प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को नववर्ष की शुभकामनायें दी
मन की बात के 39वें संस्करण में आज प्रधानमंत्री ने साझा किए अपने विचार
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार, ‘मन की बात’ का, इस वर्ष का यह आख़िरी कार्यक्रम है और संयोग देखिए कि आज, वर्ष 2017 का भी आख़िरी दिन है। इस पूरे वर्ष बहुत सारी बाते हमने और आपने साझा की ‘मन की बात’ के लिए आपके ढ़ेर सारे पत्र, कॉमेट, विचारों का ये आदान-प्रदान, मेरे लिए तो हमेशा एक नई ऊर्जा लेकर के आता है। कुछ घंटों बाद, वर्ष बदल जाएगा लेकिन हमारी बातों का यह सिलसिला आगे भी इसी तरह जारी रहेगा। आने वाले वर्ष में हम, और नयी-नयी बातें करेंगे, नये अनुभव साझा करेंगे। आप सबको 2018 की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ। अभी पिछले दिनों 25 दिसम्बर को विश्वभर में क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। भारत में भी लोगों ने काफी उत्साह से इस त्योहार को मनाया। क्रिसमस के अवसर पर हम सब ईसा मसीह की महान शिक्षाओं को याद करते हैं और ईसा मसीह ने सबसे ज़्यादा जिस बात पर बल दिया था, वह था – “सेवा-भाव”। सेवा की भावना का सार हम बाइबल में भी देखते हैं।
The Son of Man has come, not to be served,
But to serve,And to give his life, as blessing
To all humankind.
यह दिखाता है कि सेवा का माहात्म्य क्या है। विश्व की कोई भी जाति होगी, धर्म होगा, परम्परा होगी, रंग होंगे लेकिन सेवाभाव, ये मानवीय मूल्यों की एक अनमोल पहचान के रूप में है। हमारे देश में ‘निष्काम कर्म’ की बात होती है, यानी ऐसी सेवा जिसमें कोई अपेक्षा न हो। हमारे यहाँ तो कहा गया है – “सेवा परमो धर्मः”। ‘जीव-सेवा ही शिव-सेवा’ और गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस तो कहते थे – शिव-भाव से जीव-सेवा करें यानी पूरे विश्व में ये सारे समान मानवीय मूल्य हैं। आइए, हम महापुरुषों का स्मरण करते हुए, पवित्र दिवसों की याद करते हुए, हमारी इस महान मूल्य परम्परा को, नयी चेतना दें, नयी ऊर्जा दें और ख़ुद भी उसे जीने का प्रयास करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, यह वर्ष गुरुगोविन्द सिंह जी का 350वाँ प्रकाश पर्व का भी वर्ष था। गुरुगोविन्द सिंह जी का साहस और त्याग से भरा असाधारण जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। गुरुगोविन्द सिंह जी ने महान जीवन मूल्यों का उपदेश दिया और उन्हीं मूल्यों के आधार पर उन्होंने अपना जीवन जिया भी। एक गुरु, कवि, दार्शनिक, महान योद्धा, गुरुगोविन्द सिंह जी ने इन सभी भूमिकाओं में लोगों को प्रेरित करने का काम किया। उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। लोगों को जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ने की शिक्षा दी। इन प्रयासों में उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ गँवाना भी पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी भी द्वेष की भावना को जगह नहीं दी। जीवन के हर-पल में प्रेम , त्याग और शांति का सन्देश – कितनी महान विशेषताओं से भरा हुआ उनका व्यक्तित्व था ! ये मेरे लिए सौभाग्य की बात रही कि मैं इस वर्ष की शुरुआत में गुरुगोविन्द सिंह जी 350वीं जयन्ती के अवसर पर पटनासाहिब में आयोजित प्रकाशोत्सव में शामिल हुआ। आइए, हम सब संकल्प लें और गुरुगोविन्द सिंह जी की महान शिक्षा और उनके प्रेरणादायी जीवन से, सीख लेते हुए जीवन को ढालने का प्रयास करें।
