हमारी भावनाओं के केंद्र मे है व्हाइट टाइगर – राजेन्द्र शुक्ल

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विश्व की प्रथम व्हाइट टाइगर सफारी पर विशेष

हमारी भावनाओं के केन्द्र में है व्हाइट टाइगर
राजेन्द्र शुक्ल

व्हाइट टाइगर मुझे बचपन से ही रोमांचित करता रहा है। स्कूल के दिनों में हम मित्रों के बीच में इसकी ही चर्चा सबसे ज्यादा होती थी। कारण यह था कि जब स्कूल से पढ़कर निकलतें – तो रीवा के सिरमौर चौराहे पर प्राय: प्रतिदिन अंग्रेज पर्यटकों की खूबसूरत बसें खड़ी रहा करती थीं। ये विदेशी पर्यटक बनारस या खजुराहो की ओर से आते तो रीवा में रूकते यहीं से गोविन्दगढ़ जाते। गोविन्दगढ़ के किले में पल रहे सफेद बाघों में ऐसी क्या खासियत थी कि पूरी दुनिया के लोग वहाँ खिंचे चले आते। यह साठ-सत्तर के दशक की बात है। अंग्रेज पर्यटकों का रोज-रोज व्हाइट टाइगर देखने गोविन्दगढ़ जाना मेरे व मेरे सहपाठी मित्रों केलिए कौतूहल का विषय रहता।
रीवा में उन दिनों रेल नहीं आई थी। यातयात के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-7 व 27 थे। ये सड़कें जबलपुर-बनारस, जबलपुर-इलाहाबाद के जरिए रीवा को शेष भारत से जोड़ती थी। खजुराहो में हवाई उड़ान नियमित नहीं थी। सो उत्तर से दक्षिण जाने वाले पर्यटकों के लिए रीवा अपरिहार्य स्थल था। विदेशी पर्यटकों की इतनी आवाजाही मैंने अब कभी नहीं देखी। हम स्कूली बच्चों के लिए रेल भी कौतूहल का विषय रहती पर यदि यह तय किया जाता कि रेल या सफेद शेर में पहले क्या देखना है तो निश्चित ही हम 90 फीसदी बच्चों का हाथ व्हाइट टाइगर के ही पक्ष में उठता। मैंने कई बार स्कूली साथियों के साथ ट्रिप में व परिजनों के साथ गोविन्दगढ़ जाकर महल के बाड़े में दहाड़ते सफेद बाघों को देखा है। व्हाइट टाइगर के देखने का वहीं रोमांच आज भी है। दहाड़ते गरजते सफेद बाघ – बस कुछ ही फिट दूर से। उन दिनों गोविन्दगढ़ कस्बे की रौनक की वजह भी सफेद बाघ ही थे। इसी बहाने वहाँ के व्यापारियों के धंधे भी फलते-फूलते थे। यानी कि सफेद बाघ जाने-अनजाने कई परिवारों को भी पाल रहे थे।
पहले और जगप्रसिद्ध सफेद बाघ मोहन की जब 18 दिसंबर 1969 में मौत हुयी तब मैं बहुत छोटा था, पर स्कूल जाने लगा था। उसकी मौत के दिन स्कूल में छुट्टी हो गई थी बाजार बन्द थे। शोक सभाएँ हुईं थी। मोहन-मोहन और सफेद बाघ यह कानों में गूँजा करता था। छठवीं की अंग्रेजी की किताब में भी रीवा के सफेद बाघ का जिक्र था, जिसमें बताया गया था कि इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल जू में जो सफेद बाघ है वह रीवा से ही गया है और पहले सफेद बाघ मोहन की संतान है। रीवा के महराज मार्तण्ड सिंह के प्रति हमारे परिवार का अटूट सम्मान था। विशेषतया मेरे पिताजी का। जब मैं यह जानने लायक हुआ कि गोविन्दगढ़ के सफेद बाघ मोहन को महाराज साहब ने पकड़वाया है तो उनके प्रति मेरी श्रद्धा और सम्मान बहुत बढ़ गया। क्योंकि सफेद बाघ रीवा का गौरव बन चुका था व विश्वभर में रीवा को इसीलिए जाना जाता है। सफेद बाघ व महाराज साहब दोनों ही रीवा के ऐसे गौरव हैं जिनका सम्मान विश्वभर के वन्य जीव प्रेमियों के बीच आज भी वैसा ही है। बचपन में कई किस्से व कहानियाँ सफेद बाघ और महाराज मार्तण्ड सिंह को लेकर सुनने को मिलीं। मसलन किसी ने बताया कि मोहन हफ्ते में एक दिन शाकाहारी रहता था। गोविन्दगढ़ में यह बात भी सुनने को मिली कि खजुलईंय्या (कजालियां) के दिन महिलाएँ कजरी गीत गाते हुए मोहन के बाड़े के समीप से गुजरतीं तो वह भाव-विभोर हो जाता। महिलाएँ भाई, चाचा, मामा का रिश्ता जोड़कर उसे खजुलइयाँ (जौ के नवांकुरित पौधे) देती व लम्बी उम्र की कामना करती। एक महाशय ने बताया‍ कि मोहन एकादशी का ब्रत रखता था और महाराजा साहब का दर्शन करके ही तोड़ता है।
मोहन महज सफेद बाघ ही नहीं रहा अपितु वह लोक जीवन का नायक बन गया। उससे जुड़ी किवंदतियाँ व किस्से सच्चे हों या झूठे लेकिन उससे विन्ध्यवासियों का लगाव सच्चा और पवित्र था। उसे बाघ जैसे हिंसक जीव के भाव से कभी नहीं देखा गया। मोहन की मौत के सात साल बाद यानी कि 1976 तक गोविन्दगढ़ महल के बाड़े में सफेद बाघ रहे। तब तक पर्यटकों का यह केन्द्र बना रहा। विश्व भर के वैज्ञानिक बाघ के सफेद होने का रहस्य जानने आते रहे। गोविन्दगढ़ से आखिरी सफेद बाघ विराट की मौत के बाद सब कुछ वीरांन हो गया। विश्व के पर्यटन नक्शे में ढाई दशक तक छाए गोविन्दगढ़ की रौनक छिन गई गलियाँ सुनसान हो गईं। रीवा के शहर के चौराहों पर अक्सर घूमने वाली विदेशी पर्यटकों की तालियाँ भी गुम होती गईं।
