मानव अधिकार को नारा नहीं, संस्कार स्वरूप आत्मसात करें : राज्यपाल
अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर कार्यशाला सम्पन्न
सोमवार, दिसम्बर 10, 2018
राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा है कि मनुष्य के रूप में जन्म लेते ही हम सभी सार्वभौमिक मानव अधिकारों के स्वतः अधिकारी हो जाते हैं। यह एक ऐसा अधिकार है, जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सम्मानजनक तरीके से सभी को मिलना चाहिये। श्रीमती पटेल अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर भौंरी स्थित मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा ‘सायबर सुरक्षा एवं मानव अधिकार” पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में निष्पक्ष न्यायपालिका, सक्रिय मीडिया और जागरूक समाज है। फिर भी मानव अधिकार आयोग की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि कई बार व्यक्ति समझाने और मनाने से भी नहीं मानता और जीवन की छोटी-छोटी बातें विवाद बन जाती हैं। तब मानव अधिकार आयोग उनका सख्ती और समझाइश से रास्ता निकालता है। राज्यपाल ने कहा कि सम्पूर्ण समाज का यह नैतिक दायित्व है कि मानव अधिकार सिर्फ एक नारा न रहे। इसे संस्कार स्वरूप आत्मसात करें।
श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि मानव अधिकार देश की संस्कृति का हिस्सा है। हम अपनी संस्कृति और परम्पराओं से जुड़े रहेंगे, तो मानव अधिकारों की रक्षा अपने आप होगी। उन्होंने प्रशिक्षु पुलिस अधिकारियों से कहा कि आपको 18-18 घंटे काम करना है। इसलिए स्वस्थ और चिंतामुक्त होकर काम करें। कभी भी दबाव में आकर गलत काम नहीं करें। श्रीमती पटेल ने कहा कि आज मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्स एप्प आदि जितने तकनीकी साधन बढ़े हैं, उतने ही अपराध भी बढ़ रहे हैं। इन अपराधों को रोकना, लोगों को समझाना और जागरूक करना आपकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यह सब करते हुए कभी भी भले और ईमानदार व्यक्ति के साथ अन्याय न हो, इसका ध्यान भी आपको रखना है।
मध्यप्रदेश एवं सिक्किम राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री नरेन्द्र कुमार जैन ने आयोग की जरूरतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ”हम सब बराबर, बराबर हमारे अधिकार” अर्थात मानव अधिकार की अवधारणा वैदिक काल से ही रही है। पहले इन्हें प्राकृतिक अधिकार कहा जाता था। उन्होंने बताया कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 25 जून 1945 को इस दिशा में काम शुरू हुआ और 10 दिसम्बर 1948 में इसका लिखित दस्तावेज तैयार हुआ। भारत सहित लगभग 117 देशों ने जिसके क्रियान्वयन के लिए सहमति दी। इसी वजह से प्रति वर्ष 10 दिसम्बर को अर्न्तराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। भारत में वर्ष 1986 में मानव अधिकार आयोग बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई और 12 अक्टूबर, 1993 को भारतीय संसद ने इसे पारित किया। मध्यप्रदेश में 13 दिसम्बर, 1995 को मध्यप्रदेश राज्य मानव अधिकार आयोग की स्थापना हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता, समानता और सम्मान के साथ जीने का हक प्रत्येक व्यक्ति को मिलने के बावजूद महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के हनन पर मानव अधिकार आयोग संज्ञान लेता है और उन्हें न्याय दिलाने का काम करता है। कार्यशाला में श्री सरबजीत सिंह ने कहा कि मौलिक अधिकार ही मानव अधिकार हैं। यह एक विस्तृत विषय है। मानव अधिकारों की रक्षा हम सबका दायित्व है।
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष द्वारा राज्यपाल को स्मृति-चिन्ह भेंट किया गया। प्रथम सत्र में आयोग के सदस्य श्री मनोहर ममतानी ने विधि का शासन और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के ध्येय वाक्य पर प्रकाश डाला। दूसरे सत्र में एनएलआईयू भोपाल के राजीव गांधी सायबर लॉ सेन्टर के विभागाध्यक्ष डॉ. अतुल पांडेय एवं मध्यप्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी, जबलपुर के विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी श्री यशपाल सिंह ने विषय-विशेषज्ञ के रूप में प्रशिक्षणार्थियों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम एवं अन्य अधिनियमों की जानकारी देकर सायबर सुरक्षा की तकनीकी बारीकियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों के प्रश्नों और जिज्ञासाओं का समाधान भी किया।
कार्यशाला में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुश्री सुषमा सिंह, रजिस्ट्रार लॉ श्री जे.पी. राव, उप सचिव श्री एस.एस. चौहान, पुलिस अधीक्षक श्री सीताराम ससत्या सहित पुलिस अकादमी के सभी अधिकारी मौजूद थे।