गीता आध्यात्मिक चेतना जगाने वाला ग्रंथ है – कलेक्टर

गीता ज्ञानयोग, भक्तियोग तथा कर्मयोग का समन्वय करती है – कलेक्टर
रीवा 06 सितम्बर 2019. अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा में दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा स्वामी विष्णुतीर्थ स्मृति वेदांत व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। व्याख्यान माला का शुभारंभ कुलपति डॉ. केएन सिंह यादव ने किया। व्यक्ति के विकास में गीता की भूमिका विषय पर व्याख्यान माला आयोजित की गई। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए कलेक्टर ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि गीता धार्मिक नहीं आध्यात्मिक चेतना जगाने वाला ग्रंथ है। यह बहुत सरल है। इसमें सरलता से जीवन, आध्यात्म, प्रकृति तथा जीवन के उद्देश्यों के संबंध में विचार व्यक्त किये गये हैं। गीता को कठिन बताकर जीवन से दूर कर दिया गया है। गीता का ज्ञान हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है। वह चाहे किसी भी धर्म का अनुयायी हो। धर्म प्रक्रिया है। अलग-अलग मत तथा संप्रदाय मानने वाले ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग प्रक्रिया अपनाते हैं। गीता कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं है। यह सभी धर्मों से ऊपर है। इसका ज्ञान और चेतना मानव की मूल प्रवृत्ति से जुड़े हैं। गीता भक्तियोग, ज्ञानयोग तथा कर्मयोग का समन्वय करती है।
कलेक्टर ने कहा कि गीता जीवन में संघर्ष करने वालों का ग्रंथ है। आयु के अंतिम पड़ाव में पहुंचकर गीता के अध्ययन से लाभ होने वाला नहीं है। इसका ज्ञान और कर्मयोग युवाओं के लिए है। भगवान कृष्ण ने मोहग्रस्त और किंकत्र्तव्यविमूढ़ अर्जुन से कहा कि हृदय की दुर्बलता त्याग कर आगे बढ़ों। यह संदेश हर युवा के लिए है। युवा भी जीवन में कठिनाई आने पर दुखी व निराश होता है। उसका व्यक्तित्व बिखरता है। कई बार छोटी सी असफलता उसे आत्महत्या जैसे हीन कृत्य के लिए प्रेरित करती है। ऐसे में गीता हमें सही मार्ग दिखलाती है। गीता का ज्ञान योग सबके लिए उपयोगी है। गीता में दिये गये ज्ञान की विद्वानों ने मीमांशा की है। साथ ही गीता के बारे में कई गलत अवधारणाएं भी हैं। गीता कर्महीन या कत्र्तव्यहीन होने की शिक्षा नहीं देती है। गीता में अपने कत्र्तव्य के पालन और फल के प्रति आसक्ति न होने की शिक्षा दी जाती है। हमें फल की चिंता करनी चाहिए किंतु उसमें आसक्ति नहीं होना चाहिए।
कलेक्टर ने कहा कि गीता का ज्ञान हर युवा के व्यक्तित्व को नया आयाम दे सकता है। हमारा व्यक्तित्व केवल हमारे कपड़ों, विचारों, भाषा पर नियंत्रण से ही नहीं होता है। मानव का असली व्यक्तित्व उसके आंतरिक गुणों के कारण होता है जिसमें दया, स्वाभिमान, आत्मविश्वास, आत्मशक्ति, आत्मज्ञान तथा आध्यात्मिक चेतना जैसे तत्व शामिल होते हैं। जब हम पूरे मन के साथ निर्धारित लक्ष्य के लिए प्रयास करते हैं और उस प्रयास की सफलता अथवा असफलता को ईश्वर प्रदत्त मानते हैं तब हम कर्मयोग के मार्ग पर होते हैं। गीता ने इहलोक और परलोक का अन्तर समाप्त कर दिया है। संसार में प्रकृति और पुरूष अलग-अलग हैं। प्रकृति के नियम सब पर लागू होते हैं। सांसारिक परिस्थितियों पर नियंत्रण करके व्यक्तित्व का विकास होता है। पुरूष की यात्रा प्रकृति की यात्रा से भिन्न होती है। मानव में ज्ञान के साथ नम्रता होना आवश्यक है। हमारे विचारों, हमारे मित्रों तथा अर्जित ज्ञान द्वारा व्यक्तित्व का विकास होता है। गीता में कहा गया है कि कर्म बंधन नहीं है। कर्म बंधन का कारण भी नहीं है। कर्म को कत्र्तव्य की तरह निराभिमान करना चाहिए। हर व्यक्ति कर्म करता है। सही दिशा में किये गये कर्म ही ईश्वर की पूजा है। हमें अपने कर्म और कत्र्तव्य पूजा की तरह करना चाहिए।
व्याख्यान माला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. केएन सिंह यादव ने कहा कि गीता के ज्ञान को आत्मसात करने की आवश्यकता है। कलेक्टर श्री श्रीवास्तव ने गहन अध्ययन और विचार मंथन के बाद गीता के ज्ञान को नये रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाली व्याख्यान मालाओं के प्रत्येक व्याख्यान को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का सुझाव दिया। व्याख्यान माला में दर्शनशास्त्र विभाग के डॉ. श्रीकान्त मिश्र ने कहा कि कलेक्टर श्री श्रीवास्तव ने प्रशासक की तरह नहीं बल्कि विद्वान की तरह विचार व्यक्त किये। गीता के बारे में कई नई अवधारणायें सामने आयीं। गीता निश्चय ही हर युवा के जीवन को सही दिशा दे सकती है। व्याख्यान माला में डॉ. एचएन सिंह, सेवानिवृत्त चिकित्सक डॉ. एचपी सिंह, डॉ. ज्योति सिंह, विश्वविद्यालय के कुलसचिव लालसाहब सिंह, कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरके जोशी, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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