कांग्रेस रिटर्न तो टाइगर अभी जिंदा है

लगातार पराजय झेल रही कांग्रेस ने तीन हिंदी भाषी राज्य और वह भी एक दूसरे से लगे हुए और जहां भाजपा की सरकारें थीं विजय प्राप्त कर यह संदेश दे रही है कि कांग्रेस रिटर्न  तो मध्यप्रदेश में कांटे की टक्कर में रहते हुए 109 सीट वाली भाजपा के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि टाइगर अभी जिंदा है यानी कि अभी भी हममे दमखम बचा है ।
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस हिसाब से टाइगर और टाइग्रेस दोनों जिंदा नहीं रहे।
 फिल्मी जुमलेबाजी चलती रहेगी लेकिन देखने वाली बात यह है कि इन तीन राज्यों में कांग्रेस के रिटर्न होने के मायने क्या हैं और टाइगर अभी जिंदा है तो आखिर कब तक जिंदा रहेगा।
  कांग्रेस को देखा जाए तो तीन राज्यों में सरकार बनाने का आशीर्वाद तो जनता ने दे दिया लेकिन कांग्रेसी ही इस आशीर्वाद को सम्मान नहीं दे पाए। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जिस तरह से तीनों राज्यों में खींचतान शुरू हुई है वह कतई कांग्रेस के लिए फायदेमंद नहीं कहा जा सकता और ना ही उन संबंधित प्रदेशों के लिए ।एक पक्ष मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठकर महत्वपूर्ण बनेगा तो दूसरा पक्ष विरोधी जैसा कार्य करेगा।  उत्साह और समर्पण का अभाव रहेगा ।राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त किया है लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस 114 सीट पाकर बहुमत से 2 सीट पीछे रही और इसके चलते अन्य पार्टियों के सहयोग से सरकार बनानी पड़ी है ।भाजपा 109 सीट के साथ दमदार विपक्ष की भूमिका मे है।वोट प्रतिशत भी भाजपा का ज्यादा है सीटें कम।
जिस तरह से भाजपा ने चौथी बार सरकार बनाने का दम भरा था वह पूरा होता हुआ दिखाई दे रहा था लेकिन माई का लाल और एट्रोसिटी एक्ट, सरकारी तंत्र का हावी होना और सरकार के प्रति नकारात्मक वातावरण के निर्माण ने जिसे विपक्ष ने अच्छी तरह से फैलाया इनके इस कार्य में रुकावट बन गया। रुकावट के लिए काफी हद तक केंद्रीय नेतृत्व भी जिम्मेदार है कुछ समय पहले केंद्रीय नेतृत्व द्वारा ऐसा वातावरण निर्मित किया गया कि प्रदेश मुखिया शिवराज सिंह चौहान को बदला जा सकता है ।पार्टी के कुछ वरिष्ठ भी  मुख्यमंत्री से नाराज नजर आए और उसके कारण मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए मेहनत करनी पड़ी । संघ का सहारा लेना पड़ा और इस कार्य में जो लय मुख्यमंत्री के कार्य करने का था उसमें रुकावट आई , रुकावट ने माहौल में नरमी का संचार कर दिया था ।
जीसटी और नोटबंदी से व्यापारी परेशान रहा समय के साथ उनकी परेशानी कम हुई है लेकिन पुराना उत्साह उनमें नहीं रहा जैसे पहले भाजपा सहयोगी के रूप में रहता था यह भी सही है कि जहां भाजपा नेताओं ने व्यापारियों से मधुर संबंध बनाए हैं उनको समझा के रखा वहां उनको अच्छा सहयोग भी मिला।
 राष्ट्रीय नेतृत्व की भाषा शैली और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी के कारण भी लोकप्रियता का ग्राफ कुछ कम हुआ है।मध्य प्रदेश में कर्मचारियों को इस बार भी बहुत मिला लेकिन इस बार मिलने में देरी हुई इस देरी का परिणाम यह रहा है कि जो मिला उसकी खुशी नहीं रही यह वर्ग इस बार सरकार से नाराज चल रहा था उसने सरकार को सबक सिखाने के लिए मतदान किया है।
 ऐसे में भाजपा की सरकार तो चली गई लेकिन कांग्रेस मे जो अभी  से ही कुर्सी की खींचतान का वातावरण  निर्मित हुआ है उससे उसको भी उत्साहवर्धक सम्मान नहीं मिल रहा। शिवराज सरकार ने यह सच है कि सभी वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करने का प्रयास किया है लेकिन इस बार घोषणाओं को कार्य रूप में परिणित करने मे ध्यान देना था। इस बार पार्टी के पुराने लोगों को नजरअंदाज किया गया और उन्होंने भी सरकार के खिलाफ काम किया।इस पर भी सरकार की जनहितैषी योजनाओं के दम पर शिवराज ने बराबर की लड़ाई लड़ी है।
