नई दिल्ली में 23 जुलाई 2017 को संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित विदाई समारोह में राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन

  1. माननीय सदस्यगण, मैं भारत गणराज्य के 13वें राष्ट्रपति के पद से मुक्त होने की पूर्व संध्या पर विदाई समारोह आयोजित करने के लिए माननीय लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्य सभा के माननीय सभापति और माननीय संसद सदस्यो के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूंगा।
  2. माननीय सदस्यगण मैं इसी संसद से बना हूं। संसद ने मेरी सोच और व्यक्तित्व को आकार दिया है। मैं अतीत में जाता हूं। 26जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। आदर्शवाद और साहस के प्रति अभिव्यक्ति दिखाते हुए हम भारत के लोगों ने स्वंय को संप्रभुत्व लोकतांत्रिक गणराज्य अर्पित किया ताकि सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित हो सके। हमने सभी नागरिकों के बीच भाईचारा, व्यक्ति का सम्मान और देश की एकता को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया। ये आदर्श आधुनिक भारत देश के स्तम्भ हैं। 395 अनुच्छेदों तथा 12 अनुसूचियों वाला भारत का संविधान केवल प्रशासन के लिए एक कानूनी दस्तावेज नहीं बल्कि देश के सामाजिक आर्थिक परिवर्तन का मैगना कार्टा है। यह बिलियन प्लस भारतीयों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. 68 वर्ष पहले प्रथम आम चुनाव के बाद, भारत ने अपने लोगों की संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी संसदीय यात्रा शुरू की थी। संसद के दोनों सदन बने, गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति ने निर्वाचन के बाद संसद के पहले संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया और भारतीय संसदीय प्रणाली आगे बढ़ती चली।
  4. माननीय सदस्यों, मैं जब 48 वर्ष पहले जब पहली बार संसद पहुंचा तब मेरी उम्र 34 वर्ष थी। जुलाई 1969 में पश्चिम बंगाल राज्य की 6 सीटों में से एक का प्रतिनिधित्व करते हुए मैं राज्य सभा सदस्य के रूप में संसद में आया। राज्य सभा के लिए मेरा निर्वाचन 4 जुलाई को हुआ और में 22 जलाई 1969 से प्रारंभ प्रथम सत्र में शामिल हुआ।
  5. माननीय सदस्यगण, मैं तब से 37 वर्षों तक लोकसभा और राज्यसभा का सदस्य रहा। इन वर्षों में पांच वर्ष राज्यसभा सदस्य था पश्चिम बंगाल से चार बार तथा गुजरात से एक बार राज्य सभा सदस्य रहा और दो बार लोकसभा का सदस्य रहा। मेरा लंबा केरियर ज्ञानप्रद और शिक्षाप्रद रहा है। मैं संसद में उस समय आया जब राज्यसभा अनुभवी सांसदों स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं से भरी थी। उनमें से कई शानदार वक्ता थे। एमसी छागला, अजीत प्रदास जैन, जयरामदास दौलतराम, भूपेश गुप्ता, जोयचिन अल्वा, महावीर त्यागी, राजनारायण, भाई महावीर, लोकनाथ मिश्र और चित्त बसु शानदार वक्ता थे। वास्तव में भूपेश गुप्ता राज्यसभा में ख्याति प्राप्त थे। सरदार बल्लभ भाई पटेल के सुपुत्र और सुपुत्री दयाभाई पटेल और मणिबेन पटेल ने संसद में स्वतंत्र पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। संसद में मेरे वर्ष पीवी नरसिम्हाराव की बुद्धिमता अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण शैली मधुलिमे और डॉ. नाथपेई की एक पंक्तियों के बाण हैं। पीलू मोदी को हास्य विनोद, वीरेन मुखर्जी के भाषण की काव्य शैली, इन्द्रजीत गुप्ता के तीखे सवालों, डॉ. मनमोहन सिंह की शांत मौजूदगी, एलके आडवाणी की परिपक्व सलाह और सामाजिक विधेयकों पर सोनिया गांधी के समर्थन से समृद्ध हुए हैं।
  6. निःसंदेह सांसद के रूप में मेरे केरियर को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने संवारा। उनका दृढ़ संकल्प, विचार स्पष्टता और निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें विशाल व्यक्तित्व प्रदान किया। उऩ्होंने कभी गलत को गलत कहने से परहेज नहीं किया। मुझे याद है आपात काल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद नवंबर 1978 में हम लंदन गये थे। आक्रामक रूख अपनाए हुए बड़ी संख्या में पत्रकार श्रीमती गांधी से सवाल पूछने की प्रतीक्षा में थे। उनपर पहला प्रश्न यह दागा गया कि ‘आपातकाल से आपको क्या फायदा हुआ’। पत्रकारों की ओर सीधे देखते हुए गंभीर आवाज में श्रीमती गांधी ने जवाब दिया ‘उन 21 महीनों में हमने भारतीय जनता के सभी वर्गों को अलग करने का व्यापक इंतजाम किया। पत्रकारों के बीच शांति छा गई और उसके बाद जोरदार ठहाके लगे। फिर कोई प्रश्न नहीं पूछा गया और मीडिया कर्मी वापस जाने लगे। मैने अपनी गलतियों को स्वीकार करने और सुधारने की सबक पहले ही लेली थी। अपने में सुधार करना अपना औचित्य की तुलना में हमेशा बेहतर विकल्प होता है।
  7. माननीय सदस्यगण उन दिनों संसद के दोनों सदनों में सामाजिक और वित्तीय विधेयकों के बारे में ऊंचे विचार विमर्श और भारी भरकम बहस होती थी। सत्ता या विपक्षी बैंचों पर बैठकर दिग्गजों को घंटों और कई दिनों तक सुनने का मौका मिला। मैने बहस विचार, विचार विमर्श, और मतभेद के असल मूल्य को समझा। मैने महसूस किया कि कैसे गतिरोध सत्तापक्ष की तुलना में कहीं अधिक विपक्ष को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें लोगों की समस्याएं उठाने से वंचित करता है। मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू की युक्ति के सार को महसूस करता हूं। पंडित जी ने कहा था ‘‘परिवर्तन और निरन्तरता के बीच हमेशा संतुलन बने रहना है। संसदीय लोकतंत्र प्रणाली परिवर्तन और निरन्तरता के सिद्धांतों का प्रतिबिम्ब है। इस प्रणाली में कार्यरत तथा संसद के सदस्य और अन्य लोग जो इस प्रणाली के हिस्सा हैं उन्हें परिवर्तन की गति बढ़ानी है। निरन्तरता के सिद्धांत के अंतर्गत गति चाहे जितनी गति बढ़ानी हो, उतनी बढ़ाई जा सकती है। यदि निरन्तरता टूटती है तो हम रीढ़हीन हो जाते हैं और संसदीय लोकतंत्र प्रणाली चरमरा जाती है’। मैंने गरीबों और किसानों के पक्ष में विधेयकों के पारित होने पर आनन्द महसूस किया है। हाल में पारित वस्तु और सेवाकर विधेयक के पारित होने तथा एक जुलाई को इसे लांच किया जाना सहकारी संघवाद का चमकता उदाहरण है और यह भारतीय संसद की परिपक्वता को अभिव्यक्त करता है। इस प्रणाली का हिस्सा होना अऩूठा अनुभव है इस प्रणाली का हिस्सा बनने का अवसर देने के लिए मैं इस महान देश की जनता के प्रति आभारी हूं।
  8. माननीय सदस्यगण, मुझे महान भारत के उभरते दृश्य को देखने और भाग लेने का अवसर मिला। भारत के 130 करोड़ लोग आर्य, द्रविड और मंगोल तीन प्रमुख समूहों से आते हैं, सात प्रमुख धर्मों का पालन करते हैं और दैनिक जीवन में 122 भाषाएं बोलते हैं। सब कुछ एक संविधान, एक ध्वज और एक प्राशसनिक प्रणाली के अंतर्गत होता है।
  9. माननीय सदस्यगण, अपने देश 3.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर विशाल भू-भाग में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें संसद का प्रतिनिधित्व नहीं है। लोकसभा में 543 निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व 543 व्यक्ति करते हैं और 29 राज्य तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा 245 व्यक्तियों का निर्वाचन लोगों की हितों की रक्षा के लिए कानून बनाने, कार्यपालिका के आदेशों की जांचपरख करने और दायित्व लागू करने के लिए होता है। इनमें से प्रत्येक 788 स्वर महत्वपूर्ण हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कानून बनाने के लिए लगाया जाने वालें संसदीय समय में गिरावट आ रही है। प्रशासनिक, विधायी जटिलता में वृद्धि को देखते हुए उनकी उचित जांच परख और उनपर पर्याप्त चर्चा होनी चाहिए। यदि संसद कानून बनाने की अपनी भूमिका में विफल रहती है या बिना चर्चा के कानून बनाती है तो मैं महसूस करता हूं कि यह महान देश की जनता द्वारा व्यक्त विश्वास का उल्लघंन है।
  10. संसद के सत्र नहीं चलने के दौरान अध्यादेश के माध्यम से कार्यपालिका को कानून बनाने की असाधारण शक्तियां मिली हैं। लेकिन ऐसे अध्यादेशों की स्वीकृति संसद के अगले सत्र के छह सप्ताह के अंदर आवश्यक है।