एक जनवरी, 2018 यानी कल, मेरी दृष्टि से कल का दिन एक खास दिवस है। आपको भी आश्चर्य होता होगा, नया वर्ष आता रहता है, एक जनवरी भी हर वर्ष आती है, लेकिन जब, स्पेशल की बात करता हूँ तो सचमुच में मैं कहता हूँ कि स्पेशल है, जो लोग वर्ष 2000 या उसके बाद जन्मे हैं यानी 21वीं सदी में जिन्होंने जन्म लिया है वे एक जनवरी, 2018 से योग्य वोटर्स बनना शुरू हो जाएँगे। भारतीय लोकतंत्र, 21वीं सदी के वोटर्स का, न्यू इंडिया वोटर्स का स्वागत करता है। मैं, हमारे इन युवाओं को बधाई देता हूँ और सभी से आग्रह करता हूँ कि आप स्वयं को वोटर्स के रूप में रजिस्टर करें। पूरा हिन्दुस्तान आपको 21वीं सदी के वोटर्स के रूप में स्वागत करने के लिए लालायित है। 21वीं सदी के वोटर्स के नाते आप भी गौरव अनुभव करते होंगे। आपका वोट ‘न्यू इंडिया’ का आधार बनेगा।
वोट की शक्ति, लोकतंत्र में सबसे बड़ी शक्ति है । लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए ‘वोट’ सबसे प्रभावी साधन है । आप केवल मत देने के अधिकारी नहीं बन रहे हैं । आप 21वीं सदी का भारत कैसा हो? 21वीं सदी के भारत के आपके सपने क्या हों? आप भी तो भारत की 21वीं सदी के निर्माता बन सकते हैं और इसकी शुरुआत एक जनवरी से विशेष रूप से हो रही है । और आज अपनी इस ‘मन की बात’ में, मैं 18 से 25 वर्ष के ऊर्जा और संकल्प से भरे हमारे यशस्वी युवाओं से बात करना चाहता हूँ । मैं इन्हें ‘न्यू इंडिया यूथ’ मानता हूँ । न्यू इंडिया यूथ का मतलब होता है – उमंग, उत्साह और ऊर्जा । मेरा विश्वास है कि हमारे इन ऊर्जावान युवाओं के कौशल और ताक़त से ही हमारा ‘न्यू इंडिया’ का सपना सच होगा । जब हम नए भारत की बात करते हैं तो, नया भारत जो ये जातिवाद, साम्प्रदायवाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार के ज़हर से मुक्त हो । गन्दगी और ग़रीबी से मुक्त हो । ‘न्यू इंडिया’ – जहाँ सभी के लिए समान अवसर हों, जहाँ सभी की आशा-आकांक्षाएँ पूरी हों । नया भारत, जहाँ शांति, एकता और सद्भावना ही हमारा गाइडिंग फ़ोर्स हो । मेरा यह ‘न्यू इंडिया यूथ’ आगे आए और मंथन करे कि कैसे बनेगा ‘न्यू इंडिया’ । वो अपने लिए भी एक मार्ग तय करे, जिनसे वो जुड़ा हुआ है उनको भी जोड़े और कारवाँ बढ़ता चले । आप भी आगे बढें , देश भी आगे बढ़े
अभी जब मैं आपसे बात कर रहा हूँ तो मुझे एक विचार आया कि क्या हम भारत के हर ज़िले में एक मॉक पार्लियामेंट आयोजित कर सकते हैं? जहाँ ये 18 से 25 वर्ष के युवा, मिल-बैठ करके ‘न्यू इंडिया’ पर मंथन करें, रास्ते खोजें, योजनाएँ बनाएँ? कैसे हम हमारे संकल्पों को 2022 से पहले सिद्ध करेंगें ? कैसे हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जिसका सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था ? महात्मा गाँधी ने आज़ादी के आंदोलन को जन-आन्दोलन बना दिया था । मेरे नौजवान साथियो, समय की माँग है कि हम भी 21वीं सदी के भव्य-दिव्य भारत के लिए एक जन-आन्दोलन खड़ा करें । विकास का जन-आन्दोलन। प्रगति का जन-आन्दोलन। सामर्थ्यवान-शक्तिशाली भारत का जन-आन्दोलन । मैं चाहता हूँ कि 15 अगस्त के आस-पास दिल्ली में एक मॉक पार्लियामेंट का आयोजन हो जहाँ प्रत्येक ज़िले से चुना गया एक युवा, इस विषय पर चर्चा करे कि कैसे अगले पाँच सालों में एक न्यू इंडिया का निर्माण किया जा सकता है ? संकल्प से सिद्धि कैसे प्राप्त की जा सकती है?