 वक्त है बदलाव के नारे को मालवा चंबल में यदि कांग्रेस सही साबित करने में सफल रही  तो इसका यही कारण है कि इस क्षेत्र में भाजपा अंदरूनी कलह से पीड़ित रही।
 इन सबके परिणामस्वरूप प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है लेकिन सरकार बनने मे  तीनों राज्यों में जिस तरह से मुख्यमंत्री पद को लेकर छीना झपटी हुई है उसे लोगों ने इस तरह से अभिव्यक्ति दी है कि दिखाया तो युवा दूल्हा था फेरे बुड्डे के साथ करा दिया।तीनों राज्यों में आपसी सहमति से मुख्यमंत्री पद का चुनाव नहीं हो सका आखिरकार केंद्रीय नेतृत्व को अपना निर्णय थोपने जैसा कार्य  करना पड़ा।इस प्रकरण से यह बात भी साफ होती है कि कांग्रेस ने चुनाव अपनी एकजुटता से नहीं जीता बल्कि जनता ने भाजपा को सबक सिखाने के लिए कुछ सीटों की बढ़त इनको दे दी है।जिसे जनमत के रूप में बनाए रखने के लिए कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और अगर यह कड़ी मेहनत कर पाते हैं तो लोकसभा में भी इनको लाभ मिलेगा ।
यह भी सच है कि भाजपा का मूल वोटर भाजपा से नाराज हुआ है ।भाजपा की हालत आधी छोड़ पूरी को धावे पूरी मिले न आधी पावे वाली हुई है ।इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा शासन में विकास कार्यों की झड़ी लगी है लेकिन इस पंचवर्षीय मे हो रही घोषणाओं के अमल पर भी इनको ध्यान देना था। देर से मिलने वाला न्याय भी अन्याय होता है उसी तरह से देर से पूरा होने वाला निर्माण कार्य भी खुशी नहीं देता ।
विन्ध्य के परिपेक्ष्य में अगर इसी बात को देखें तो यहां के नेता राजेन्द्र शुक्ल ने घोषणाओं को पूरा करने का पूरा प्रयास किया । जिन निर्माण कार्यों का उन्होंने भूमि पूजन किया है उनका लोकार्पण भी उन्होंने कर दिया है ।कुछ बड़े कार्य ही ऐसे हैं जो चल रहे हैं जो निकट भविष्य में जल्दी ही पूर्ण हो जाएंगे ।इस समर्पण का यह परिणाम  रहा कि पूरे विन्ध्य में ऐसा वातावरण निर्मित हुआ कि राजेन्द्र शुक्ल  विकास कार्यों के लिए समर्पित व्यक्ति हैं । बाणसागर से लेकर लगभग उद्घाटन की स्थिति में पहुंचा चाहे सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल हो या अन्य कार्य जो लगभग पूर्ण होने वाली स्थिति मे हैं इसका लाभ क्षेत्र मे मिला है।विश्वास का वातावरण निर्मित हुआ है जबकि ऐसी स्थिति अन्य जगह देखने को नही मिली।विन्ध्य मे इन्होंने लाख विपरीत परिस्थितियों के बाद भी  अपने वोटरों को बांध कर रखा तो नये वोटरों को भी सरकार के पक्ष में  रखने में सफल रहे।
अब कांग्रेस को 3 राज्यों में सरकार बनाकर जो नई उर्जा मिली है उसे आगे जारी रखने के लिए विकास कार्यों को और गति देनी पड़ेगी ।विकास कार्यों की जो लकीर भाजपा सरकार द्वारा खींची गई है उससे बड़ी लकीर कांग्रेस सरकार को खींचनी पड़ेगी ।इसीलिए सोनिया गांधी ने अनुभवी हाथों में प्रदेशों की कमान सौंपी है ।
अगर इसे ऐसे कहेंं कि बुजुर्ग कांग्रेस जनता हास्पिटल से इलाज लेकर स्वस्थ होकर रिटर्न हुई है तो उसे लगातार स्वस्थ  रहते हुए अपने युवा उत्तराधिकारियों को सरकार की संपत्ति तथा जिम्मेदारियों को हस्तांतरित करना पड़ेगा सब तरह के युवाओं को रोजगार मे लगाना जरूरी है तो भाजपा के घायल टाइगर को संघ संगठन के सुपर स्पेशलिटी में अपना इलाज करा कर पूर्ण स्वस्थ होना पड़ेगा साथ ही अपने कमजोर अंगों से काम लेने के बजाय युवा मजबूत अंगों को रोजगार के साथ काम में लगाना पड़ेगा क्योंकि सच यह है कि कांग्रेस रिटर्न हुई है टाइगर जिंदा है लेकिन  स्वस्थ दोनों नही हैं।
अजय नारायण त्रिपाठी ” अलखू “
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