पुलवामा अटैक से लेकर अभिनंदन के बाद तक

कश्मीर के पुलवामा कायराना आतंकी हमले में हमारे सुरक्षा बल के 40 जवान शहीद हुए थे ।बदले में भारतीय सेना एयर अटैक कर पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी  कैंप ऊपर हमला कर सूत्रों के कथन अनुसार 300 से ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट उतारा।इस घटना के बाद पाकिस्तान वायु सेना के तीन एफ16 लड़ाकू विमान भारत की सीमा में घुसते हैं भारतीय सेना के लड़ाकू विमान मिग-21 द्वारा खदेड़ा जाता है। उसकी गोलाबारी में जहां एफ-16 विमान भी ध्वस्त होता है और मिग-21भी। इसको उड़ा रहे लड़ाकू विमान पायलट अभिनंदन वर्तमान इससे निकलकर पैराशूट से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में उतरते हैं। नागरिकों द्वारा उनके साथ मारपीट की जाती है लेकिन पाकिस्तान की सेना घटनास्थल पर पहुंच जाती है और पायलट को अपने कब्जे में ले लेती है। सरकार के दबाव तथा कूटनीतिक जीत के रूप में पाकिस्तान को अभिनंदन वर्तमान को 48 घंटे में ही छोड़ना पड़ता है ।इसके पहले  बालाकोट पर भारतीय सेना हमला कर आतंकी स्थलों को ध्वस्त करती है।
 इस पूरे घटनाक्रम में कहीं खुशी कहीं गम वाला माहौल भारत मे रहा। पुलवामा की घटना से जहां पूरा देश गमगीन हुआ तो बालाकोट पर आतंकी ठिकानों पर भारतीय हमले से देश खुश हुआ ।अभिनंदन की रिहाई पर देश अत्यधिक खुश हुआ।
 इन सब के बीच सरकार का बड़बोला पन और विपक्ष का हर बात पर संदेह करना और सेना पर अविश्वास भी देश को परेशान करता रहा है और कर रहा है।
 आज की सबसे बड़ी समस्या है विश्वास का अभाव और यह अभाव हर जगह दिखता है। विश्वास बनाना और उसे बरकरार रखना एक कठिन चुनौती के साथ सार्थक विजय है।सरकारे  बनेंगी ,बिगड़ेगी लेकिन विश्वास का जिस तरह से अभाव हो रहा व सोचनीय है।
मोदी सरकार की लोकप्रियता का पैमाना विश्वास बहाली का पैमाना ही सर्वोपरि रहा है उसी विश्वास पर अब सवाल उठ रहे हैं। लोकतंत्र में सवाल उठाना  लोकतंत्र की शुरुआत है ।लेकिन सवाल का गलत जवाब या गलत सवाल उठाना  लोकतंत्र की मृत्यु का कारण भी बनता है। आज कहीं न कहीं सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा गलत सवाल उठाए जाते हैं और उनके उत्तर भी गलत दिए जाते हैं। सवाल को सही करना और उसका उत्तर भी सही देने का प्रयास नहीं हो रहा है।
 सरकार अपना गाल बजा सकती है, विपक्ष खा- पी कर अपना पिछवाड़ा झाड़ते हुए जा सकता है लेकिन जनता को ज्यादा देर तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है।जनता दोनों को ही देख रही है तकनीक और सोशल मीडिया का जमाना है आपने जो आज कहा है उस पर आप कल बदल नहीं सकते हैं क्योंकि लोगों के पास आज का भी वीडियो है और कल का भी।
 कथनी और करनी की एकरूपता को जनता के पास आज पकड़ने के सशक्त माध्यम हैं।जनता आज भली भाग जागृत है आप उसे राम मंदिर की जगह राम की विशाल का प्रतिमा का लालच देकर बरगला नहीं सकते और न ही कांग्रेस छद्म हिंदुत्व से अपना काम बना सकती है। महबूबा के साथ सरकार चला कर फिर दूसरों पर भाजपा कश्मीर का ठीकरा नहीं फोड़ सकती है और न ही कांग्रेस देश के अंदर सरकार बनाने के लिए पाकिस्तान से मदद मांग कर बच सकती है ।
अब बात करें सबूत की कि कितने आतंकवादी हमले मे मारे गए। सबूत मांगना विपक्ष की नैतिक जिम्मेदारी है और सबूत देना सत्ता पक्ष की उससे भी बड़ी नैतिक जिम्मेदारी ।सत्ता पक्ष कुछ करने की बात करता है तो उसका सबूत देना भी जरूरी है इससे सबूत मांगने वाला विपक्ष देशद्रोही नहीं हो जाता ।जैसे कि अभिनंदन वर्तमान पायलट का वापस आना सबूत है ऐसे ही बालाकोट में कितने आतंकी मारे गए यह सबूत भी पेश करना सत्ता पक्ष का काम है तो सत्तापक्ष को चाहिए कि कुछ ऐसे सबूत पेश करें जिससे पता चले कि हमले वाले स्थान से कितने शव उठाए गए। सबूत देना तब और भी जरूरी हो जाता है जब पाकिस्तान किसी तरह की क्षति होने से मना करें और उसके साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी इस बात की तस्दीक करें।
 अगर हमला बताने में आपको गुरेज नहीं तो उसके सबूत देने में भी गुरेज नहीं होना चाहिए। राष्ट्रवाद की कबच से सब कुछ छुपाया नहीं जा सकता। सच्चाई बताने से राष्ट्रवाद और पुख्ता होगा न कि कमजोर।पहले चार सौ से ऊपर फिर साढे तीन सौ फिर तीन सौ तक मोबाइल का एक्टिव होना फिर दो सौ पचास का आंकड़ा आना संदेह तो पैदा करता ही है।
 फिर कहना चाहूंगा कि चाहे सत्तापक्ष हो या विपक्ष अपनी अपनी विश्वसनीयता  बरकरार रखिए  क्योंकि यह जनता सब कुछ देख रही है।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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