अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 8 फरवरी से नियमित सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में पिछले लगभग सात साल से लंबित अयोध्या मामले की सुनवाई मंगलवार से शुरू हुई। 2019 के आम चुनाव पूरा होने तक सुनवाई टालने की सुन्नी वक्फ बोर्ड की मांग को कोर्ट ने ठुकरा दिया। लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल की इस मांग पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस और राहुल गांधी से इस मामले में अपना रुख साफ करने को कहा। कोर्ट ने भी कह दिया है कि मामले की सुनवाई 8 फरवरी, 2018 से नियमित रूप से होगी.
सुप्रीम कोर्ट में पिछले लगभग सात साल से लंबित अयोध्या मामले की सुनवाई आखिरकार 8 फरवरी, 2018 से नियमित रूप से होगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हो रहे वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मामला बेहद संवेदनशील है और इस मामले में फैसला देश की राजनीति पर गहरा असर डालेगा। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की कि सुनवाई कम से कम 7 जजों की संविधान पीठ को करनी चाहिए। हालांकि भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने इन दोनों ही मांगों को ठुकराते हुए सुनवाई जारी रखी।
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने सुनवाई स्थगित करने की मांग का जबरदस्त विरोध करते हुए कहा कि मामले से जुड़े दस्तावेज़ों के अनुवाद का काम पूरा हो चुका है ऐसे में सुनवाई टालने की मांग बेतुकी है। कोर्ट ने मामले के राजनैतिक प्रभाव के कारण मामले को टालने की मांग को ठुकराते हुए सभी पक्षों से कहा कि वह अपने दस्तावेज तैयार रखें। अनुवाद या अन्य किसी तकनीकी आधार पर सुनवाई स्थगित किए जाने की मांग को अदालत नहीं मानेगी।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सिब्बल के रुख पर हैरानी जताई है। अमित शाह ने कांग्रेस और राहुल गांधी से इस मामले में अपना रुख साफ करने को कहा है।
गौरतलब है कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 2010 में पहुंचा था, जब इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।
दरअसल 2010 के फैसले में हाईकोर्ट ने विवादित भूमि को श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसले पर रोक लगाते हुए अपील पर फैसला आने तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इस बीच मामले के अदालत से बाहर समाधान की कोशिशें भी चल रही हैं।