आओ खेलें खेल भारत बंद बंद
भारत जितना खुला नहीं उससे ज्यादा तो बंद रह गया रहा होगा कभी सोने की चिड़िया अब तो सोती हुई चिड़िया बन गया है ।सैकड़ों वर्षों की गुलामी, राजतंत्र की रंगदारी फिर स्वतंत्रता के बाद की बेगारी, गुलामी के दौर में स्वतंत्रता बंधी थी और स्वतंत्रता के दौर में देश। लगता है कि लोकतंत्र का असली मकसद देश को बंद करवाना ही है। हमारे रहनुमाओं ने देश बंदी के साथ-साथ हमें अपने स्वार्थ अनुसार समूहों में बांटकर बंदी बना लिया है। बंद राष्ट्रीय पर्व की तरह हो गया है जिसे मनाना सभी राजनैतिक दल अपना धर्म समझते हैं और उनके पदचिन्हों में चलते हुए छोटे-छोटे हित साधन में जुटे समूह भी बंद को जश्न की तरह मनाने लगे हैं।राजनीतिक पार्टियां कुछ न कुछ ऐसा अवसर जरूर उपलब्ध कराती हैं जिससे बंद पर्व का आयोजन हो सके ।1989 में सत्ता का सुख ले रहे राजनीतिक दल ने एक कानून बनाया था अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून जिसके तहत व्यवस्था बनाई गई कि यदि इस समुदाय का कोई व्यक्ति अगर अन्य समुदाय पर अत्याचार करने का आरोप लगाता है तो उसकी तुरंत गिरफ्तारी की जाए और जेल भेजा जाए इसके बाद जांच होगी और अपराध के अनुसार सजा या रिहाई। न्याय के मूलभूत सिद्धांत की हत्या करते हुए कानून बनाया गया न्याय का पहला नैसर्गिक सिद्धांत है कि जिसके ऊपर आरोप लगाया जाए उससे उसके पक्ष को भी सुन लिया जाए फिर निर्णय लिया जाए ।1989 से 20 मार्च 2018 तक यह कानून अपने इसी रूप में चलता रहा जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था नहीं दी कि जिस पर आरोप हो उसको अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए तुरंत गिरफ्तारी ना हो और अगर वह सरकारी कर्मचारी है तो उसके नियोक्ता अधिकारी को सूचित कर उसकी सहमति प्राप्त कर गिरफ्तारी की जाए अगर लगाए गए आरोप सही प्रतीत होते हैं। जांच का भी प्रावधान किया गया कि डीएसपी स्तर का अधिकारी प्रकरण की विवेचना कर निर्णय ले कि आरोप सही है कि नहीं, इसके अनुसार लिखी गई रिपोर्ट अनुसार आरोपी की गिरफ्तारी हो ।देखने समझने में यह निर्णय न्यायसंगत लगता है लेकिन इस निर्णय के आते ही पूर्व सत्ताधारी दल जिसने इस कानून को लागू कराया था उसने सुप्रीम कोर्ट और वर्तमान सत्ताधारी दल के पर मिलीभगत का आरोप लगाते हुए अपने अन्य सहयोगियों के साथ भारत बंद का कार्यक्रम रच दिया भारत बंद हुआ ऐतिहासिक बंद हुआ खूब तोड़फोड़ हुई कुछ अपनी जान से भी हाथ गवा बैठे। वर्तमान सत्ताधारी दल ने देखा कि इससे हमारे वोट बैंक में कमी आएगी उसनें तुरंत अध्यादेश लाकर सर्वसम्मति से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलते हुए और कड़े नियमों के साथ पुराने कानून को लागू कर दिया ।अब भारत बंद की जिम्मेदारी उस वर्ग के ऊपर आ गई जो इस कानून के कारण जेल जाएगा उसने भी ऐतिहासिक भारत बंद का सफल कार्यक्रम संपादित कर लिया ।इस बंद के बाद अब महंगाई का भारत बंद होगा शायद भारत बंद से महंगाई कम हो जाए फिर भ्रष्टाचार को लेकर होगा ,व्यवस्था को लेकर होगा, सड़क बिजली पानी के लिए होगा, पानी बरसेगा तो इसलिए होगा कि ज्यादा पानी क्यों बरसा, नहीं बरसा तो इसलिए होगा कि क्यों नहीं बरसा। भारत बंद पर्व का हमें बहाना चाहिए लेकिन इस पर्व से कभी समस्या दूर हुई हो ऐसा कभी नहीं हुआ न तो भारत बंद से भ्रष्टाचार कम हुआ और न हीं बेरोजगारी दूर हुई ।जो कुछ अच्छा हो सकता था उसके दरवाजे भारत के लिए जरूर बंद हो गए कहते हैं कि जापान में जब सरकार का विरोध होता है तो वह ज्यादा काम करके उत्पादन ज्यादा बढ़ा लेते हैं और भारत में काम बंद ।स्वतंत्रता के बाद देश बंद का खेल खेल रहा है प्रतिभा पलायन कर रही है और हम दरवाजे बंद करने में मस्त हैं। गुलामी मे उम्मीद नहीं थी और स्वतंत्रता के बाद हम इतने कुंद हो गए कि हमने आधुनिक समाज के उपयोग में आने वाला कोई भी एक उपकरण नहीं बनाया जो कुछ भी कर पाए हैं वह है भारत बंद।
अब बैंक अपने विलयिनीकरण का विरोध कर रहे हैं तो बैंक बंद।
आगे देखते रहिए न जाने कौन कौन से बंद होंगे।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
27-12-2018
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