आज युवाओं के लिए ढ़ेर सारे नये अवसर पैदा हुए हैं । कौशल विकास से लेकर के नवाचार और उद्यमिता में हमारे युवा आगे आ रहे हैं और सफल हो रहे हैं । मैं चाहूँगा कि इन सारे अवसरों की योजनाओं की जानकारी इस ‘न्यू इंडिया यूथ’ को एक जगह कैसे मिले और इस बारे में कोई एक ऐसी व्यवस्था खड़ी की जाए ताकि 18 वर्ष का होते ही, उसे इस दुनिया के बारे में, इन सारी चीज़ों के बारे में सहज रूप से जानकारी प्राप्त हो और वह आवश्यक लाभ भी ले सके ।
मेरे प्यारे देशवासियो, पिछली ‘मन की बात’ में मैंने आपसे सकारात्मकता के महत्व के बारे में बात की थी । मुझे संस्कृत का एक श्लोक याद आ रहा है –
उत्साहो बलवानार्य, नास्त्युत्साहात्परं बलम् ।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम् ।।
इसका मतलब होता है, उत्साह से भरा एक व्यक्ति अत्यन्त बलशाली होता है क्योंकि उत्साह से बढ़ कर कुछ नहीं होता । सकारात्मकता और उत्साह से भरे व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं । अंग्रेज़ी में भी लोग कहते हैं – ‘Pessimism leads to weakness, optimism to power’ । मैंने पिछली ‘मन की बात’ में देशवासियों से अपील की थी कि वर्ष 2017 के अपने सकारात्मक पलों को साझा करें और 2018 का स्वागत एक सकारात्मक माहौल में करें । मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि भारी संख्या में लोगों ने सोशल मीडिया मंच, माय गोव और नरेंद्र मोदी एप्प पर बहुत ही सकारात्मक प्रतिकिया दिया, अपने अनुभव साझा किये। Positive India hashtag (#) के साथ लाखों ट्वीट्स किये गए जिसकी पहुँच करीब-करीब डेढ़-सौ करोड़ से भी अधिक लोगों तक पहुँची । एक तरह से सकारात्मकता का जो संचार, भारत से आरंभ हुआ वह विश्व भर में फ़ैला । जो ट्वीट्स और प्रतिक्रिया आये वे सचमुच में प्रेरणादायी थे । एक सुखद अनुभव था । कुछ देशवासियों ने इस वर्ष के उन घटनाक्रमों को साझा किया जिनका उनके मन पर विशेष प्रभाव पड़ा, सकारात्मक प्रभाव पड़ा। कुछ लोगों ने अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों को भी साझा किया ।
मेरा नाम मीनू भाटिया है । मैं मयूर विहार, पॉकेट-वन, फेज़ वन, दिल्ली में रहती हूँ । मेरी बेटी एम.बी.ए. करना चाहती थी । जिसके लिए मुझे बैंक से loan चाहिए था जो मुझे बड़ी आसानी से मिल गया और मेरी बेटी की पढ़ाई चालू रही । मेरा नाम ज्योति राजेंद्र वाडे है । मैं बोडल से बात कर रही हूँ । हमने एक रुपया महीने का कटता वो बीमा था, ये मेरे पति ने करवाया हुआ था । और उनका accident में निधन हो गया था । उस समय हमारी क्या हालत हुई, हमको ही पता । सरकार की ये मदद से हमको बहुत लाभ हुआ और में थोड़ी संभली उससे
मेरा नाम संतोष जाधव है । हमारे गाँव से, भिन्नर गाँव से 2017 से राष्ट्रीय राजमार्ग गया है । उसकी वजह से हमारी सड़कें वो बहुत अच्छे हो गये और बिजनेस भी बढ़ने वाला है ।
मेरा नाम दीपांशु आहूजा, मोहल्ला सादतगंज , ज़िला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ । दो घटनाएँ हैं जो हमारे भारतीय सैनिकों के द्वारा – एक तो पाकिस्तान में उनके द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक जिससे कि आतंकवाद के लौन्चिंग पैड्स थे, उनको नेस्तनाबूद कर दिया गया और साथ-ही-साथ हमारे भारतीय सैनिकों का डोकलाम में जो पराक्रम देखने को मिला वो अतुलनीय है ।