11.मेरा दृढ विचार है कि अध्यादेश का मार्ग केवल बाध्यकारी परिस्तिथियों के समय अपनाना चाहिए और मौद्रिक मामलों में अध्यादेश की राह नहीं ली जानी चाहिए। उन विषयों पर  अध्यादेश का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए, जिन विषयों पर विचार किया जा रहा है या जिन्हें संसद या संसद की समिति के समक्ष रखा गया है। यदि विषय अत्यंत आवश्यक है तो संबंधित समिति को इसकी स्थिति बताई जानी चाहिए और निर्धारित समय के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

  1. माननीय सदस्यगण, लोकसभा में मेरी सदस्यता जुलाई 2012 में उस समय समाप्त हुई जब मैं 22 जुलाई को भारत गणराज्य के 13वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित घोषित किया गया। यद्पि संसद में 37 वर्षों का मेरा कार्यकाल उस दिन समाप्त हो गया लेकिन इस संस्थान के साथ अभी भी मेरा अटल संपर्क है। वास्तव में मैं गणराज्य के राष्ट्रपति के रूप में संसद का एक अभिन्न अंग रहा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 79 के अनुसार ‘‘संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और राज्यसभा तथा लोकसभा के रूप में संसद के दो सदनों से बनी होगी।’’ इन पांच वर्षों में मेरी प्रधान जिम्मेदारी संविधान के अभिभावक के रूप में काम करने की थी। जैसा की मैने शपथ के अवसर पर कहा था मैंने अपने संविधान को न केवल शाब्दिक रूप से संरक्षित और सुरक्षित रखने का प्रयास किया बल्कि भाव रूप से भी संरक्षित और सुरक्षित रखने का प्रयास किया। इस कार्य में हर कदम पर प्रधानमंत्री मोदी की सलाह और सहयोग से मुझे बहुत लाभ मिला है। वह लगन और ऊर्जा के साथ देश में परिवर्तनकारी बदलाव लाने का काम कर रहे हैं। मैं अपने संबंध और उऩके गर्म जोश और सौम्य व्यवहार की यादें हमेशा अपने साथ रखूंगा।
Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *