पृथ्वी बचाने के लिये जैव-विविधता बचाना जरूरी
454 करोड़ वर्ष की पृथ्वी के लिये पिछले 200 वर्ष विनाशकारी
जैव-विविधता संरक्षण एवं जागरूकता पर हुई मीडिया वर्कशॉप
लगभग 454 करोड़ वर्ष की धरती के लिये पिछले 200 वर्ष सबसे विनाशकारी रहे हैं। दुनिया की 50 लाख प्रजाति में से केवल मनुष्य है, जिसने अन्य प्रजाति को बर्बाद किया है। पृथ्वी पर जीवन बचाये रखने के लिये विकास की योजना पारिस्थितिकीय तंत्र को ध्यान में रखते हुए बनायी जाये। आज इसी अवहेलना के कारण केदारनाथ, चेन्नई बाढ़, दिल्ली में वायु प्रदूषण जैसी घटनाएँ हो रही हैं। यह बात राज्य जैव-विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री आर. निवासमूर्ति ने बोर्ड द्वारा ‘जैव-विविधता संरक्षण एवं जागरूकता” पर की गयी मीडिया वर्कशॉप में कही।
अन्तर्राष्ट्रीय जैव-विविधता संधि का हिस्सा है भारत
श्री मूर्ति ने कहा कि पृथ्वी पर सीधी सूर्य किरणें विनाशकारी होती हैं। उत्पत्ति के एक करोड़ वर्ष बाद ओजोन परत बनने के बाद ही धरती पर जीवन शुरू हुआ। प्रकृति विरुद्ध हुए विकास ने नदी, जल, वायु, पारिस्थितिकी तंत्र को ही प्रदूषित कर दिया, जिससे ओजोन परत में क्षति के साथ विनाशकारी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ होने लगी हैं। ब्राजील में वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता संधि/सम्मेलन किया गया। करीब 196 देश संधि में शामिल हो चुके हैं। भारत विश्व के 12 मेगा जैव-विविधतापूर्ण देशों में से एक है, जिसमें मध्यप्रदेश अग्रणी राज्य है।
भाग्यवान हैं भारतवासी
श्री मूर्ति ने कहा कि भारतवासी अन्य देशों के मुकाबले भाग्यशाली हैं, क्योंकि यहाँ पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी, जल और उर्वरक भूमि उपलब्ध है। धरती, नदियों को हमारी नहीं, हमको इनकी जरूरत है। नरवाई जलाकर नदी, वायु प्रदूषित कर जलवायु परिवर्तन का हिस्सा न बनें। भोजन, जल, स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये जैव-विविधता अति आवश्यक है।
प्रदेश में 400 जैव-विविधता समितियाँ
प्रदेश में जैव-विविधता बचाने के लिये 400 से अधिक समितियाँ कार्यरत हैं। ये 2 जुलाई को होने वाले वृहद पौध-रोपण में भी सहायता करेंगी। नदी तटों पर बाँस, महुआ, अर्जुन, घरों में कटहल, नीबू, आम और गाँव में बरगद, नीम, पीपल आदि के पौधे रोपे जायेंगे। वृक्ष मानसून में शोषित जल में से 99 प्रतिशत नमी और जल के रूप में वापस कर देते हैं।
कार्यशाला में जैव-विविधता अधिनियम 2002, जैव-विविधता नियम 2004, मध्यप्रदेश जैव-विविधता नियम 2004, जैविक संसाधनों तक पहुँच और सहयुक्त जानकारी तथा फायदा बाँटना अधिनियम 2014, जैव-विविधता संरक्षण, जैव-विविधता का संवहनीय उपयोग, जैव-विविधता प्रबंधन समितियों, जैव-संसाधनों के वाणिज्यिक उपयोग से उदभूत लाभों का साम्यपूर्ण प्रभाजन पर बोर्ड और मीडिया के बीच चर्चा हुई। प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रतिनिधियों ने हर 3 माह में कार्यशाला करने का सुझाव दिया।
बीज बचाओ : कृषि बचाओ यात्रा 2 से 28 मई तक
प्रदेश में विभिन्न फसलों के विलुप्त होते बीजों के बचाने के लिये जैव-विविधता बोर्ड द्वारा 2 मई, से ‘बीज यात्रा’ शुरू की गयी है। रोज 20 से 30 बीज एकत्रित किये जा रहे हैं। वर्तमान में डिण्डौरी जिले से गुजर रही यात्रा में अब तक 565 प्रजाति के बीज एकत्रित किये जा चुके हैं। बोर्ड के प्रबंधक श्री अभिलाष दुबे ने आभार व्यक्त किया।