मेरा नाम सतीश बेवानी है । हमारे इलाके में पानी की समस्या थी बिलकुल पिछले 40 साल से हम आर्मी के पाइप -लाइन पर निर्भर हुआ करते थे । अब अलग से ये पाइप लाइन हुई है इंडिपेंडेंट तो ये सब बड़ी उपलब्धि है हमारी 2017 में ।
ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने-अपने स्तर पर ऐसे कार्य कर रहे हैं जिनसे कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहा है । वास्तव में, यही तो ‘न्यू इंडिया’ है जिसका हम सब मिल कर निर्माण कर रहे हैं । आइए, इन्हीं छोटी-छोटी खुशियों के साथ हम नव-वर्ष में प्रवेश करें, नव-वर्ष की शुरूआत करें और ‘positive India’ से ‘progressive India’ की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाएँ । जब हम सब सकारात्मकता की बात करते हैं तो मुझे भी एक बात share करने का मन करता है ।
हाल ही में मुझे कश्मीर के प्रशासनिक सेवा के topper अंजुम बशीर खान खट्टक (Anjum Bashir Khan Khattak) की प्रेरणादायी कहानी के बारे में पता चला । उन्होंने आतंकवाद और घृणा के दंश से बाहर निकल कर Kashmir Administrative Service की परीक्षा में top किया है । आप ये जानकर के हैरान रह जाएंगे कि 1990 में आतंकवादियों ने उनके पैतृक-घर को जला दिया था । वहाँ आतंकवाद और हिंसा इतनी अधिक थी कि उनके परिवार को अपनी पैतृक-ज़मीन को छोड़ के बाहर निकलना पड़ा । एक छोटे बच्चे के लिए उसके चारों ओर इतनी हिंसा का वातावरण, दिल में अंधकारात्मक और कड़वाहट पैदा करने के लिए काफ़ी था – पर अंजुम ने ऐसा नहीं होने दिया । उन्होंने कभी आशा नहीं छोड़ी । उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना – जनता की सेवा का रास्ता । वो विपरीत हालात से उबर कर बाहर आए और सफलता की अपनी कहानी ख़ुद लिखी । आज वो सिर्फ जम्मू और कश्मीर के ही नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं । —————————
अंजुम ने साबित कर दिया है कि हालात कितने ही ख़राब क्यों न हों, सकारात्मक कार्यों के द्वारा निराशा के बादलों को भी ध्वस्त किया जा सकता है । अभी पिछले हफ़्ते ही मुझे जम्मू-कश्मीर की कुछ बेटियों से मिलने का अवसर मिला । उनमें जो जज़्बा था, जो उत्साह था, जो सपने थे और जब मैं उनसे सुन रहा था, वो जीवन में कैसे-कैसे क्षेत्र में प्रगति करना चाहती हैं । और वो कितनी आशा-भरी ज़िन्दगी वाले लोग थे ! उनसे मैंने बातें की, कहीं निराशा का नामोनिशान नहीं था – उत्साह था, उमंग था, ऊर्जा थी, सपने थे, संकल्प थे । उन बेटियों से, जितना समय मैंने बिताया, मुझे भी प्रेरणा मिली और ये ही तो देश की ताकत हैं , ये ही तो मेरे युवा हैं, ये ही तो मेरे देश का भविष्य हैं ।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश के ही नहीं, जब भी कभी विश्व के प्रसिद्ध धार्मिक-स्थलों की चर्चा होती है तो केरल के सबरीमाला मंदिर की बात होनी बहुत स्वाभाविक है । विश्व-प्रसिद्ध इस मंदिर में, भगवान अय्यप्पा स्वामी का आशीर्वाद लेने के लिए हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं । जहाँ इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु आते हों, जिस स्थान का इतना बड़ा माहात्म्य हो, वहाँ स्वच्छता बनाये रखना कितनी बड़ी चुनौती हो सकती है ? और विशेषकर उस जगह पर, जो पहाड़ियों और जंगलों के बीच स्थित हो । लेकिन इस समस्या को भी संस्कार में कैसे बदला जा सकता है, समस्या में से उबरने का रास्ता कैसे खोजा जा सकता है और जन-भागीदारी में इतनी क्या ताक़त होती है- ये अपने आप में सबरीमाला मंदिर एक उदाहरण के तौर पर है । पी.