बौद्धिक अतिक्रमण और सर्वज्ञ होने का भ्रम

सभी तरह का अतिक्रमण  समस्या है और इसका एक रूप बौद्धिक अतिक्रमण  भी है ,और यह अतिक्रमण कमोवेश आज सब जगह देखा जा रहा है ।अभी दस – बारह दिन पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ताजमहल के संगमरमर के पीले होने पर पुरातत्व विभाग पर एक टिप्पणी की थी। पुरातत्व विभाग ने कहा था कि यमुना नदी की काई से भी ताजमहल को नुकसान हो रहा है क्योंकि यह काई उड़कर ताज की दीवारों और गुंबद से चिपक जाती है जिससे इसमें पीलापन आता है । उसने ताजमहल के पीले हो रहे संगमरमर के कारणों में से इस कारण को भी एक कारण माना है साथ ही पुरातत्व विभाग ने बताया कि पहले जो यमुना नदी प्रवाहित रहती थी उसमें बैराज बन जाने से पानी रुका रहता है और इससे रुके पानी में काई ज्यादा पनपती है। और यह काई सूखकर जब हवा के साथ उड़ती है तो ताज के संगमरमर से चिपक कर उसे पीला करती है दूसरा उसने यह भी कहा कि पर्यटकों के गंदे मोजों और उनकी संख्या के कारण भी एक तो संगमरमर घिस रहा है और उसका रंग भी पीला पड़ रहा है। वायु प्रदूषण आदि कारण तो है हीं इन कारणों को भी  भारतीय पुरातत्व विभाग ने मुख्य कारणों  के रूप में गिना है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इन कारणों से असहमति दर्ज करते हुए कहा कि क्या काई के पंख हैं जो उड़ कर ताजमहल की दीवारों से चिपक जाती है तो इसका उत्तर कोई भी पर्यावरण का विद्यार्थी या जानकार हाँ मे ही देगा। काई के पंख तो नहीं होते लेकिन वह सूखने के बाद इतनी सूक्ष्म और हल्की होती है कि थोड़ी सी भी हवा के साथ  उड़ कर अच्छी खासी दूरी और ऊंचाई तक जा सकती है। विपरीत परिस्थितियों में निष्क्रिय रहना और अनुकूल परिस्थिति आने पर अपना संवर्धन करना काई का प्रमुख गुण है । काई प्रकृति के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है यह बड़े-बड़े जंगलों के निर्माण का आधार है ,बड़ी-बड़ी चट्टानों को मिट्टी में बदलने की ताकत काई और इसी की तरह के प्राथमिक वनस्पतियों में है ।काई अपने इस तरह के उड़ने के गुण के कारण ही  बरसात में मंदिरों ,महलों , बड़ी बड़ी इमारतों के सबसे ऊंचे भाग में मिल जाती है। काई ताजमहल और दूसरी इमारतों पर फर्क करना नहीं जानती इस विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदर करते हुए कहना चाहूंगा कि कोई भी सर्वज्ञ नहीं है विषय की विशेषज्ञता रखने वालों का इस तरह अपमान कतई उचित नहीं है जब घास फूस की रस्सी से लोहा घिस जाता है तो आदमी के चलने से पत्थर क्यों नहीं घिसेंगे। ताजमहल में जाने वाले पर्यटक हवा में उड़कर तो जाएंगे नहीं पैदल चलकर ही ताजमहल के चारों तरफ घूमते हैं तो उनके चलने से परिक्रमा-पथ का घिसना स्वभाविक है ।लोगों की सांस और पसीना भी नुकसान पहुंचाता है  और जब कोई पर्यटक अपने पसीने वाले हाथों से ताज की दीवारों को छूता है तो उसका असर संगमरमर पर होना ही है ।आर्केलाँजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने यमुना में पल रहे कीट-पतंगों के मल मूत्र को भी एक कारण बताया सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्या पहले कीट-पतंगे नहीं थे। एएसआई ने कहा कि पहले यमुना नदी मे मछलियां थी वह इनकी संख्या को नियंत्रित करती थी  लेकिन यमुना में बैराज बन जाने के कारण नदी के जल का प्रवाह कम हो गया और नदी प्रदूषित हो चुकी है जिसके कारण से इनकी संख्या ज्यादा रहती है और यह कीट पतंगे ताजमहल में बैठकर मल मूत्र त्याग करते हैं जिससे ताजमहल का रंग पीला पड़ रहा है ।अब जब यह सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि क्या पहले कीट-पतंगे नहीं थे जो अब बढ़ गए ,तो समझना पड़ेगा कि  परिस्थितियां तब और अब बदल चुकी हैं। जरूरी नहीं है कि जो कल नहीं हुआ है वह आज नहीं होगा ।परिस्थितियां हैं बदलती हैं और इससे कार्य और परिणाम दोनों बदल जाते हैं। अभी कुछ दिन पहले के आए आंधी तूफान मे ताजमहल के मीनार की एक खिड़की टूट गई है अभी तक के आंधी-तूफान मे नही टूटी थी अब टूट गई इसको क्या कहा जाए।  प्रकृति से कोई नहीं लड़ सकता अपने हाथ में केवल संरक्षण और बचाव है ।ताजमहल का संगमरमर कोई अलग पत्थर नहीं है ताज का संरक्षण प्राथमिकता के आधार पर होना जरूरी है लेकिन इसके लिए विशेषज्ञों का अपमान करना उचित नहीं है क्योंकि कोई भी सर्वज्ञ नहीं है अगर किसी अधिकारी पर या संस्थान पर किसी तरह का अविश्वास है तो अन्य विशेषज्ञों की राय इस विषय पर ली जा सकती है अपनी सर्वज्ञता से संस्थानों का अपमान उचित नहीं है ।

अजय नारायण त्रिपाठी   ” अलखू”

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