कर क्रियान्वयन करने के लिए कमिश्नर रीवा संभाग डॉ. अशोक कुमार भार्गव की अध्यक्षता में संभाग स्तरीय दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ जिला पंचायत सभाकक्ष में हुआ। कमिश्नर डॉ. भार्गव ने कहा कि संभाग में भौगोलिक परिस्थितियों, तौर-तरीकों एवं संसाधनों को ध्यान में रखते हुए विकास की कार्ययोजना बनायी जाना जरूरी है। हमारी अर्थव्यवस्था प्रारंभ से ही कृषि प्रधान रही है। इसलिए कृषि को ध्यान में रखकर विकास की कार्ययोजना बनाई जाना बेहतर होगी।
किसान हम सबके लिए अन्न उपलब्ध कराता है। किसानों की मेहनत एवं त्याग पर ही हमारी सुख-सुविधाएं निर्भर करती हैं। इसलिए खेती को लाभ का धंधा बनाना जरूरी है। कृषि से जुड़ी चुनौतियों को दूर करना हम सबकी जिम्मेदारी है। सभी विभागों के योगदान से ही विकास की कार्ययोजना सफल होगी। उन्होंने कहा कि आपस में समन्वय बनाकर विभिन्न नवाचारों के माध्यम से किसानों को समृद्ध एवं खुशहाल बनाया जा सकता है।
कमिश्नर डॉ. भार्गव ने फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सभी जिलों के उप संचालक कृषि को निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि कार्यशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा दी गई जानकारी को कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कार्ययोजना में समावेश करें। उन्होने कहा कि फसलों में कीटनाशक दवाईयां डालने के बाद भी यदि असर नहीं हो रहा है तो उसका विकल्प खोजा जाये। क्षेत्र में जाकर किसानों को जागरूक करें। अच्छे किसानों को क्षेत्र में ले जाकर उनके माध्यम से भी किसानों को जागरूक करें।
कमिश्नर डॉ. भार्गव ने कहा कि किसानों का बाजार से लिंकेज बेहतर हो जिससे उन्हें अपनी उपज, फल-सब्जियां विक्रय के लिए परेशानी न हो। उन्होंने उद्यानिकी फसलों को बढ़ावा देने के निर्देश दिए। उन्होंने खेती की विभिन्न नवीन तकनीकों का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार कराने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि विभिन्न तकनीकों को धरातल पर उतारने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐरा प्रथा के खिलाफ जनआंदोलन बनाकर कार्य करने की जरूरत है। रीवा संभाग में कम खाद, कम बीज एवं कम समय में अच्छी फसलें ले सकें इसके लिए किसानों को चौपाल लगाकर जानकारी दी जाय। उन्होंने धारवाड़ पद्यति से खेती करने के संबंध में समझाइश दी। उन्होंने निर्देश दिए कि किसानों की मासिक कार्यशालाएं प्रारंभ कराएं।
कृषि वैज्ञानिकों ने अपने सुझाव देते हुए कहा कि कृषि एवं पशुपालन देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। निरंतर दिनों-दिन कृषि की लागत बढ़ती जा रही है। इस लागत को कम करने की जरूरत है। कृषि को पशुपालन से जोड़कर हम खेती की लागत कम कर सकते हैं। कृषि महाविद्यालय रीवा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एस.के. त्रिपाठी ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों की बजाय जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए। इसमें उपलब्ध सूक्ष्म जीव भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि ब्लूग्रीन एल्गी कल्चर को से धान में खेतों में उपयोग करने से फसल को बहुत लाभ होता है। साथ ही नत्रजन की भी बचत होती है। फसलों को कीड़ों एवं बीमारियों से बचाने के लिए सूक्ष्म जीवों की कल्चर का इस्तेमाल करें तो बेहतर होगा। कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश सिंह ने उद्यानिकी फसलों के विस्तार के संबंध में विभिन्न नई तकनीकों की जानकारी दी। कार्यशाला बीजोपचार, ग्रीन मेन्योर का उपयोग करने की भी सलाह दी गई। इस अवसर पर कार्यशाला में संयुक्त संचालक कृषि एससी सिंधारिया, मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग आरजी गुजरे सहित संभाग के समस्त वनमंडलाधिकारी, उपायुक्त सहकारिता, उप संचालक पशु चिकित्सा सेवायें आदि उपस्थित थे।