विजयन नाम के एक पुलिस अफ़सर ने ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam), एक programme शुरू किया और उस programme के तहत, स्वच्छता के लिए जागरूकता का एक स्वैच्छिक-अभियान शुरू किया । और एक ऐसी परम्परा बना दी कि जो भी यात्री आते हैं, उनकी यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि वो स्वच्छता के कार्यक्रम में कोई-न-कोई शारीरिक श्रम न करते हों । इस अभियान में न कोई बड़ा होता है , न कोई छोटा होता है । हर यात्री, भगवान की पूजा का ही भाग समझ करके कुछ-न-कुछ समय स्वच्छता के लिए करता है, काम करता है, गन्दगी हटाने के लिए काम करता है । हर सुबह यहाँ सफाई का दृश्य बड़ा ही अद्भुत होता है और सारे तीर्थयात्री इसमें जुट जाते हैं । कितनी बड़ी celebrity क्यों न हो, कितना ही धनी व्यक्ति क्यों न हो, कितना ही बड़ा अफ़सर क्यों न हो, हर कोई एक सामान्य-यात्री के तौर पर इस ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam) कार्यक्रम का हिस्सा बन जाते हैं, सफाई को करके ही आगे बढ़ते हैं । हम देशवासियों के लिए ऐसे कई उदाहरण हैं । सबरीमाला में इतना आगे बढ़ा हुआ ये स्वच्छता – अभियान और उसमें ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam), ये हर यात्री के यात्रा का हिस्सा बन जाता है । वहाँ कठोर-व्रत के साथ स्वच्छता का कठोर-संकल्प भी साथ-साथ चलता है ।
मेरे प्यारे देशवासियो, 2 अक्तूबर 2014 पूज्य बापू की जन्म जयन्ती पर हम सब ने संकल्प किया है कि पूज्य बापू का जो अधूरा काम है यानी कि ‘स्वच्छ-भारत’, ‘गन्दगी से मुक्त-भारत’ । पूज्य बापू जीवन-भर इस काम के लिए जूझते रहे, कोशिश भी करते रहे । और हम सब ने तय किया कि जब पूज्य बापू की 150वीं जयंती हो तो उन्हें हम उनके सपनों का भारत, ‘स्वच्छ भारत’, देने की दिशा में कुछ-न-कुछ करें । स्वच्छता की दिशा में देशभर में व्यापक स्तर पर प्रयास हो रहा है । ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में व्यापक जन-भागीदारी से भी परिवर्तन नज़र आने लगा है ।
शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता के स्तर की उपलब्धियों का आकलन करने के लिए आगामी 4 जनवरी से 10 मार्च 2018 के बीच दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2018’ किया जाएगा । ये सर्वे , चार हज़ार से भी अधिक शहरों में लगभग चालीस (40) करोड़ आबादी में किया जाएगा । इस सर्वे में जिन तथ्यों का आकलन किया जाएगा उनमें हैं – शहरों में खुले में शौच से मुक्ति, कूड़े का कलेक्शन, कूड़े को उठा कर ले जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था, वैज्ञानिक तरीक़े से कूड़े की processing, behavioral change के लिए किए जा रहे प्रयास, capacity building और स्वच्छता के लिए किये गए innovative प्रयास और इस काम के लिए जन-भागीदारी । इस सर्वे के दौरान, अलग-अलग दल जा करके शहरों का inspection करेंगे । नागरिकों से बात करके उनकी प्रतिक्रिया लेंगे । स्वच्छता App के उपयोग का तथा विभिन्न प्रकार के सेवा-स्थलों में सुधार का analysis करेंगे । इसमें यह भी देखा जाएगा कि क्या ऐसी सारी व्यवस्था शहरों के द्वारा बनायी गई हैं जिनसे शहर की स्वच्छता एक जन-जन का स्वभाव बने, शहर का स्वभाव बन जाए ।