समय के साथ मेरी भी समझ बढ़ती रही राजनीति से स्वाभाविक रूचि रहीं लिहाजा छात्र राजनीति में आ गया व एक दिन रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज छात्रसंघ का अध्यक्ष भी बना। सन् 1980 के बाद जितने भी चुनाव हुए चाहे लोकसभा के हों या विधानसभा के सफेद बाघ चुनावी मुद्दा बनता रहा। जनप्रतिनिधियों को यह मालूम था कि सफेद बाघ रीवा के गौरव के साथ जुड़ा है वे यहाँ की जनता का इसके साथ भावनात्मक लगाव है। निश्चय ही हमारे जन-प्रतिनिधि इस दिशा में कोशिश करते रहे होंगे। चुनाव की राजनीति में मैं 1998 में आया। रीवा विधानसभा से-पहली बार चुना गया 2003 में। मैं सौभाग्यशाली था कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने मुझ पर विश्वास किया और आगे बढ़ने, कुछ करने का मौका दिया। माननीय सुश्री उमाश्री भारती और श्री बाबूलाल गौर की मंत्रिपरिषद में मुझे राज्य मंत्री बनकर काम करने का सौभाग्य मिला। इस बीच जब रीवा के विकास के बारे में सोचता या कोई रूपरेखा बनाता तो कल्पनाओं में सामने सफेद बाघ का चित्र दिखने लगता। हमेशा ऐसा लगता कि सफेद बाघ के बिना अपना विन्ध्य अधूरा-अधूरा सा है। कहते हैं कि मन की चाह पूरा करने के लिए ईश्वर एक अवसर अवश्य देता है। 2009 में जब माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी के नेतृत्व में सरकार बनी तो मुझे पुन: मंत्रीपरिषद के सदस्य बनने का गौरव मिला। खास बात यह कि मुझे कई अन्य विभागों के साथ वन व जैव विविधिता विभाग का भी दायित्व मिल गया। मुझे अन्तरात्मा से ऐसा लगा मानो ईश्वर ने काम आगे बढ़ाने के लिए ही यह अवसर दिया। वर्षों से मैंने जो कल्पना कर रखी थी सफेद बाघ की वापसी को लेकर उसे साकार करने की चुनौती सामने थी। मैंने वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों व विशेषज्ञों के साथ कई बैठकें की व सफेद बाघ की विन्ध्यवापसी की योजना पर काम करने को कहा।
प्रदेश के कर्मठ अधिकारियों ने उत्साहपूर्वक कार्य योजना तैयार की। मैंने मुख्यमंत्री श्री चौहान जी को भी अपनी योजना से अवगत करवाया, उन्होंने आगे बढ़ने को कहा अब क्या था-बस एक ही मिशन-सफेद बाघ को कैसे वापस लाया जाए? रीवा से 12 किमी दूर सतना जिले के मुकुन्दपुर के मांद के जंगल में सफेद बाघ को पुन: बसाने का विचार कौंधा। इस तरह मुकुन्दपुर में सफेद बाघ सफारी सह वन्यप्राणी उपचार केन्द्र की कार्य योजना बनी। प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी ने 31 मार्च 2009 को इसका प्रस्ताव केन्द्र के सेन्ट्रल जू अथारिटी के पास भेजा। स्वीकृतियों के प्राप्त होने का सिलसिला चल निकला। सीजेडए के अधिकारियों की हर शंकाओं का समाधान किया गया। इनके द्वारा निर्धारित मापदण्डों को पूरा करने की वचन बद्धता दी गई और 3 फरवरी 2012 को वह सौभाग्यशाली दिन भी आया जब तत्कालीन वन मंत्री श्री सरताज सिंह ने मुकुन्दपुर व्हाइट टाइगर सफारी जू एन्ड रेस्क्यू सेंटर की शिलान्यास किया। प्रकारान्तर में मुझे सरकार में अन्य विभागों का दायित्व दिया गया, लेकिन जो भी वन मंत्री रहें चाहे श्री सरताज सिंह जी हो या वर्तमान के डॉ. गौरीशंकर शेजवार जी सभी ने मेरी भावनाओं और उससे बढ़कर विन्ध्यवासियों की भावनाओं का आत्मीय सम्मान किया। उसी का प्रतिफल है कि 9 नवम्बर 2015 की वह ऐतिहासिक तारीख भी आई जब सफेद बाघिन विन्ध्या मुकुन्दपुर व्हाइट टाइगर सफारी की मेहमान बनी। इसके साथ ही 40 वर्ष की प्रतीक्षा पुरी हुई। अब 3 अप्रैल 2016 की तारीख वन्य जीव इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगी जब मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्र के इस्पात एवं खान मंत्री श्री नरेन्द्र तोमर, वन-पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर जी व प्रदेश के अन्य सम्मानीय जन-प्रतिनिधिगण व्हाइट टाइगर सफारी विन्ध्यवासियों को लोकार्पित करेंगे। इसके साथ ही विन्ध्य का गौरव पुन: विश्व के वन्यजीवों के अध्याय में जीवंत हो उठेगा।

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