स्वच्छता, सिर्फ़ सरकार करे ऐसा नहीं । हर नागरिक एवं नागरिक संगठनों की भी बहुत बड़ी ज़िम्मेवारी है । और मेरी हर नागरिक से अपील है कि वे, आने वाले दिनों में जो स्वच्छता-सर्वे होने वाला है उसमें बढ़-चढ़ करके भाग लें । और आपका शहर पीछे न रह जाए, आपका गली-मोहल्ला पीछे न रह जाए – इसका बीड़ा उठाएं । मुझे पूरा विश्वास है कि घर से सूखा-कूड़ा और गीला-कूड़ा, अलग-अलग करके नीले और हरे dustbin का उपयोग, अब तो आपकी आदत बन ही गई होगी । कूड़े के लिए reduce, re-use और re-cycle का सिद्धांत बहुत क़ारगर होता है । जब शहरों की ranking इस सर्वे के आधार पर की जाएगी – अगर आपका शहर एक लाख से अधिक आबादी का है तो पूरे देश की ranking में, और एक लाख से कम आबादी का है तो क्षेत्रीय ranking में ऊँचे-से-ऊँचा स्थान प्राप्त करे, ये आपका सपना होना चाहिए, आपका प्रयास होना चाहिए । 4 जनवरी से 10 मार्च 2018, इस बीच होने वाले स्वच्छता-सर्वेक्षण में, स्वच्छता के इस healthy competition में आप कहीं पिछड़ न जाएँ – ये हर नगर में एक सार्वजनिक चर्चा का विषय बनना चाहिए । और आप सब का सपना होना चाहिए, ‘हमारा शहर- हमारा प्रयास’, ‘हमारी प्रगति-देश की प्रगति’ । आइए, इस संकल्प के साथ हम सब फिर से एक बार पूज्य बापू का स्मरण करते हुए स्वच्छ-भारत का संकल्प लेते हुए पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करें ।
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ बातें ऐसी होती हैं जो दिखने में बहुत छोटी लगती हैं लेकिन एक समाज के रूप में हमारी पहचान पर दूर-दूर तक प्रभाव डालती रहती हैं । आज ‘मन की बात’ के इस कार्यक्रम के माध्यम से मैं आपके साथ ऐसी एक बात share करना चाहता हूँ ।
हमारी जानकारी में एक बात आयी कि यदि कोई मुस्लिम महिला, हज-यात्रा के लिए जाना चाहती है तो वह ‘महरम’ या अपने male guardian के बिना नहीं जा सकती है । जब मैंने इसके बारे में पहली बार सुना तो मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसे नियम किसने बनाए होंगें? ये discrimination क्यों? और मैं जब उसकी गहराई में गया तो मैं हैरान हो गया – आजादी के सत्तर (70) साल के बाद भी ये restriction लगाने वाले हम ही लोग थे । दशकों से मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा था लेकिन कोई चर्चा ही नहीं थी । यहाँ तक कि कई इस्लामिक देशों में भी यह नियम नहीं है । लेकिन भारत में मुस्लिम महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त नहीं था । और मुझे खुशी है कि हमारी सरकार ने इस पर ध्यान दिया । हमारी Ministry of Minority Affairs ने आवश्यक कदम भी उठाए और ये सत्तर(70) साल से चली आ रही परंपरा को नष्ट कर के इस restriction को हमने हटा दिया । आज मुस्लिम महिलाएँ, ‘महरम’ के बिना हज के लिए जा सकती हैं और मुझे खुशी है कि इस बार लगभग तेरह सौ (1300) मुस्लिम महिलाएँ ‘महरम’ के बिना हज जाने के लिए apply कर चुकी हैं और देश के अलग-अलग भागों से- केरल से ले करके उत्तर तक महिलाओं ने बढ़-चढ़ करके हज-यात्रा करने की इच्छा ज़ाहिर की है ।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को मैंने सुझाव दिया है कि वो यह सुनिश्चित करें कि ऐसी सभी महिलाओं को हज जाने की अनुमति मिले जो अकेले apply कर रही हैं । आमतौर पर हज-यात्रियों के लिए lottery system है लेकिन मैं चाहूँगा कि अकेली महिलाओं को इस lottery system से बाहर रखा जाए और उनको special category में अवसर दिया जाए । मैं पूरे विश्वास से कहता हूँ और ये मेरी दृढ़ मान्यता है कि भारत की विकास यात्रा, हमारी नारी-शक्ति के बल पर, उनकी प्रतिभा के भरोसे आगे बढ़ी है और आगे बढ़ती रहेगी । हमारा निरंतर प्रयास होना चाहिए कि हमारी महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर समान अधिकार मिले, समान अवसर मिले ताकि वे भी प्रगति के मार्ग पर एक-साथ आगे बढ़ सकें ।
मेरे प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी हमारे लिए एक ऐतिहासिक-पर्व है । लेकिन इस वर्ष 26 जनवरी 2018 का दिन, विशेष रूप से याद रखा जाएगा । इस वर्ष गणतंत्र-दिवस समारोह के लिए सभी दस आसियान (ASEAN) देशों के नेता मुख्य-अतिथि के रूप में भारत आएँगे । गणतंत्र-दिवस पर इस बार ‘एक’ (1) नहीं बल्कि ‘दस’ (10) मुख्य अतिथि होंगे । ऐसा भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है । 2017, आसियान (ASEAN) के देश और भारत,दोनों के लिए ख़ास रहा है । आसियान (ASEAN) ने 2017 में अपने 50 वर्ष पूरे किए और 2017 में ही आसियान (ASEAN) के साथ भारत की साझेदारी के 25 वर्ष भी पूरे हुए हैं । 26 जनवरी को विश्व के 10 देशों के इन महान नेताओं का एक साथ शरीक़ होना हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है ।
प्यारे देशवासियो, ये त्योहारों का season है । वैसे तो हमारा देश एक प्रकार से त्योहारों का देश है । शायद ही कोई दिवस ऐसा होगा जिसके नाम कोई त्योहार न लिखा गया हो । अभी हम सभी ने क्रिसमस मनाया है और आगे नया-वर्ष आने वाला है । आने वाला नव- वर्ष आप सभी के लिए ढ़ेरों खुशियाँ, सुख और समृद्धि ले करके आए । हम सब नए जोश, नए उत्साह, नए उमंग और नए संकल्प के साथ आगे बढ़ें, देश को भी आगे बढाएँ । जनवरी का महीना सूर्य के उत्तरायण होने का काल है और इसी महीने में मकर-संक्रांति मनायी जाती है । यह प्रकृति से जुड़ा पर्व है । वैसे तो हमारा हर पर्व किसी-न-किसी रूप में प्रकृति से जुड़ा हुआ है लेकिन विविधताओं से भरी हमारी संस्कृति में,प्रकृति की इस अद्भुत घटना को अलग-अलग रूप में मनाने की प्रथा भी है । पंजाब और उत्तर-भारत में लोहड़ी का आनंद होता है तो यू.पी.-बिहार में खिचड़ी और तिल-संक्रांति की प्रतीक्षा रहती है । राजस्थान में संक्रांत कहें, असम में माघ-बिहू या तमिलनाडु में पोंगल – ये सभी त्योहार अपने आप में विशेष हैं और इनका अपना-अपना महत्व है । यह सभी त्योहार प्राय: 13 से 17 जनवरी के बीच में मनाए जाते हैं । इन सभी त्योहारों के नाम अलग-अलग, लेकिन इनका मूल-तत्व एक ही है – प्रकृति और कृषि से जुड़ाव ।
सभी देशवासियो को इन त्योहारों की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं । एक बार फिर से आप सभी को नव-वर्ष 2018 की ढ़ेरों शुभकामनाएँ ।
बहुत-बहुत धन्यवाद प्यारे देशवासियो । अब 2018 में फिर से बात करेंगे।